-युगप्रधान आचार्यश्री ने आयारो आगम के माध्यम से अच्छे जीवन जीने की दी पावन प्रेरणा
सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 13 अगस्त।
भगवान महावीर युनिवर्सिटि वर्तमान में भगवान महावीर के प्रतिनिधि, तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मास स्थली बनी हुई है। देश-विदेश से प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त उपस्थित होकर आध्यात्मिकता की गंगा में डुबकी लगाकर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। आचार्यश्री के श्रीमुख से अबाध रूप से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा जन-जन को सत्पथ दिखा रही है।
मंगलवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जन्म लेता है और जीवन जीता है। किसी-किसी आदमी का जीवनकाल अच्छा और लम्बा भी होता है, किसी-किसी का मध्यम होता है तो कोई-कोई अल्पायु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मृत्यु सभी प्राणियों की होनी है। प्राणी जब जन्म लेता है तो वह मानों मृत्यु को भी साथ लेकर ही आता है।
समय आने पर मृत्यु प्रगट हो जाती है। जन्म-मृत्यु का मानों गहरा अनुबंध होता है। इसलिए जन्म आया है तो कभी मृत्यु भी आ सकती है। मृत्युविहीन जन्म नहीं हो सकता और जन्मविहीन मृत्यु नहीं हो सकती। दोनों एक-दूसरे के सहयोगी होते हैं। एक जीवन का प्रारम्भिक छोर है तो दूसरा छोर मृत्यु है। नदी का एक तट जन्म है तो दूसरा तट मृत्यु है और बीच में मानों जीवन रूपी नदी प्रवाहित होती है।
कई मनुष्यों का जीवन अल्पायु वाला होता है। आयुष्य क्रम का अपना नियम होता है। तेरापंथ धर्मसंघ के चारित्रात्माओं में वर्तमान में साध्वी बिदामांजी जीवन के ग्यारहवें दशक में चल रही हैं। जीवन की अनियमितता को जानकर आदमी को कैसे जीवन जीना चाहिए, इसका ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। अधिक जीवन जीने से अच्छा है अच्छा, धार्मिक जीवन जीने का प्रयास होना चाहिए। जीवन में अच्छे कार्य, सद्गुणों से युक्त हो तो मानव का अल्प जीवन भी कल्याणकारी बन सकता है।
अल्पायु हो तो भी आदमी को अच्छा जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण देते हुए कहा गया कि तेजस्वी जीवन का थोड़ा जीवन ही धुंआ बनकर लम्बे जीवन जीने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात होता है। आदमी को अच्छा जीवन जीने के लिए पुरुषार्थ करने की अपेक्षा होती है और कितना जीवन जीने में भाग्य की बात है।
आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि आदमी को अपने जीवन में पुरुषार्थ करना चाहिए और जितना संभव हो सके जीवन को अच्छे रूप में जीने का प्रयास करना चाहिए। जीवन अच्छे रूप में जीना ही मानव जीवन की सफलता हो सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने मुनि गजसुकुमाल के आख्यान क्रम का वाचन किया।
जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में समण संस्कृति संकाय द्वारा वर्ष 2024 का गंगादेवी सरावगी जैन विद्या पुरस्कार श्रीमती विमला डागलिया को प्रदान किया गया। इस दौरान पुरस्कार प्राप्त करने वाली श्रीमती विमला डागलिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के महामंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने किया। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया।