श्रद्धांजलि… स्व. महोबे मैडम, सादगी जिनका श्रृंगार था…(एक विद्यार्थी)

श्रद्धांजलि… स्व. महोबे मैडम, सादगी जिनका श्रृंगार था…(एक विद्यार्थी)

    राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ) 15 अक्टूबर। बच्चों सी खुलकर हंसने वाली, एक कक्षा से निकलकर केमिस्ट्री की दूसरी कक्षा की ओर सरपट जाती हुई और अचानक ठहरकर स्टूडेंट्स से हाल-चाल पूछने वाली मैडम, डॉक्टर हेमलता जी महोबे विगत दिनों हम सबसे बहुत दूर चली गयीं. महोबे मैडम की केमिस्ट्री क्लास में केवल दो आवाजें सुनाई देती थीं, एक मैडम की और दूसरी ब्लैक बोर्ड पर उनके चाक के निरंतर टकराने की. पढ़ाने की उनकी रफ़्तार ऐसी होती थीं कि स्टूडेंट्स को परस्पर बातें करना तो दूर एक दूसरे को देखने का वक्त भी नहीं मिलता था।

क्योंकि हम सभी को इस बात की फिक्र रहती थी कि मैडम के द्वारा बताई और लिखाई जा रहीं कोई लाइन छूट ना जाये. उनकी प्रत्येक पंक्तियाँ आई एम पी लगती थीं. क्लास लेकर बाहर निकलते हुए मैडम के हाथ चाक की सफेदी से सने होते. क्लास से उनके बाहर जाते ही स्टूडेंट्स अगल-बगल से अपनी कापियां मिलाने में मशगूल हो जाते थे कि जल्दी में कोई पॉइंट लिखना छूट तो नहीं गया ।

 माँ की छवि वाली डॉक्टर हेमलता जी महोबे के गुजर जाने के समाचार ने मुझे स्तब्ध कर दिया. ममत्व से भरा उनका मार्गदर्शन और उबाऊ माने जाने वाले केमिस्ट्री विषय को सहजता से समझाने वाली बेमिसाल शिक्षिका अब हमारे बीच नहीं रहीं ! बिना तड़क-भड़क वाली सादी साड़ी में किसी साध्वी सी लगने वाली महोबे मैडम से साइंस के साथ दूसरे विषयों के स्टूडेंट्स भी अदब से पेश आते थे. आजीवन सादगी ही उनका श्रृंगार था.

दिग्विजय कॉलेज के दादा-नुमा वे स्टूडेंट्स जो बाजुओं की मसल्स दिखाने के लिए हाफ आस्तीन वाली  अपनी  शर्ट के दोनों आस्तीनों को भी दो बार मोड़ कर पहनते थे, वे भी मैडम महोबे को देखते ही अपनी आस्तीन ठीक कर लेते थे. इसलिए नहीं कि वे मैडम से डरते थे या मैडम स्ट्रिक्ट थीं, बल्कि इसलिए कि मैडम की सरलता और अपनत्व भरे व्यवहार के वे भी कायल थे. मैथ्स विषय के साथ बीएससी पूरा करने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन (पीजी) में मैंने जब फिजिक्स विषय लेना चाहा तो मैडम ने मुझे फिर से विचार करने के लिए कहा क्योंकि उस समय तक दिग्विजय कॉलेज में फिजिक्स सब्जेक्ट में पी-जी करने की सुविधा नहीं थी.

