सुंदरकांड महाकुंभ के दौरान हो रही राम कथा… दाल चावल एवं घी की प्रवृत्ति आपस में मिलन की है- भक्ति प्रभा जी 

सुंदरकांड महाकुंभ के दौरान हो रही राम कथा… दाल चावल एवं घी की प्रवृत्ति आपस में मिलन की है- भक्ति प्रभा जी 

राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 11 जनवरी। व्यक्ति को अपने जीवन में सरलता एवं सहजता रखनी चाहिए , जिससे छोटा से छोटा व्यक्ति भी उसका भार उठा सके । जिस प्रकार छोटा सा मूषक भारी भरकम गणेश जी का भार उठा लेता है । गुरुदेव राजेश्वरानंद जी कहते हैं कि जनकपुर भक्ति का धाम है ,वहां भक्ति रूपी सीता जी निवास करती है ।

भगवान श्री राम जी का सीता जी के साथ विवाह के प्रसंग की भावपूर्ण चर्चा करते हुए 18 दिवसीय संत समागम एवं श्री सुंदर कांड महाकुंभ के पंद्रहवें दिवस त्रिदिवसीय श्री राम कथा के द्वितीय दिवस हनुमान श्याम मंदिर में व्यास पीठ पर विराजित भक्ति प्रभा जी ने कहा कि प्रभु श्री राम जी का विवाह प्रसंग भक्ति का शक्ति से मिलन का प्रसंग है । इस प्रसंग को सुनने मात्र से व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है ।


        श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भगवान को देखने के लिए भाव के नेत्र की आवश्यकता है , जो सोया है वह जग सकता है , किंतु जो सोने का अभिनय कर रहा हो उसे जगाना मुश्किल है । आलस त्याग कर सच्चे मन से जागे, मोह की नींद को दूर भगाएं ।

गुरुदेव कहते हैं ” प्रभु जागत  है तू सोवत है , जो जागत है सो पावत है , जो सोवत है वह खोवत है ” । भगवान श्री राम जनकपुर पहुंचकर मर्यादा की स्थापना करते हैं गुरु की आज्ञा से पुष्प वाटिका में फूल लेने जाते हैं । हमें  गुरुजन ,माता – पिता की आज्ञा हमेशा माननी चाहिए , जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो जाएगी ।

प्रभु श्री राम गुरु की आज्ञा से पुष्प लेने पुष्प वाटिका में गए हैं वहीं माता सीता गौरी पूजन के लिए पुष्प वाटिका पहुंचती है। दोनों एक दूसरे को सहज भाव से पवित्र , निर्मल मन से देखते हैं । आज जब कोई युवक किसी युवती को देखता है तो वासना का भाव जागृत हो जाता है , जो बुरी प्रवृत्ति का द्योतक है ।

मन निर्मल एवं पवित्र रहेगा तो बुरी  जगह भी बैठे रहेंगे तो अच्छा ही दिखेगा । किंतु अगर मन निर्मल व पवित्र नहीं है तो कथा में भी बैठकर बुरे विचार आएंगे । उपासना का भाव रखोगे तो वासना जागृत नहीं होगी। जब दो परिवारों का , दो गोत्रों का मिलन हो रहा हो तब मिलन वाला भोजन बनाना चाहिए ।

दाल , चावल एवं घी मिलने वाला भोजन है । रोटी – कचौरी तोड़ने पर ही खाई जा सकती है । भगवान को जब तक भगवान मानते रहोगे , काम नहीं बनेगा । प्रभु से कोई ना कोई नाता जोड़े , पुत्र मानकर लाड दुलार करें , माताएं भाई माने तो राखी बांधे। परमेश्वर स्वयं खींचे चले आयेंगे ।    

कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भक्ति प्रभा जी ने कहा कि जिस धनुष को उठाना है , वह शांत भाव से बैठा है । राम जी धर्म की ध्वजा पताका है ,वही लक्ष्मण जी उसके दंड के समान है । भक्त भगवान के बल पर गर्व करते हैं ।

श्री राम कहते हैं कोई किसी को नहीं तोड़ सकता , समय की बलिहारी है ,बड़े-बड़े अपने आप टूट जाते हैं । राम जी ने सहजता से धनुष को उठाया ,धनुष टूटकर चरणों में गिर पड़ा ।  जब धनुष जुड़ा था तब वह दूसरों को तोड़ता था ,पर आज दो हृदय को जोड़ने के लिए वह टूट गया ।

हमें भी किसी को जोड़ने के लिए छोटा बनना पड़े , तो बनना चाहिए । धनुष अहंकार का प्रतीक है ,भगवान के भक्ति से मिलन के बीच में अहंकार का क्या काम , अतः टूट जाता है ।प्रेषक :अशोक लोहिया

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