रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 3 सितंबर। जैन मुनि श्री शीतलराज ने आज चरित्र दिवस पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन नियमित प्रवचन में कहा जो नवकार मंत्र को भाव सहित जाप कर ले यह संसार के सब मंत्रों को एक तरफ कर दें। नवकार मंत्र में गुणों की पूजा होती है। अनंत जीवों का नमन होता है। लेकिन नवकार मंत्र को नाम मात्र का न रखें।
उन्होंने नवकार मंत्र पर कहा यह हमारा मुख्य मंत्र है इसको जपने से पूर्व संचित कर्मों का क्षय होता है। मंत्र का णमों शब्द विनय का प्रतिपादक है नवकार मंत्र में वीतरागी तथा महान आत्माओं को नमस्कार किया गया है।
5 प्रकार की महान आत्माएं क्रमश: अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु इसमें देव 2 पद एवं गुरु पद 3 है। नवकार मंत्र की विशद जानकारी देते हुए कहा कि आज की पीढ़ी को इसको जानना जरुरी है। बच्चे, क्रिकेटरों, फिल्मी हस्तियों का नाम पूरा बता देंगे लेकिन महापुरुषों की जानकारी का अभाव है जबकि नवकार मंत्र 9 हजार करोड़ के साथ 27 गुणों का धारक है।
मुनि श्री ने कहा मनुष्य जीव दुर्लभता से प्राप्त होता है धन परिवार के पीछे मत दौड़ों। पाप से मुक्ति होगी तभी दुखों से मुक्ति होगी। आज चरित्र दिवस पर महापुरुषों की जीवनी जाना समझा उनके कष्टों को जाना। बेटा-बेटी को कितना भी पढ़ा लो जबकि संस्कार नहीं दिए तो पढ़ाना लिखाना बेकार है।
उन्होंने अंजना का दृष्टांत दिया जो साधु-साध्वियों से जुड़ी रही। ज्ञान कितना ही पाले मतिष्क ज्ञान काम करने वाल नहीं इसके साथ आचरण, ज्ञान चरित्र को जानना जरुरी है। घर में बच्चे, क्रिकेटरों, फिल्मी कलाकारों का नाम भले जाने काम नहीं आएगा।
महापुरुषों को याद करो चिंतन मनन करो, धर्म संस्कार के साथ पूरी पढ़ाई करो। धन वैभव का मद का त्याग किया। महापुरुषों ने तप तपस्या सामायिक की उन महापुरुषों को याद करें। सहनशीलता धैर्यता अपने जीवन में आएगा। वैसे भी जिसको धर्म ध्यान सीखना हो देरी नहीं लगती। 35 पेज के प्रतिक्रमण सूत्र के लिए समय निकाले। आज भी आप लोगों ने अंतगडदसांग सूत्र अध्याय वर्ग को जाना। आज चरित्र दिवस है चरित्र दिया नहीं जिया जाता है।
उन्होंने कहा तीर्थंकर भगवतों ने अपनी वाणी के माध्यम से पहले स्वयं तीरने के मार्ग पर लगे और लगते-लगते प्रबल पुरुषार्थ द्वारा चरित्र का संयम का पालन कर राग द्वेष को समाप्त किया।
प्रारंभ में इंदौर से आए सुश्रावक बंधुओं तथा वाचक शिखरचंद छाजेड़ एवं विमलचंद तातेड़ ने आज तीसरे अंतगडदसांग सूत्र पर कई दृष्टांतों का उल्लेख करते हुए देवकी श्रीकृष्ण वासुदेव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अनिक सेन कुमार पर बोले।
कहा गजसुकुमाल का जीव पूर्व भव में एक राजा की एक रानी थी उसकी सौतेली रानी के पुत्र होने से वह बहुत आहत थी वह चाहने लगी की किसी भी तरह से उसका पुत्र मर जाए। रानी ने अपने बेटे के सिर में फोड़ा होने उड़द की मोटी गरम रोटी बच्चे की सिर में बांधकर मार डाला। 9999999 भव के बाद बच्चे का जीव सोमिल एवं माता का जीव सोमा कन्या तथा मारने वाला जीव गजसुकुमाल के रुप में उत्पन्न हुआ।
इसके पूर्व बैर की स्मृति से सोमिल को तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और बदला लेने के लिए ध्यानस्थ मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर खैर के धधकते अंगारे रखे। वाचक द्वय ने गजसुकुमाल व दीक्षा लेने इत्यादि ने कृष्णा वासुदेव देवकी की भूमिका का उल्लेख किया। अत: सकल कर्मों के क्षय होने से वे गजसुकुमाल अनगार कृत्य-कृत्य बनकर सिद्ध पद को प्राप्त हुए। लोका लोक के सभी पदार्थों के ज्ञान से बुद्ध हुए। गजसुकुमाल अंत में मोक्ष को प्राप्त हुए।
पाटानुपात परंपरा अनुसार गणधरों से आचार्यों के हाथ होता हुआ लिपि बद्ध होता हुआ ऐसे ही एक सूत्र के रुप में रहा। वाचकों ने कहा पर्युषण पर्व का दिन अवसर मिला। ज्ञान दर्शन चरित्र से अपने अपने आत्मा को शुद्ध कर जीवन को सफल बनाए। इस अवसर पर एक बालिका ने गीत प्रस्तुत किया। शीतल गुरु की बगिया में ज्ञान।
सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने आज मोहित चौरडिय़ा को 26 का पचखान, संदीप मुथा 8 का, प्रभावती, कांता नाहटा, अनिता, रिया, अक्षय, अर्पित, आयुषी, तान्या भंलासी, प्रेमलता सुराना, सेजल भंडारी, जतन बाई बेगानी, श्रीमत शोभा, विकास इत्यादि को पचखान कराया। रात्रि संवर वालों व अन्य का लाभार्थी संचेती परिवार द्वारा बहुमान किया गया।
नियमित रुप से नवकार मंत्र का ज्ञाप भी लगातार चल रहा है। जिसमें महिला-पुरुष बच्चे भाग ले रहे है तथा सभी तप तपस्या सामायिक प्रतिक्रमण इत्यादि में भाग लेने वालों के लिए भोजन शाला में पर्याप्त व्यवस्था की गई है। मध्यप्रदेश, राजस्थान सहित अन्य स्थानों से बाहर से पहुंचे 50 से अधिक महिला-पुरुष बच्चे शीतलराज मुनि मसा के सानिध्य में धर्म चर्चा का ज्ञान मंगल पाठ के साथ नियमित रुप से लाभ ले रहे है।