भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव पर… पाँच पापों का त्याग भगवान महावीर का मुख्य सन्देश  (साहित्यकार डॉ॰ अरिहंत जैन)

भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव पर… पाँच पापों का त्याग भगवान महावीर का मुख्य सन्देश (साहित्यकार डॉ॰ अरिहंत जैन)

जैन धर्म में, जिन्होंने पंचेंद्रीय विषय को जीत लिया है उन्हें जिन कहते हैं तथा उस धर्म को पालन करने वालों को जैन । यह धर्म अनेकांत मयी है, अर्थात जैन धर्म जगत् के अनेक प्रकार के विकल्पों को पृथक करके तदनंतर जिस जिसमें जितनी शक्ति है इस बात को निर्णय करके समन्वय रूप को देखते हुए सच्चे सार को निचोड़ता है। जैन धर्म के अनुसार जगत् में प्रत्येक प्राणी अव्यक्त परमात्मा है अर्थात हर एक आत्मा अपने सहज रूप को जानने के बाद परमात्मा बन सकता है। प्रत्येक जीव का गिरना उठना उसके अपने कर्मों के कारण से होता है,ऐसा जैन सिद्धांत कहता है।

आज जैन धर्म के 24 में तीर्थंकर एवं वर्तमान शासक नायक भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक है। यदि हम भगवान महावीर की और जैन धर्म की मुख्य शिक्षाओं पर ध्यान दें। तो यह पाते हैं कि हमें यदि मोक्ष की प्राप्ति करनी है तो पाँच पापों को बुद्धि पूर्वक त्याग करना पड़ेगा। इसी त्याग को हम व्रत कहते हैं।

ये पाँच पाप हैं , हिंसा,झूठ,चोरी, कुशील और परिग्रह। इन 5 पापों का एक देश त्याग करना अणुव्रत कहलाता है और सर्वथा त्याग करना महाव्रत कहलाता है। सबसे पहले हम अहिंसा की बात करते हैं, उसका तात्पर्य है जो मन, वचन, काय और कृत कारित अनुमोदना रूप संकल्प से किसी भी जीवों को नहीं मारता उसकी इस क्रिया को अहिंसा व्रत कहते हैं।

सत्यव्रत के परिप्रेक्ष्य में यह उचित होगा कि जो व्यक्ति न तो स्वयं झूठ बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है तथा जिस वचन से विपत्ति आती हो ऐसा सत्य भी न स्वयं बोलता है न दूसरों से बुलवाता है, वह सत्य व्रत को धारण करता है। तीसरे पाप के रूप में जो व्यक्ति रखी हुई, गिरी हुई ,भूली हुई, किसी दूसरे की वस्तु को बिना अनुमति के नहीं लेता है और दूसरों को न हीं देता है वह अचौर्य गुण का व्रती कहलाता है।

ब्रह्मचर्य व्रत के अंतर्गत, जो व्यक्ति पाप के भय से पर स्त्री का न तो स्वयं सेवन करता है, न दूसरों को सेवन के लिए प्रेरित करता है वह ब्रह्मचर्य व्रत कहलाता है। अंत में परिग्रह व्रत के लिए जो व्यक्ति क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण,धन, धान्य, दासी, दास, वस्त्र और बर्तन इन दसों परिग्रह का परिमाण रखकर उसे अधिक में इच्छा नहीं रखता है, वह अपरिग्रह व्रत का अनुयायी कहलाता है।

इस तरह यदि हम इन 5 पापों से बच कर रहते हैं तो निश्चित तौर पर हम सही रास्ते पर चल सकते है। भगवान महावीर ने मोक्ष मार्ग की प्राप्ति में सबसे पहले इन पांच पापों से दूर रहने को कहा है।

आज विश्व मे हिंसा के इस दौर में जीव निरंतर व्याकुल रहता है और सदैव अपने मन में घृणा द्वेष और वैर को बाँध के रखता है, इससे पूरे विश्व में अशांति का वातावरण बना हुआ है। अगर हम सिर्फ एक सिद्धान्त अहिंसा के मार्ग पर चलने लगे तो निश्चित तौर पर यह विश्व शांति की ओर अग्रसर होगा।


भगवान महावीर के इस जन्म कल्याणक महोत्सव पर यदि हम इन 5 पापों का संपूर्ण नहीं तो एक भाग में त्याग करें और अणुव्रत को धारण करें, तो निश्चित तौर पर हम अपना और विश्व का कल्याण कर पाने में सक्षम होंगे। भगवान महावीर स्वामी की जय

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