राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 31 दिसम्बर।
प्रत्येक व्यक्ति धन , सम्मान व सुंदरता चाहता है , हम नैसर्गिक कब बनेंगे , हममें नैतिकता कब आएगी । हम अपने एकांत को पवित्र बनाएं , अकेले रहने का प्रयास करें । पवित्रता एकांत में है । हम अकेले रहते हैं तो भयभीत हो जाते हैं , मन को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए । कब बोलना , कहां बोलना , कितना बोलना , सार्थक , संतुलित , नपातुला व अध्ययन के साथ बोलना जीवन की सार्थकता को सिद्ध करेगा ।
जिसे बोलना , सुनना व ग्रहण करना आ जाए समझो उसने प्रभु को प्राप्त कर कर लिया । दुर्वा , शमीपत्र एवं बेलपत्र में चुंबकीय तत्व होता है , विद्युत तरंगे हुआ करती है । किस उंगली से दूर्वा , शमीपत्र व बेलपत्र को तोड़ा एवं चढ़ाया जाए इसका अलग महत्व है । एक-एक तरंगों का महत्व हुआ करता है ।
घर में मांगलिक कार्य रुके हुए हो तो मछली को दाना देना चाहिए । उक्त उद्गार आज यहां श्री हनुमान श्याम मंदिर में 18 दिवसीय संत समागम एवं सुंदरकांड महाकुंभ के अवसर पर आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस अरजकुंड निवासी को प्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित दिग्विजय शर्मा ने व्यासपीठ से व्यक्त किए ।
श्री श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से नरेंद्र शर्मा एवं राजेश शर्मा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार संत श्री ने आगे कहा कि महादेव का गन्ने के रस में दूध मिलाकर अभिषेक करने से घर की गरीबी दूर हो जाती है ।
व्यक्ति के पास अनेक विकल्प रहते हैं जब वह हार जाता है एवं सारे विकल्प समाप्त हो जाते हैं तब उसे गोविंद याद आते हैं , महादेव याद आते हैं । द्रौपदी ने सारे विकल्प आजमाये , अंत में हार कर गोविंद को याद किया तब प्रभु दौड़े चले आए । श्री गणेश उत्पत्ति की कथा का सविस्तार वर्णन करते हुए संत श्री ने कहा कि प्रमादिता से सर कट जाता है ।
श्री शिव महापुराण की कथा कहती है कि मानव की आकृति में सबसे पहले कन्या का आगमन हुआ । सृष्टि निर्माण से पूर्व स्त्री आई । घर में कन्या जन्म हो तो उत्सव मनाए , मंगलगीत गावे , शहनाई , नगाड़ा बजाए , मिठाइयां बांटे । ऐसा समझे कि सृष्टि की उत्पत्ति हुई है एवं साक्षात महालक्ष्मी पधारी है ।
जहां कन्या का आदर होता है वहां स्वयं महादेव विराजमान होकर निवास करते हैं । सनातन संस्कृति में धरती को , भारत को , गाय को एवं गंगा को माता का स्थान प्रदान किया गया है । यह भारत भूमि स्त्री प्रधान है इसीलिए राधेश्याम ,सीताराम , गौरीशंकर कहा जाता है।
संत श्री ने कहा कि किसी की बुराई ना करें, ना ही सुने एवं ना ही देखें । बोलने का तरीका ऐसा हो जिससे शांति आ जाए । उथल-पुथल दूर हो जाए । स्वर ईश्वर से जोड़ता है । कोयल की आवाज मधुर लगती है अपना प्रभाव ( औरा ) इतना बनाए कि देखकर ही अनुभव हो जाए । मंत्र में बड़ा नांद है । एक एक शब्द ओंकार मंत्र हो जाए । मंत्र से ही ध्रुव एवं प्रह्लाद ने परमेश्वर को प्राप्त किया । सुंदरकांड दिव्य जीवन को प्रदान करता है । गुरु , माता-पिता एवं सास के चरणों की रज से मती शुद्ध हो जाती है । महादेव कहते हैं कि मैं प्रत्येक क्षण प्रत्येक स्थान पर हमेशा उपस्थित रहता हूं। संतश्री ने कहा कि मंत्र बीज है । धरती का बीज जल है , जल का बीज अग्नि है , अग्नि का बीज वायु है । वायु का बीज आकाश है । आकाश का बीज अनंत है , खुलापन है , खालीपन है । सूक्ष्म मन , बुद्धि , चित्त से तत्वों में तरंगों का संसार प्रकट होता है । तरंगों के माध्यम से बात दूर तक पहुंच जाती है । पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय की महिमा बताते हुए संत श्री ने कहा कि मनुष्य इस महामंत्र के केवल एक बार जप कर लेने से भवसागर से पार हो जाता है ,यह मंत्र जन्म जन्मांतरों के पापों को दूर कर देता है ।
कथा प्रसंग को आगे बढ़ते हुए संतश्री ने कहा हमें अपनी जवानी डिप्रेशन या व्यसन में खराब नहीं करनी चाहिए । व्यसन का अर्थ है प्रदर्शन । यह धरा देवी स्वरूप है , इसका कपड़ा समुद्र है जो ढका हुआ है । दिखावे की भावना रखता व्यसन है । जिसकी जवानी व्यसन में , डिप्रेशन में चली गई ,समझो उसका बुढ़ापा बिगड़ गया । सबकी माता तपस्विनी होती है तथा पिता पुरुषार्थी होता है । मन को स्थिर रखना सीखें। मंदिर में , घर में , व्यापार में झुकना सीखें , तभी सफल हो पाएंगे । दुख आए तो घबराना नहीं चाहिए । दुख को सहकार आगे बढ़े , दुख शीघ्र दूर हो जाते हैं । दुख से घबराने वाले का कल्याण नहीं हो पाता । हम जैसी कल्पना करते हैं हमें वैसा ही प्राप्त होता है। माता सीता ने सोने के मृग को प्राप्ति की अभिलाषा की , तो उन्हें सोने की लंका में रहना पड़ा । सीता प्रकृति है, बिटिया प्रकृति है। प्रकृति का , जल का , अन्न का संवर्धन करें । झिल्ली , प्लास्टिक डिस्पोजल का त्याग करें जिससे जीव एवं धरती की रक्षा होगी।
संत श्री ने कहा कि पति-पत्नी का मन एक होना चाहिए दो तन होकर भी एक मन सुखद गृहस्थी की नींव रखता है । आपस में मतभेद को पर मनभेद ना हो , अन्यथा गृहस्थ टूटने में देर नहीं लगती । घर की लड़ाई को ब्रह्म भी शांत नहीं कर सकते । ” मेरा परिवार मेरा तीर्थ बने ” इस ध्येय वाक्य को पालन करना जीवन की सार्थकता प्रदान करता है । शिवलिंग के प्रादुर्भाव की कथा बताते हुए संत श्री ने ब्रह्मा एवं नारायण के मतभेद की कथा सुनते हुए कहा कि नारायण के द्वारा सत्य कहने पर उन्हें महादेव ने सत्यनारायण का नाम प्रदान किया तथा असत्य कहने पर ब्रह्मा जी को श्राप दिया । हमें हमेशा सत्य कहने , सुनने का अभ्यास करना चाहिए । संतान प्राप्ति के लिए पुष्कर के ब्रह्मा जी का दर्शन करना पुण्य लाभ प्राप्त प्रदान करता है । देवी की एक परिक्रमा , नारायण की तीन तथा शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है । वहीं माता-पिता की अनेक परिक्रमा का फल बताया गया है ।
प्रेषक :
अशोक लोहिया