लाइफ को एंजॉय करते रहो ताकि बुढ़ापे में एंजियोग्राफी न करानी पड़े-ललितप्रभ सागर जी

लाइफ को एंजॉय करते रहो ताकि बुढ़ापे में एंजियोग्राफी न करानी पड़े-ललितप्रभ सागर जी

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 26 जून। राष्ट्र संत ललितप्रभ सागर जी ने कहा कि लाइफ को एंजॉय करते रहो ताकि बुढ़ापे में एंजियोग्राफी न करानी पड़े। हंसते रहेंगे तो जीवन जीते जी स्वर्ग बन जाएगा। आप जिंदा है तो अपनी जिंदगी हंस कर जिये। आप इंसान हैं और इंसान की जिंदगी बेशकीमती है। अपने आप को खुश किस्मत बनाना है तो मन के आनंद को बाहर निकाले। गलती तो किसी भी इंसान से हो सकती है इसलिए गलतियों को सुधारने का प्रयास करें।
राष्ट्र संत ललितप्रभ सागर जी आज जैन बगीचे में जीवन जीने की कला पर प्रवचन दे रहे थे। इससे पूर्व उनका नगर में मंगल प्रवेश गायत्री मंदिर चौक से हुआ।

राष्ट्र संत ललितप्रभ सागर जी एवं डॉ शांतिप्रिय सागर जी का गायत्री मंदिर चौक में श्री जैन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी और सकल जैन श्री संघ के अध्यक्ष पूर्व महापौर नरेश डाकलिया, मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रिद्धकरण कोटडिया, अजय सिंगी, राजेंद्र कोटडिया गोमा, जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के सह सचिव रोशन गोलछा, बिहार सेवा ग्रुप के मोहिल कोटडिया, जैनम बैद सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के लोगों ने स्वागत किया।

इसके बाद भव्य शोभायात्रा निकाली गई जो कामठी लाइन से होती हुई भारत माता चौक, सदर बाजार से जैन बगीचा पहुंची। जैन बगीचे में संत श्री का प्रवचन हुआ। संत श्री ने कहा कि गलतफहमियां दूरियां पैदा कर देती है। गलत कोई नहीं होता। जीवन को सही तरीके से जीने के लिए अपनी सोच यह बनाएं कि “मैं पॉजिटिव रहूंगा।” इंसान अपनी सोच को बढ़ा करें। पैर में पड़ी मोच और दिमाग में छोटी सोच आदमी को बढ़ने नहीं देती। उस ईश्वर को धन्यवाद दे कि ईश्वर ने हमें जहां जन्म दिया था, जैसे जन्म दिया था आज हम उससे कई गुना आगे हैं। जीवन में यदि 99 द्वार बंद भी हो जाए तो ईश्वर का शुक्रिया अदा करें कि कम से कम एक द्वार तो उसने खोल कर रखा है।
उन्होंने कहा कि हर आदमी नेगेटिव जल्दी सोच लेता है। हम हमेशा निराशा की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि पत्थर को भी अगर सौ बार हीरा कह दें तो वह हीरा बन जाता है, हमारी जबान में इतनी ताकत है। गलत कोई नहीं है बस अपने चश्में को बदलने, अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है। प्रेम करने के लिए जिंदगी छोटी पड़ रही है और आप लोगों को झगड़ा करने का समय कैसे मिल जाता है। हमारी सबसे बड़ी भूल यह है कि शादी के 50 साल हो जाते हैं किंतु पति-पत्नी एक दूसरों को सुधारने में ही लगे रहते हैं। जिंदगी सुधरने से बनती है, सुधारने में नहीं। पराई घर की बेटी को लाना बहुत सरल है परंतु उसके दिल को जीतना बहुत बड़ी साधना है। उन्होंने बहुओं से कहा कि बड़ों के कहने का बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि उनका कहना तो चौराहे के लाल बत्ती के समान हैं जो जलती है तो हमारी जिंदगी बचाने के लिए। भले ही लाल लाइट का जलना हमें बुरा लगता है लेकिन वह जलती है तो हमें आगे के खतरे से सतर्क करने के लिए। उन्होंने कहा कि बूढ़ा पेड़ फल तो नहीं देता लेकिन छाया अवश्य देता है। बुढ़ापे में हाथ में लोटा पकड़ने की भी ताकत नहीं रहती लेकिन बुजुर्गों का आशीर्वाद जीवन धन्य कर देता है। मनुष्य जीवन का पहला धर्म यही है कि हम इंसान होकर इंसान के काम आए।
संत श्री ने कहा कि सुख और दुख मेहमान हैं घर के मेंबर नहीं। यह आज है तो कल नहीं रहेंगे। जो मेरा है वह जाएगा नहीं।
उन्होंने सफल जीवन के तीन मंत्र दिए पहला यह कि मन को बड़ा रखें और सुविधा पाने के लिए नहीं बल्कि सुविधा देने की सोच रखें। दूसरा यह कि हम दूसरों के सुख से सुखी नहीं होते बल्कि दूसरों के दुख से खुश होते हैं। दूसरों के सुख में सुखी होने की आदत डालें। दूसरों को दुख देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। तीसरा यह कि ईश्वर जो करता है अच्छा करता है। उसकी हर व्यवस्था का आनंद लो। जो प्राप्त है , वही पर्याप्त है।
संतों का आगमन परम सौभाग्य होता है- नरेश डाकलिया
प्रवचन शुरू होने से पहले सकल जैन श्री संघ के अध्यक्ष नरेश डाकलिया ने कहा कि मनुष्य होना भाग्य है पर संत होना महा भाग्य है। उन्होंने कहा कि धर्म से पुण्य होता है, पुण्य से सुख मिलता है और सुख बढ़कर सौभाग्य में बदल जाता है। संत का आगमन परम सौभाग्य होता है।

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