हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ), 24 सितम्बर। जिंदगी का सफर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं। समाधिपूर्वक जो अपनी आयुष्य पूर्ण करने वालों की सोच यहीं रहती है कि जिंदगी से प्यार बहुत हमने किया मरने का समय आया तो मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम। दुनिया में रोते हुए सब आते है पर हंसते हुए जाने की जिसकी तैयारी रहती है उसका जन्म-मरण बहुत सीमित हो जाता है। जीवन का सफर ऐसी राह है जिसमें राही को भी पता नहीं आगे कौनसा मोड़ आने वाला है। मोड़ पर समझदारी रखे तो कितना भी अंधा मोड हो दुर्घटना से बचा लेंगे।
ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में मंगलवार को सात दिवसीय विशेष प्रवचनमाला एकाउन्ट ऑफ कर्म का दूसरे दिन व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पाप का घड़ा पूरा भरे उससे पहले त्याग तपस्या शुरू कर दे। पाप का घड़ा फूटने से पहले धर्म स्वीकार कर ले तो वह खाली होना शुरू हो जाता है।
हम पाप का घड़ा खाली करना तो दूर हम दूसरे घड़े भरने लग जाते है ओर खाली करने के सुनहरे काल को बर्बाद कर देते है। हम जिसके लिए समय निकालना चाहिए उसके लिए समय ही नहीं होता तो एक दिन वह समय भी आता है जब समय ही समय होता पर करने को कुछ नहीं होता। मुनिश्री ने कहा कि हम अपने बच्चों की, स्वास्थ्य की, रिश्तेदारों की, पड़ौसी की चिंता होती है पर अपनी खुद की चिंता नहीं करते है।
हम अपने नहीं रहने पर परिवार को तकलीफ नहीं आए इसकी व्यवस्था करके रखते है पर मरने के बाद हमको तकलीफ नहीं आए इसका प्रबंध नहीं करते है। मरने के बाद तकलीफ से बचना है तो आत्मा की परवाह करनी होगी ओर उसे धर्म के पथ से जोड़ना होगा।
प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘मनुष्य जन्म अनमोल रे’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में नंदुरबार व जामनेर का श्रीसंघ भी मौजूद मौजूद था। बेंगलौर से पधारे जैन कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ मार्गदर्शक सुरेश छल्लानी, नंदरुबार संघ के प्रकाश कोचर, मनोज कोठारी आदि का ग्रेटर हैदराबाद संघ की ओर से स्वागत किया गया। बेंगलौर, चैन्नई, नासिक आदि क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे।
व्रति श्रावक बनने पर ही जिनशासन में जन्म लेना सार्थक
प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने व्रति श्रावक बनने की प्रेरणा देेते हुए कहा कि यदि हम जैन कुल में जन्म लेकर भी 12 व्रत में से कम से कम एक व्रत भी स्वीकार कर व्रति श्रावक नहीं बन पाए तो हमारा जिनशासन में जन्म लेना सार्थक नहीं हो सकता। हमे खुद व्रति श्रावक बनने के साथ अपने परिवार को भी व्रति श्रावक बनाना है। संकल्प ले हम अपना जीवन व्रति श्रावक बनकर जीएंगे। उन्होंने बताया कि 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत या इससे अधिक की दीक्षा ग्रहण करेंगे।
चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी। भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र की दीपावली तक चलने वाली आराधना 10 अक्टूबर से शुरू होगी।
निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
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