सिर्फ पेट भरने में हम 23 विषयों की पुष्टि कर लेते हैं -साध्वी प्रियंकरा श्रीजी

सिर्फ पेट भरने में हम 23 विषयों की पुष्टि कर लेते हैं -साध्वी प्रियंकरा श्रीजी

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 17 जनवरी। जैन साध्वी प्रियंकरा श्री जी ने आज यहां कहा कि हम सिर्फ पेट भरने में ही 23 विषयों की पुष्टि कर लेते हैं।स्पर्श इंद्रिय, रसना इंद्रिय, घ्राणेंद्रीय, चक्षु  इन्द्रिय  एवं श्रोतेंद्रीय का उपयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि  हम खाने में यह देखते हैं कि वह गर्म है कि नहीं , वह नरम है कि नहीं, वह तेल से बना हुआ है कि नहीं, वह लजीज है कि नहीं आदि।


      साध्वी श्री जी ने कहा कि इसी तरह हम यह देखते हैं कि खाने में खटाई है कि नहीं, मीठा है कि नहीं , खट्टा मीठा दोनों है कि नहीं, कड़वा तो नहीं है , कसैला तो नहीं है, नमक बराबर है कि नहीं, तीखापन तो ज्यादा नहीं है। इसी तरह हम यह भी देखते हैं कि वह सुगंधित है या नहीं , उसमें मसाले आदि पूरे पड़े हैं कि नहीं, उसमें खुशबू है कि नहीं आदि। इसके अलावा हम यह भी देखते हैं कि वह कैसा दिख रहा है। खाने के समय यदि संगीत बज रहा हो तो खाने का मजा ही कुछ अलग है। साध्वी श्री ने कहा कि सिर्फ पेट भरना है लेकिन हम 23 विषयों की पुष्टि कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि यह राग है और कौन सा राग किस कदर हमारे जीवन में बाधक बने , दुर्गति का कारण बने इस संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए जैसा भी भोजन मिले उसे संतुष्ट मन से ग्रहण करें।

जब तक ह्रदय में परिवर्तन नहीं, तब तक सुधार संभव नहीं – संवेग रतन सागर जी

जैन मुनि श्री संवेग रतन सागर जी ने कहा कि जब तक ह्रदय परिवर्तन नहीं होता तब तक सुधार की कोई संभावना नहीं होती। उन्होंने कहा कि पाप हमारे विनाश का कारण है। जीव कठोर होता है तो वह किसी  चीज को ग्रहण आसानी से नहीं करता और सद्भावना व संवेदनशीलता रूपी फूल को वह प्राप्त नहीं कर पाता। उन्होंने कहा कि कुछ ग्रहण करना है तो मिट्टी का घड़ा बनो, पीतल का नहीं।


      मुनि श्री संवेग रतन सागर जी ने कहा कि मिट्टी के घड़े का जल शीतल इसलिए रहता है कि उसने कई छिद्र होते हैं और जिससे भीतर वायु प्रवेश कर जल को शीतलता प्रदान करते हैं , जबकि पीतल कठोर होता है और उसमें छिद्र नहीं होते इसलिए उसका पानी ठंडा नहीं हो पाता। कुछ पाने के लिए उसे ग्रहण करने वाला होना चाहिए। शीला के समान जिसका हृदय कठोर होता है उसके भीतर हित की बात भी प्रवेश नहीं करती। जब तक उसका हृदय परिवर्तन नहीं होता तब तक वह सुधर नहीं सकता।
    मुनि श्री ने कहा कि वर्तमान शिक्षा कॉम्पिटीशन पर आधारित है। उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा जानकारी ,बोध एवं ज्ञान तो करा देती है किंतु उपयोगिता के बारे में नहीं बताती। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पानी कैसे बनता है, इसकी जानकारी आज की शिक्षा दे देती है।यह “एच2ओ” से बनता है, इसका बोध भी करा देती है और ज्ञानी भी बना देती है किंतु पानी का उपयोग कैसे करना चाहिए इस संबंध में नहीं बताती। उन्होंने कहा कि जब तक जीव संवेदनशील नहीं बनेगा, उसमें करुणा के भाव नहीं आएंगे तब तक पाप से बचने का प्रयास जीव नहीं करता। बुद्धि को सद्बुद्धि और दर्शन को सम्यक दर्शन परमात्मा ने बनाया। मानव जीवन महान बनने के लिए है , बड़ा बनने के लिए नहीं। विज्ञान हमें बड़ा बनना सिखाता है किंतु आध्यात्म हमें महान बनने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि जो जीवों को मन में स्थान देता है, वही महान होता है।

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