अंबिका जैन भवन में पर्युषण पर्व के छठे दिन मनाया ब्रह्मचर्य दिवस
अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 6 सितम्बर। मानव जीवन का लक्ष्य संयम व अध्यात्म की तरफ आगे बढ़ना होना चाहिए। ब्रह्मचर्य तप की आराधना करके जीवन को पावन व सार्थक बना आत्मकल्याण कर सकते है। जो पवित्र आत्माएं इस धरा पर हुई उन्होंने इस तप की साधना की। भौतिक सुखों का त्याग कर कामनाओं को संयम से ही जीता जा सकता है। हम बाहर के नहीं अपनी आत्मा के भीतर जो दुश्मन मौेजूद है उनको पहचान कर उनको समाप्त करना है।
ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा. ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के छठे दिन शुक्रवार को अंबिका जैन भवन में ब्रह्मचर्य दिवस पर आयोजित प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचर्य की साधना यानि संयम की साधना है। जो जीवात्मा ब्रह्मचर्य का पालन करती है उसका जीवन संयमी आत्मा के समान हो जाता है। संयम का मुख्य आधार ही ब्रह्मचर्य है।
संयम की साधना किए बिना ब्रह्मचर्य की साधना सफल नहीं हो सकती है। सेवारत्न हरीशमुनिजी म.सा. ने कहा कि पंच महाव्रत में से एक महाव्रत ब्रह्मचर्य है। इस तप की साधना कठिन है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है। मन के विकारों को छोड़ने के लिए ब्रह्मचर्य की पालना करनी होती है। भीष्म पितामह, स्वामी विवेकानंद,महात्मा गांधी जैसे कई महापुरूष हुए जिन्होंने ब्रह्मचर्य तप की साधना की।
उन्होंने कहा कि जो प्राणी आत्मा में रमण करता है वह ब्रह्मचर्य की पालना करता है। साधना हमेशा वासनारहित होती है। इस साधना के बल पर पतित से पतित आत्मा भी तिर जाती है तो वासना का शिकार होने पर अच्छे से अच्छा आदमी भी गिरा हुआ आचरण कर जाता है। ब्रह्मचर्य की साधना करके ही आत्मकल्याण किया जा सकता है। युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जीवन को सार्थक बनाने में सबसे अहम भूमिका ब्रह्मचर्य की साधना की है।
जो प्राणी इस साधना को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेता है वह इस भव के साथ अपना अगला भव भी सुधार लेता है। जो वासना में डूब ब्रह्मचर्य की साधना नहीं करता उसे जीवन में कई तरह की परेशानियों व कष्टों का सामना करना पड़ता है। मधुर व्याख्यानी हितेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि ब्रह्मचर्य में ब्रह्म का अर्थ आत्मा ओर चर्य का अर्थ रमण करना है यानि जो आत्मा में रमण करता है वहीं ब्रह्मचारी होता है। भावों के साथ इसका पालना किया जाना चाहिए।
गृहस्थ में रहते हुए भी भाव शुद्ध हो तो ब्रह्मचर्य का लाभ मिलता है। भाव अशुद्ध रहने पर लाभ नहीं मिल पाएगा। उन्होंने अंतगड़ दशांग सूत्र के छठे वर्ग के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचन करते हुए अर्जुन मालाकार प्रसंग की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह अंतिम समय में मति सुधरने से उसकी गति भी सुधर जाती है।
प्रार्थनार्थी सचिन मुनिजी ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए इन्द्रियों पर संयम रखना सीखना होगा। इन्द्रियों पर संयम रखने पर ही ब्रह्मचर्य की साधना कर पाएंगे। जिसके इन्द्रियां वश में नहीं होती वह जीवात्मा कभी इस संसार सागर से पार नहीं जा सकती। सभी इन्द्रियों ओर मन को साधक अपने वश में रखे तभी वह ब्रह्मचर्य की साधना कर पाएगा। इस साधना से जुड़कर असीम आनंद की अनुभूति होगी।
पर्युषण में तप के लगे ठाठ, अनिताजी के 27 एवं दिलखुशजी के 12 उपवास
पर्युषण पर्व में तप आराधना व धर्म साधना का दौर जारी है। पर्युषण के चौथे दिन सुश्राविका अनिता धर्मेशजी माण्डावत ने 27 उपवास एवं सुश्राविका दिलखुश राजेन्द्रजी सियाल ने 12 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। इनके साथ सुश्राविका शिल्पा कमलेश बागरेचा, आयुषी केवलजी सियाल, रेखा दिनेशजी लोढ़ा, प्रीति विनोदजी लोढ़ा, सीमा नरेशजी मादेरचा ने 6-6 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल व एकासन के प्रत्याख्यान लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया।
दोपहर में प्रार्थनार्थी सचिनमुनिजी म.सा. ने कल्पसूत्र का वांचन किया। मधुर व्याख्यानी हितेशमुनिजी म.सा. के मार्गनिर्देशन में जैन हाउजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। शाम को प्रतिक्रमण का आयोजन किया गया। पर्युषण में प्रतिदिन सुबह 6 से शाम 6 बजे तक 12 घंटे नवकार महामंत्र जाप का आयोजन भी जारी है। पर्युषण पर्व के सातवे दिन 7 सितम्बर को समभाव दिवस मनाया जाएगा। दोपहर में जय महावीर प्रतियोगिता का आयोजन होगा।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627