रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 1 सितंबर। श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत आज दिनांक 01/09/2024 को आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी ने कहा कि अभ्यास और साधना से जीवन में सुधार और बदलाव संभव है। जो पापी और दुर्बल मनोबल वाला व्यक्ति होता है वह भी नियमित अभ्यास के द्वारा अपने विचार और व्यवहार को पवित्र और सुन्दर बना सकता है।
पर्युषण का समय जीवन के शोधन और परिवर्तन का समय है। इस पर्व पर दूसरों की ओर नहीं झांककर अपनी और देखना चाहिये पर्युषण में उपवास और तपस्याएं होती है। पर केवल निराहार रहना ही तपस्या नहीं है , उसके साथ अपने शुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप के निकट निवास करना चाहिये ।
उप और वास मिल कर उपवास शब्द का निर्माण हुआ है, जिसका यही तात्पर्य है। कभी कभी तपस्या में क्रोध और आवेश की वृद्धि हो जाती है। यह उचित नहीं है। उपवास के साथ स्वाध्याय, जाप और ध्यान की साधना कर आत्मा के पवित्र स्वभाव में रमण करना चाहिये। साधक को अपने लक्ष्य को निर्धारण स्पष्ट करना चाहिये। लक्ष्य की स्पष्टता के बिना सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाता है। आज कल व्यक्तित्व विकास के प्रशिक्षण में लक्ष्य के निर्धारण में बल दिया गया है।
मुनिश्री नरेश कुमार जी ने गीतिका का संगम किया। तेरापंथ महिला मंडल ने मंगलाचरण किया।