सत्संग मानव जीवन का उत्कृष्ट फल है – शास्त्री ईश्वरचंद व्यास 

सत्संग मानव जीवन का उत्कृष्ट फल है – शास्त्री ईश्वरचंद व्यास 

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 31 मार्च। माहेश्वरी समाज द्वारा गायत्री शक्तिपीठ में आयोजित श्रीमद् देवी भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से शास्त्री श्री ईश्वरचंद व्यास ने कहा कि सत्संग मानव जीवन का उत्कृष्ट फल है। सत्संग के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता। सत्संग के बिना जीवन में विवेक जागृत नहीं होता। विवेक जागृत हो जाए तो मानव जीवन सफल हो जाता है। 
               गायत्री शक्तिपीठ में आज श्रीमद् देवी भागवत कथा के दूसरे दिन शास्त्री श्री ईश्वरचंद ने कहा कि सत्संग से विवेक जागृत हो और हमारे विवेक में यह बात समझ में आ जाए कि मैं ही सच्चीदानंद ब्रह्म हूं तो यह जीवन ही तर जाए।

उन्होंने कहा कि यह बात यदि विवेक में समझ में आ जाती है तो यह  परिपक्व विवेक होता है और परिपक्व विवेक वैराग्य की ओर ले जाता है। मनुष्य दो प्रकार के होते हैं एक रागी दूसरा विरागी। अधिकांश मानव रागी है। रागी व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं एक मूर्ख और दूसरा चतुर।

मूर्ख व्यक्ति वह है जो अपने जीवन के मूल्य को नहीं जानता, जबकि चतुर वह है जो शास्त्रों का सदुपयोग कर अपने जीवन को सफल बनाता है। कुछ चतुर रागी शास्त्र का गलत उपयोग कर अपने लिए भोग की सामग्री जुटाने में लगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि आप अपनी चतुराई भगवान को सौंप दे तो आप हनुमान हो जाएंगे और आपका जीवन सफल हो जाएगा।
           शास्त्री जी ने कहा कि इंद्रियां बहुत बलवान होती है। शब्द, स्पर्श, रूप, गंध अगर ये इंद्रियां शुद्ध हो जाए तो जीवन सफल हो जाएगा। हमारी इंद्रियां हमें गलत रास्ते में ना ले जाए इसका हमें विशेष प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि माया इतनी प्रबल होती है कि अच्छे-अच्छे लोग इसके जाल में फंस जाते हैं। उन्होंने कहा कि माया से बचना कठिन है।

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