18 दिवसीय संत समागम एवं सुंदरकांड महाकुंभ में श्री रामचरितमानस कथा…. हमारे भीतर का राम नहीं जागा है अतः बार-बार रावण जला रहे- भक्ति प्रभा जी

18 दिवसीय संत समागम एवं सुंदरकांड महाकुंभ में श्री रामचरितमानस कथा…. हमारे भीतर का राम नहीं जागा है अतः बार-बार रावण जला रहे- भक्ति प्रभा जी

राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 10 जनवरी। राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है , सब कुछ मिल जाए पर राम नाम नहीं जपे , तो जीवन की सार्थकता शून्य है। जिसमें ज्ञान का प्रकाश नहीं है , संयम का ब्रेक नहीं है , उसकी जिंदगी की गाड़ी फेल हो जाती है । आज भारत माता हमें जगाना चाहती है , हम सौभाग्यशाली हैं जिन्होंने भारत भूमि में जन्म लिया है । स्वयं भगवान ने भी भारत में ही अवतार लिया था ।

भारत में आदर्श है , संस्कार है, संस्कृति है । आज लाखों विदेशी भारतीय संस्कृति को अपनाकर भारतीय परिवेश धारण कर , हरे राम , हरे कृष्ण का जाप कर रहे हैं और हम विदेशी परिधान धारण करके अपने आप को गौरवान्वित समझ रहे हैं ।

पशुओं के भी सिद्धांत होते है , जिसका वे पालन करते है । घास खाने वाला पशु मांसाहार नहीं करता , वहीं सिंह कितना भी भूखा हो , घास नहीं खाता । एक मानव ही ऐसा प्राणी है जिसका कोई सिद्धांत नहीं हैं , वह कुछ भी खा लेता है । यही उसके पतन का कारण है । उक्त उद्गार आज यहां श्री हनुमान श्याम मंदिर में आयोजित 18 दिवसीय संत समागम एवं सुंदरकांड महाकुंभ के चतुर्दश दिवस से त्रिदिवसीय श्रीराम कथा का वाचन करते हुए सुप्रसिद्ध संत ब्रह्मलीन श्रद्धेय राजेश्वरानंद जी महाराज की सुपुत्री मानस मर्मज्ञ भक्ति प्रभा जी ने व्यासपीठ से व्यक्त किए ।


श्री श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से अशोक लोहिया के अनुसार कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भक्ति प्रभा जी ने कहा कि व्यक्ति शांति की इच्छा से शांति प्राप्त नहीं कर सकता । वह अपनी इच्छाओं को शांत कर ले , तो उसे शांति अपने आप प्राप्त हो जाएगी । हमारी इच्छाएं अनंत हैं , जिस पर नियंत्रण आवश्यक है । भारतमाता का श्रृंगार सिंदूर है , हिंदी उसके माथे की बिंदी है । उसका सम्मान करना सीखे ।


श्रद्धेय राजेश्वरानंद जी के वचनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान से कुछ ना मांगे , मांगना ही है तो भगवान को ही मांग लेवे । हमें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा । राम की चाह रखेंगे तो राम स्वयं चलकर आएंगे । भीलनी शबरी , गुहराज निषाद के पास राम स्वयं चलकर गए ।

संतश्री कहते थे कि ” कण कण में तुम्हे ढूंढा , तेरा पता नहीं है । जब तेरा पता मिला तो ,अब मेरा पता नहीं है। भक्ति को जागृत करें । भक्ति मिल गई तो प्रभु मिल जाएंगे, हम हमेशा प्रभु को चाहे, प्रभु से कुछ ना चाहे, परमपिता परमेश्वर भाव से मिलते हैं हम भाव में टिकना सीखें । राम स्वयं चलकर आएंगे ।

भक्ति प्रभा जी ने कहा कि राम को जानना है तो राम को सुने , राम केवल नाम नहीं है , कथा नहीं है , कहानी नहीं है । यह महामंत्र है , राम सनातन धर्म की छत्रछाया है । रामचरित्र मानस को जानने का प्रयास करेंगे तो राम को जान जाएंगे , तब राम से प्रेम हो जाएगा । जब जानेंगे ही नहीं मानेंगे क्या ? केवल तोते के समान रटी हुई विद्या से पार नहीं पा पाएंगे ।

राम नाम को वाणी तक सीमित ना रखते हुए उसे वाणी के नीचे उतारे , तो प्रेम भाव जागृत हो जायेगा । राम चरित्र मानस में करुणा, कृपा, सामर्थ, निर्मलता, पवित्रता, दयालुता है । राम कृपालु है, दिन दुखियों पर कृपा करने वाले है । व्यक्ति के हृदय में जिस समय राम के शरण में जाने की इच्छा जागृत हो जाएगी , समझो राम स्वयं चलकर आ जाएंगे ।

प्रभु ने नरसिंह की, कर्मा की, ध्रुव की, प्रहलाद की, मीरा बाई की, द्रौपदी की सुनी और दौड़े चले आए । हम भी उन्हें उसी तरह भक्ति भाव से पुकारे । कथा प्रसंग के माध्यम से भक्ति प्रभा जी ने कहा कि हम बार-बार रावण को जलाते हैं और वह मरता नहीं है। हम जिस दिन अपने अंदर के राम को जागृत कर लेंगे, रावण अपने आप मर जाएगा । रावण हमारे मन में जिंदा है , उसके अंत के लिए राम को जागृत करें ।

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