छोटी उम्र से ही अलौकिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा एवं संस्कार देना जरूरी है…. 8 माह की शाम्भवी जैन प्रतिक्रमण, सामायिक की वेशभूषा, चरवला, आसन, मुँहपत्ति की प्रस्तुति दिया संदेश दिया

छोटी उम्र से ही अलौकिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा एवं संस्कार देना जरूरी है…. 8 माह की शाम्भवी जैन प्रतिक्रमण, सामायिक की वेशभूषा, चरवला, आसन, मुँहपत्ति की प्रस्तुति दिया संदेश दिया

बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं. सही शिक्षा, ज्ञान और अवसर देकर बच्चों को हर क्षेत्र में आने वाली कठिनाइयों से निपटने के लिए तैयार किया जा सकता है. आज भौतिक युग में बस्ते के बोझ तले दबे हुए हैं और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में वह कैसे श्रवण कुमार, ध्रुव या प्रहलाद बनेंगे. बच्चों को यदि राम, कृष्ण, महावीर या बुद्ध जैसा योग्य बनाना है तो उन्हें छोटी उम्र से ही अलौकिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा एवं संस्कार देना जरूरी है. इससे ही वे सदाचार, परोपकार और जीवन को जीने का तरीका सीख सकेंगे.

पर्युषण महापर्व के अवसर पर श्री जैन श्वेतांबर श्री संघ बिलासपुर के द्वारा बच्चों में धार्मिक सुसंस्कारों का बीजारोपण करने तथा सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रम्हचर्य जैसे जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों को विस्तार से जानने व आत्मसात करने की उद्देश्य से विभिन्न आयोजन किये जा रहे हैं.

इसी क्रम में एक अद्भुत और सराहनीय पहल महज 8 माह की शाम्भवी जैन के द्वारा की गई है. शाम्भवी श्रीमती पुष्पा जैन एवं श्री इंदरचंद बैदमुथा की सुपौत्री एवं डॉ. नेहा जैन एवं शितेष जैन की सुपुत्री है. उन्होंने प्रतिक्रमण, सामायिक करने की विधि, वेशभूषा, चरवला, आसन, मुँहपत्ति की प्रस्तुति के साथ सात्विक भोजन, आठ कर्म, पांच पाप, चार कषाय, ज्ञान, ध्यान, संस्कार और नैतिक शिक्षा का संदेश दिया.

मीडिया प्रभारी अमरेश जैन ने बताया कि पर्युषण जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. यह पर्व जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत अहिंसा के महत्व पर केंद्रित है. आठ दिनों के इस महापर्व के दौरान, जैन अनुयायी सर्वकल्याण की भावना के साथ आत्म-चिंतन, प्रार्थना, तप, और उपवास करते हैं और अपने जीवन में जैन आगम के सिद्धांतों को अपनाने का संकल्प लेते हैं.

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