तेरापंथी सभा वीरगंज नेपाल के तत्वावधान में तेरापंथ भवन में स्वागत कार्यक्रम…. जागने का अर्थ है स्वयं को जानना- मुनि रमेश कुमार

तेरापंथी सभा वीरगंज नेपाल के तत्वावधान में तेरापंथ भवन में स्वागत कार्यक्रम…. जागने का अर्थ है स्वयं को जानना- मुनि रमेश कुमार

वीरगंज नेपाल (अमर छत्तीसगढ) 7 दिसम्बर।

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रबुद्ध सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी सहयोगी मुनि रत्न कुमार का श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा वीरगंज के तत्वावधान में तेरापंथ भवन में स्वागत कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

स्वागत कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुनि रमेश जी कुमार ने कहा:- संत जागृति का संदेश देते हैं। जागने के अर्थ को सम्यक तरीके से सिखाते हैं। जागने के महत्व को समझे। जागना क्या होता है ।
व्यक्ति प्रात:काल अंगड़ाई लेते हुए जागता है। उसे लगता है कि मैं जागा हुआ हूं, पर तथ्य यह है कि वह जागा हुआ नहीं है। उसका यह भ्रम आजीवन उसे दौड़ाया करता है।

कोई धनार्जन की भूमिका बनाता रहता है। कोई लोकेषणा की पूर्ति में खोखला प्रदर्शन करता रहता है। इससे इतर कुछ पद, प्रतिष्ठा की दौड़ में ही लगे रहते हैं, कुछ प्रपंच में पूरा जीवन बिता देते है। कोई दूसरे की प्रगति देखकर इर्ष्या से जल-भुन जाता है।

आपने आगे कहा- सच तो जागे हुए व्यक्ति की पहचान नहीं है। यह मात्र जागते हुए को छलना है। वास्तव में ये सभी क्रियाएं नींद की पर्याय है। अधिकांश व्यक्ति सोए हुए है। सुविधाओं की लंबी सूची बनाकर उनकी पूर्ति में पूरा जीवन खपा देते है। उन्हे जाग्रत-स्वप्न की संज्ञा दी जा सकती है। इस जाग्रत स्वप्न से उबरने के लिए बाहर की नहीं भीतर की यात्रा अपेक्षित है। सच्चे अर्थो में जागरण तभी होता है जब व्यक्ति का जीवन में प्रपंच से वियोग होता है। तब वह आत्मानुभूति की परिक्रमा करता है।

व्यक्ति पदार्थ को प्राप्त करना ही ध्येय मानकर उसकी प्राप्ति हेतु दौड़ता रहता है। इसे कभी जागा हुआ नहीं स्वीकार किया जा सकता। जागता वह है जो वैराग्य का मुखापेक्षी होता है। लोकसेवी जागता है।

प्रेम के दीवाने जागते है जिन्हे केवल देने की ही सुधि रहती है, पाने की नहीं। जागने का अर्थ है स्वयं को जान लेना। जब व्यक्ति स्वयं को जान लेता है तो वह जागरण की बेला कही जाती है। संसार सो रहा है, नींद में गाफिल है। जाग्रत स्वप्न को कहता है हम जागे हुए है। जागरण ही मानव जीवन की सार्थकता है।

सामान्यजन मानव जीवन को कैसे सार्थक किया जाए, इस बात को जानते ही नहीं और जानने की कोशिश भी नहीं करते। यह मानव जीवन भोग के लिए नहीं मिला। जो यह नहीं सोचते हैं उन्हें जीवन के अंतिम समय में पछताना पड़ता है, जब शरीर पूरी तरह असमर्थ हो जाता है। समय रहते यदि हम अपने आपसे और मानव जीवन के उद्देश्य से भलीभांति परिचित हो गए तभी हम अपना जीवन सार्थक कर सकेंगे।
मुनि रत्न कुमार जी ने सभी को संतों के प्रवास का अधिक से अधिक लाभ लेने की प्रेरणा दी।

ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने महाप्रज्ञ अष्टम से मंगलाचरण किया। तेरापंथ सभाध्यक्ष दिलिप जी कोठारी ने पूरे समाज की ओर संतों का स्वागत करते हुए अधिक से अधिक वीरगंज प्रवास का निवेदन किया। तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती बबीता खटेड, तेयुप के अध्यक्ष लोकेश जम्मड, ते.महासभा के का.स. निर्मल कुमार जी सिंघी, तेरापंथ सभा के सलाहकार बंशीलाल जी बोथरा, ज्ञानशाला प्रशिक्षिका श्रीमती राजु देवी डागा, समण संस्कृति संकाय के आंचलिक संयोजिका श्रीमती तारा देवी राखेचा आदि अनेक वक्ताओं ने संतों के स्वागत कार्यक्रम में अपनी अपनी संस्थाओं की ओर से स्वागत किया।
सुश्री हर्षिका भंसाली ने कविता के माध्यम से संतों का स्वागत किया। तेरापंथ सभा ,तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल ने एक साथ स्वागत गीत का संगान किया।

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