डॉ अरिहंत जैन
(चिकित्सक एवं साहित्यकार)
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धर्म, दर्शन का विषय संपूर्ण विश्व से संबद्ध है । विश्व के किसी भी देश का मानव इन दोनों के अभाव में अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त नहीं कर सकता, ना ही जीवन को गतिशील ही बना सकता है । भौतिकता से ऊब कर विश्व का प्रत्येक मनुष्य आध्यात्मिकता की शरण में पहुंचता है, और धर्म दर्शन के आश्रय में ही उसे शांति लाभ होता है । वर्तमान कल्प काल में 24 तीर्थंकर हुए हैं, जिनमें अंतिम तीर्थंकर महावीर है । व्यक्ति की सत्ता, स्वाधीनता और सह अस्तित्व की भावना का प्रवर्तन तीर्थंकरों के द्वारा ही होता है। सहिष्णुता, उदारता और धैर्य के संतुलन के साथ वैज्ञानिक सत्य अन्वेषण की परंपरा का प्रादुर्भाव भी तीर्थंकरों के द्वारा ही संभव है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ के 250 वर्ष पश्चात 24वें तीर्थंकर महावीर हुए हैं, इन्होंने अपने व्रत संबंधी, प्रगतिशील क्रांति के द्वारा जैन धर्म को युगानुकूल रूप दिया ।
तीर्थंकर महावीर का जन्म 27 मार्च ईसा पूर्व 598 चैत्र शुक्ल त्रयोदशी चंद्र वार को वैशाली के उपनगर कुंड ग्राम में हुआ था। भगवान महावीर के समय ईश्वर के नाम पर अभिजात वर्ग विशेष रूप से लेकर उत्पन्न होता था, स्वर्ग लाभ के लिए बड़े-बड़े यज्ञ का अनुष्ठान होता था जो धर्म प्राणी मात्र के लिए सुख शांति का कारण था, वही समाज में हिंसा शोषण विषमता का केंद्र भी बना हुआ था । अतः भगवान महावीर ने धर्म समाज के क्षेत्र में मानव मात्र को समान अधिकार दिए। धर्म साधन में जाति, कुल, शरीर और आकार के बंधन को स्वीकार नहीं किया।
तीर्थंकर महावीर की जन्म पत्रिका और उसकी प्रमुख पांच बातें
एक भव अवतारी या धर्म नायक के लिए जिस प्रकार के योग की आवश्यकता रहती है वह ग्रह योग उनकी कुंडली में निहित था।
1) जब व्यक्ति का जन्म”चर”लग्न में हो ; गुरु , शुक्र पंचम या नवम भाव में हो और शनि केंद्र में हो तो जातक अवतारी होता है ।
2) सप्तम ग्रह में दो पाप ग्रहों के मध्य राहु के स्थित रहने से पत्नी का अभाव सिद्ध होता है।
3) शुक्र और चंद्रमा 120 अंश के अंतराल पर स्थित हैं यह उनकी सर्वज्ञता और वीतरागता का सूचक है ।
4) नवम स्थित चंद्रमा, दर्शन शास्त्र, आचार्य शास्त्र एवं विभिन्न प्रकार की ज्ञान विज्ञान की अभिज्ञता का सूचक है।
5) इसमें चंद्रचूड़ योग है तथा भाग्येश बुध केंद्र में स्थित है, अतः जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रसिद्ध ज्ञानी योगी एवं धर्म प्रचारक होगा।
बालक महावीर के 5 नियम
विश्व इतिहास में कोई भी बालक नहीं मिलेगा जिसने 8 वर्ष की आयु से ऐसे नियमों का पालन किया हो ।
तीर्थंकर महावीर ने 8 वर्ष की आयु में निम्नलिखित 5 नियम धारण किए।
१) जीवो पर दया करना और अहिंसक वृति रखना।
२) हमेशा सत्य वचन बोलना।
३) चोरी ना करना ।
४) ब्रह्मचर्य व्रत का धारण करना।
५) इच्छाओं को सीमित रखना।