काठमाण्डौ नेपाल(अमर छत्तीसगढ) 16 अगस्त।
।।परिवार सप्ताह का आयोजन।।
जब तक राही मंजिल को नहीं पा लेता है तब तक उसे चलना होता है। चलते चलते थकान होने पर विश्राम की अपेक्षा होती है। जीवन एक यात्रा है । हम सब यात्री है। बचपन, जवानी, बुढापा जीवन के पडाव है। जीवन की अवस्थाएं हैं। बुढापा यानी वृद्धावस्था जीवन की सांझ हैं। इस अवस्था में पहुंचकर कभी कभी अनेक आशंकाओं, दुष्चिन्ताओं, परेशानियों से घिर जाता है।
ये स्थितियां जहां कुछ स्वयं निर्मित होती है , तो कुछ के लिए परिवार और समाज भी जिम्मेदार होता है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने तेरापंथ कक्ष स्थित महाश्रमण सभागार में चल रहे “परिवार सप्ताह” के अंतर्गत आज “बुढापा बनें सार्थक” विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये।
आपने आगे कहा- बुढापे को गुनगुनाते हुये जीये न की भुनभुनाते हुए। ऐसा क्या करें कि बुढापा सार्थक बन जाये और मृत्यु से पहले मुक्ति के द्वार खुल जाये। इसके लिए आपने बुढापे में पंच रत्नों की पोटली के बारे में विस्तार पूर्वक बताया।
मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा काठमाण्डौ नेपाल