तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के अंतिम दिन भी विशिष्ट व्यक्तित्वों को किया गया सम्मानित… मोक्ष का प्रवेश द्वार है मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के अंतिम दिन भी विशिष्ट व्यक्तित्वों को किया गया सम्मानित… मोक्ष का प्रवेश द्वार है मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

मानव जीवन के महत्त्व को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित

-महासभा ने श्रेष्ठ, उत्तम व विशिष्ट सभा/उपसभाओं को किया पुरस्कृत

-युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित प्रतिनिधियों को दिया पावन आशीर्वाद

सूरत गुजरात (अमर छत्तीसगढ) 17 अगस्त ।

गत तीन दिनों जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुपावन सन्निधि में आयोजित तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन मानवता के मसीहा के श्रीमुख से पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के साथ सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के अंतिम दिन भी महासभा ने जहां समाज के विशिष्ट व्यक्तित्वों को पुरस्कृत व सम्मानित किया वहीं दूसरी ओर अपने-अपने क्षेत्र में अच्छे कार्य करने वाली सभाओं व उपसभाओं को भी श्रेष्ठ, उत्तम व विशिष्ट श्रेणी के अंतर्गत पुरस्कृत किया। आचार्यश्री ने लोगों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

शनिवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संदेश प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि हे पंडित! तुम समय को जानो। मनुष्य के जीवन में एक-एक क्षण का महत्त्व होता है। पता नहीं किस क्षण में अतिमहत्त्वपूर्ण विचार उत्पन्न हो जाए। चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जन्म प्राप्त कर लेना बहुत विशिष्ट बात होती है क्योंकि मोक्ष की प्राप्ति केवल मानव जीवन से ही हो सकती है।

अन्य किसी भी योनि में मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं होती। आगम में तो यहां तक कहा गया कि अनुत्तर गति के देव भी मोक्ष नहीं जा सकते। उन्हें मोक्ष पाना है तो पहले मनुष्य के जीवन में आना ही होता है। मानव बनने के उपरान्त ही वे मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए इसलिए इस मनुष्य जीवन को मोक्ष का प्रवेश द्वार भी कहा जा सकता है।

मानव जीवन प्राप्त करना और उसमें भी साधुत्व को स्वीकार कर लेना मानों कितने सौभाग्य की बात होती है। वृद्धावस्था में कोई साधु बने तो कोई बड़ी बात नहीं, किन्तु छोटी वय में साधु बन जाना, संयम के पथ पर अग्रसर हो जाना बड़ी बात होती है। आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अपने जीवन की छोटी अवस्था में ही मुनि दीक्षा स्वीकार कर ली थी। हमारे धर्मसंघ में सबसे छोटी उम्र में महासती गुलाबांजी ने दीक्षा ली। लगभग साढे सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने साध्वी दीक्षा स्वीकार कर ली थी।

कितने-कितने लोग यहां चतुर्मास में रहकर सेवा करते हैं। इस कहा गया है कि आदमी को हर क्षण जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, धर्म की आराधना, गुरु की पर्युपासना और सेवा का लाभ लेने का प्रयास करना चाहिए। जब तक शरीर शरीर सक्षम है, आदमी को धर्म, ध्यान, तपस्या व सेवा कर आत्मकल्याण कर लेना चाहिए। समझदार आदमी को समय का मूल्यांकन कर समय को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए। समय सबको एक समान ही मिलता है। एक दिन में 24 घंटे सभी को प्राप्त होता है, किन्तु इन प्राप्त घंटों का कौन कितना और कैसे उपयोग करता है, वह खास बात होती है।

शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करना भी क्षण का कितना अच्छा उपयोग हो जाता है। प्रवचन के साथ सामायिक और उपवास के साथ पौषध हो जाता है तो समय का और अधिक सार्थक बनाने का प्रयास हो जाता है। हम सभी क्षण का धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करें, यह काम्य है। आचार्यश्री ने कहा कि चतुर्मास का खूब अच्छा क्रम चल रहा है। धर्म को जानने, तपस्या का क्रम, ज्ञान के आराधना से आगे बढ़ता रहे। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आख्यान क्रम को संपादित किया। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

राज्यसभा सांसद व एस.आर.आर. डायमण्ड के डायरेक्टर गोविंद ढोलकिया ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारा कोई पूर्व के पुण्य का प्रभाव है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुझे यहां आने का अवसर मिला, यह बड़े भाग्य की बात है। इस दौरान ग्रीन लिप डायमण्ड के चेयरमेन श्री मुकेश पटेल ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के तीसरे दिन मंचीय उपक्रम रहा। पुरस्कार व सम्मान अर्पण समारोह में महासभा के पूर्व मुख्य न्यासी सुरेशचन्द गोयल को तेरापंथ संघ सेवा सम्मान, उपसभा के राष्ट्रीय संयोजक लक्ष्मीलाल बाफना को आचार्य तुलसी समाज सेवा पुरस्कार व तेरापंथ एन.आर.आई. समिट के संयोजक सुरेन्द्र पटावरी (बोरड़) को तेरापंथ विशिष्ट प्रतिभा पुरस्कार प्रदान किया गया। सभी सम्मान/पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को महासभा के पदाधिकारियों व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों आदि ने प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह आदि प्रदान किए गए।

श्री गोयल के प्रशस्ति पत्र का वाचन महासभा के उपाध्यक्ष बसंत सुराणा, श्री बाफना के प्रशस्ति पत्र का वाचन महासभा के उपाध्यक्ष फूलचन्द छत्रावत तथा श्री पटावरी के प्रशस्ति पत्र का वाचन महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हितेन्द्र मेहता ने किया। सम्मान/पुरस्कार प्राप्तकर्ता महानुभावों ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के समक्ष अपनी श्रद्धासिक्त भावनाओं को अभिव्यक्ति दी।

इस संदर्भ में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के समापन की निकटता है। सभाएं अपने-अपने क्षेत्रों में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य संपादित करने का प्रयास करती रहें। इस जीवन में आत्म उत्थान के लिए जो कर सकें, करने का प्रयास हो। जितना हो सके दूसरों की सेवा और तेरापंथ धर्मसंघ की सेवा देने का प्रयास होता रहे। आज सम्मानित व पुरस्कृत तीनों व्यक्ति अच्छा पुरुषार्थ करते रहें, धार्मिक-आध्यात्मिक विकास का प्रयास करते रहें। तेरापंथी महासभा समाज की अद्वितीय संस्था है, वह अपने ढंग से धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य को आगे बढ़ाती रहे।

महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने श्रेष्ठ उपसभा भिलोड़ा, उत्तम वीरपुर-बिहार व माणगांव-महाराष्ट्र, विशिष्ट उपसभा एसडी कोटे-कर्नाटक व प्रान्तीज-गुजरात को चुना गया। सभाओं के तीन श्रेणियों में लघु के अंतर्गत श्रेष्ठ इचलकरंजी, उत्तम रेलमगरा व विशिष्ट शालिमारबाग व धुलाबाड़ी, मध्यम में श्रेष्ठ सभा भुज, उत्तम गुलाबबाग व विशिष्ट राजाजी नगर-बेंगलुरु व बृहद् सभाओं में श्रेष्ठ सभा गुवाहाटी, उत्तम कांकरिया-मणिनगर व विशिष्ट सभा कांदिवली-मुम्बई के नामों की घोषणा की। चयनित सभी सभा व उपसभाओं को पुरस्कृत किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन महासभा के उपाध्यक्ष संजय खटेड़ ने किया।

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