हमारे कॉलेज में उस समय तक केवल, मैथ्स और केमिस्ट्री में पीजी कर पाने की सुविधा थी. यानी फिजिक्स विषय के लिए मुझे रायपुर में एडमिशन लेना पड़ता. ग्रेजुएशन (बीएससी) में  मार्क्स अच्छे होने के कारण फिजिक्स विषय में पी-जी करने के लिए प्रदेश के लिए निर्धारित सीमित सीटों में मेरा चयन भी हो गया. दिग्विजय कॉलेज छोड़कर रायपुर जाने के अपने निर्णय पर मैं विचार मंथन कर रहा था क्योंकि फिजिक्स के साथ एनसीसी की सुविधा रायपुर में नहीं थी जबकि एनसीसी में मेरी गहरी रूचि थी और इस बात को महोबे मैडम जानती थीं कि मैं सेना (मिलिट्री) में 

अपना करियर देख रहा हूँ और 

वहां सिलेक्शन के समय एनसीसी के सर्टिफिकेट्स की बहुत अहमियत है.अंतत: श्रद्धेय मैडम की सलाह से मैंने मैथ्स में पीजी करना तय किया क्योंकि दिग्विजय कॉलेज में मैथ्स के साथ मैं एनसीसी भी कर सकता था. आगे नेशनल लेवल की एडवांस लीडरशिप कैंप के लिए मेरा चयन हुआ. साथ ही एनसीसी के ‘सी सर्टिफिकेट’ की परीक्षा को मैंने अंडर ऑफिसर रैंक के साथ पास किया. परन्तु नियति को मंजूर कुछ और था. बड़े भाई की अचानक मृत्यु के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण मुझे घर (खैरागढ़) के नजदीक रहना आवश्यक लगा.

सेना के अतिरिक्त किसी अन्य सरकारी नौकरी करने की मुझमें रूचि नहीं थी इसलिए राजनांदगांव जिले में करियर कोचिंग (जिले का प्रथम कोंचिंग संस्थान) की शुरूआत करके सैनिक के बदले शिक्षक बनना  मैंने  तय किया. यह उस समय (1992 तक) का दौर था जब कोचिंग के लिए भिलाई का दबदबा था. इस कारण राजनांदगांव जैसे स्थान में कोचिंग संस्थान शुरू करने के मेरे निर्णय के पक्ष में अनेक वे लोग भी नहीं थे।

जिनका शिक्षा जगत में नाम था. परन्तु महोबे मैडम ने राजनांदगांव में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए वातावरण निर्माण के लिए यहाँ कोचिंग खोलने के मेरे निर्णय को जरूरी और साहसी कदम कहकर मुझे प्रोत्साहित किया. मेहनत और पढ़ने-पढ़ाने की रुचिकर विधियों के कारण करियर कोचिंग को अच्छी सफलता मिली. 

कुछ समय बाद नई संकल्पनाओं और सुविधाओं वाले प्राइवेट स्कूल्स के साथ नए कोचिंग संस्थान भी राजनांदगांव में खुलते गए. राजनांदगांव जिले में प्रतियोगी परीक्षाओं के वातावरण को आम आदमी तक ले जाने की मंशा में एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र में मैंने ‘करियर’ नाम से शैक्षिक स्तंभ (धारावाहिक) की शुरुआत की.

इस स्तंभ में प्रकाशित सामग्रियों का प्रभाव इस कदर था कि केमिस्ट्री विषय के आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) से संबंधित अंक को गाँव के एक सैलून की दीवारों में चिपका हुआ मैंने देखा.इस अंक को पढ़कर स्व महोबे मैडम ने मुझे फ़ोन किया. उन्होंने कहा ” योगेश, केमिस्ट्री तुमने मुझसे सीखा परन्तु तुम्हारे इस अंक (लेख) में केमिस्ट्री के एलिमेंट्स (तत्वों) के गुणों को तुमने जिस सरलता से समझाया है उसे पढ़कर मुझे लगता है कि मेरा शिष्य अब शक्कर हो गया है …” उसी शाम मैडम का आशीर्वाद लेने मैं उनके बलदेव बाग़ स्थित निवास स्थान में गया. दरअसल यही तो उस विदुषी की विशेषता थी कि स्वयं को छोटा करके भी अपने शिष्यों को प्रोत्साहित करने का अवसर वे तैयार कर लेती थीं !

— योगेश अग्रवाल, एक विद्यार्थी, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़. 

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