शीतलराज मसा ने कहा साधक चाहे तो सभी पाप छोड़ सकते है
रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 22 अगस्त। पिछले चार दिनों से अठारह पापों पर केंद्रित अपने नियमित प्रवचन में शीतलराज मसा ने कहा साधक चाहे तो सभी पाप छोड़ सकते है। मनुष्य भव को प्राप्त कर परिवार में न उलझे। हमारी दृष्टि बदल जावे तो कितने ही पाप हो उससे बचा जा सकता है।
संसार के सब काम करते हुए भी हम चार पाप छोड़ सकते है। उन्होंने कहा पाप छोडऩे के लिए आत्मा सशक्त सावधान रहे तो छोडऩे में देर नहीं लगेगी। ज्यादा लोग आपस में मिले तो पाप एवं उसकी चर्चा भी बढ़ती है। हम ऐसा ज्ञान प्राप्त कर पापों से मुक्त होने का प्रयास करें तो हमारा जीवन अर्थात मानव जीवन सफल भी होगा। जिन महापुरुषों ने अठारह पाप त्याग कर साधना, आराधना के मार्ग पर चलकर स्वयं तीरे तथा बाकी को भी तिराए।
शीतलराज मसा ने कहा आत्मा, मैं कौन, मेरा कौन ये ज्ञान होने पर साधक अधिक से अधिक पाप से बच सकते है। कर्म बंधन से बच सकते है, यदि संवर की तरह आत्मा जाग जावे तो प्रमाद में बैठे भी अप्रमादी हो जाएंगे। भावना जागृत हो ये भव बार-बार नहीं मिलेगा। पापों से जुड़ोगे तो नीचे जाओगे। मनुष्य भाव को प्राप्त कर हम अठारह पापों का त्याग करें, सामायिक साधना, आराधना करें।
जिससे पाप भी कम होंगे। उन्होंने इंद्रियों का उल्लेख करते हुए कहा शरीर में यह बहुत मुल्यवान है, शब्द, रुप, गंध, स्वाद एवं स्पर्श का ज्ञान कराने वाले को ही सांसारिक जीवों के ज्ञान प्राप्त है। साधन ही इंद्रीय होता है पांच प्रकार की इंद्रियां पुण्यशाली को मिलती है। इन्हीं इंद्रियों से शुभ अशुभ कर्म बंधते है अर्थात अच्छा कम अच्छी प्रवृत्ति के द्वारा शुभ कर्मों में वृद्धि तथा दुरुपयोग हो तो अशुभ कम बंधते है।
अत: नौ तत्वों का ज्ञान होगा नए कर्म बंधन नहीं बंधेगे। उन्होंने राजा एवं प्रधान का सोदाहरण बताया। जीव तत्वों पर बोतले हुए मुनि श्री ने कहा पुदगल भी रुपी एवं अरुपी होते है। उन्होंने पुन: कहा हम सामायिक द्वारा पापों के आश्रव को रोककर संवर की आराधना कर सकते है तथा सामायिक काल में स्वाध्याय करने से पापों की निर्जला भी होती है। राग द्वेष में सम रहने सीखने की प्रक्रिया ही सामायिक है गत चार दिनों से लगातार रोग अठारह पापों की विशद व्याख्या कर उपस्थितजनों को इससे बचने का मार्ग दर्शन कर रहे है।
तपस्या के प्रेरक सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने अपने नियमित पचखान की प्रस्तुति में आज व्यासना, एकासना, आयंबिल, उपवास, तेला, पोरसी अपनी-अपनी धारणा को लेकर पचखान कराया। उन्होंने कहा रविवार 25 अगस्त को दया दिवस पर आप अपनी सहमति दें इससे जुड़े संवर का लाभ लें। संवर करने वालों का सम्मान, बहुमान, लाभार्थी संचेती परिवार द्वारा किया जा रहा है।