सनसिटी में शोभायात्रा के साथ गुरुजनों का हुआ धूमधाम से मंगल प्रवेश
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 30 जून। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि नकारात्मक सोच तोड़ती है, सकारात्मक सोच जोड़ती है। साधारण किस्म के लोग
गिलास आधा खाली देखते हैं, समझदार लोग गिलास आधा भरा देखते हैं। ऊँचाई छूने वाले लोग गिलास पूरा भरा देखते हैं।ताड़ासन करके भी हम अपनी हाईट 2
इंच से ज्यादा नहीं बढ़ा सकते, पर सोच को ऊँची उठाकर एवरेस्ट से भी ज्यादा ऊँचे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर के घर से हम में से हर इंसान को एक बहुत बड़ी ताकत मिली है, वह है – सोचने-समझने की क्षमता। अपनी इस एक क्षमता के बलबूते इंसान संसार के समस्त प्राणियों में सबसे ऊपर है। हम सोच सकते हैं इसीलिए हम इंसान हैं। यदि हमारे जीवन से सोचने की क्षमता को अलग कर दिया जाए तो हमारी औकात किसी चैपाये जानवर से अधिक न होगी।
संतप्रवर सनसिटी परिवार द्वारा कॉलोनी में आयोजित प्रवचन माला के प्रथम दिन श्रद्धालुओं को जीने की कला सिखाते हुए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आपकी सोच आपके विचारों को, विचार वाणी को, वाणी व्यवहार को, व्यवहार आपके व्यक्तित्व को प्रेरित और प्रभावित करता है। एक सुंदर और खूबसूरत व्यक्तित्व, व्यवहार, वाणी और विचारों का मालिक बनने के लिए अपनी सोच को कुतुबमीनार जैसी ऊँची, ताजमहल जैसी सुन्दर और देलवाड़ा के मन्दिरों
जैसी खूबसूरत बनाइए। उन्होंने कहा कि सोच को सुन्दर बनाना न केवल अपने संबंध, सृजन और आभामंडल को सुन्दर तथा प्रभावी बनाने का तरीका है बल्कि सुन्दर सोच परमपिता परमेश्वर की सबसे अच्छी पूजा है।
संतश्री ने कहा कि अच्छी सोच स्वयं ही एक सुन्दर मंदिर है जहाँ से सत्यम शिवम सुन्दरम का मन लुभावन संगीत अहर्निश फूटता रहता है। सोच अगर सुन्दर है तो स्वर्ग का द्वार सदा आपके लिए खुला है। सोच के बदसूरत होते ही शैतान का हम पर राज हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक अच्छी, सुन्दर और सकारात्मक सोच स्वयं ही महावीर का समवसरण, बुद्ध का स्वर्ण-कमल, राम का रामेश्वरम और कृष्ण का वृंदावन धाम है।
राष्ट्र-संत ने सभी श्रद्धालुओं को निवेदन किया कि जरा दो मिनट के लिए इस संसार के प्रति अच्छी सोच लाकर देखिए, आपको किसी दूसरे स्वर्ग को पाने की
बजाय इसी धरती को स्वर्ग जैसा सुन्दर बनाने की तमन्ना जग जाएगी। उन्होंने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री और अब्दुल कलाम जैसे लोग गरीब घर में पैदा होकर भी और धीरूभाई अंबानी इंटरमीडियट होकर भी शीर्ष पर पहुँच गए, तो फिर हम ही मुँह लटकाए मायूस क्यों बैठे हैं। जीवन में फिर से जोश जगाएँ और कामयाबी के आसमान को छूने के लिए अभी इसी वक्त छलांग लगा दें। उन्होंने कहा कि आपकी हाइट अगर साढ़े पाँच फुट की है तो ताड़ासन करके भी आप अपने सिर को छह फुट से ऊँचा नहीं कर सकते, पर आप अपनी सोच को ऊँचा उठाना चाहें तो हिमालय से भी ऊपर उठ सकते हैं।
संतप्रवर ने कहा कि संकीर्ण सोच, स्वार्थी सोच, निराशा भरी सोच, मंथरा सोच, घमंडी सोच – सोच की विकृतियाँ हैं। इन विकृतियों के झाड़-झंखारों को अपने मन के खेत से उखाड़ फेंकिए। आपके दिमाग की जमीन उपजाऊ है, नई ऊर्जा और उमंग के साथ सबको मधुर फल देने वाले बीज बोइए। उन्होंने कहा कि जिस पड़ौसी से आपको जलेसी है, जिस सास से आपको शिकायत है, जिस पिता से आपको पीड़ा है, जिस ग्राहक से आपको ग्लानि है, कृपया उनके प्रति मात्र 10 मिनट के लिए अपनी सोच को सुन्दर और सकारात्मक बनाकर देखिए, आप उन्हें गले लगाने को बावले हो उठेंगे।
राष्ट्र-संत ने कहा कि सारे झगड़ों की जड़ है हमारी नकारात्मक सोच, सारे समाधानों का आधार है हमारी सकारात्मक सोच। गिलास को आधा भरा हुआ देखेंगे
तो कमजोर का भी उपयोग कर लेंगे। गिलास आधा खाली देखेंगे तो सगे भाई से भी पल्लू झाड़ बैठेंगे। उन्होंने कहा कि सफलता की चाबी है – गिलास हमेशा भरा
हुआ देखो। किसी में कोई कमी है तो उससे समझौता कर लो। ईंट के रूप में न सही, मिट्टी के रूप में तो सबका उपयोग किया ही जा सकता है।
हम सोचें ऐसी बातें जिन बातों में हो दम….. भजन में नाचा पांडाल: जब संतप्रवर ने प्रवचन के दौरान हम सोचें ऐसी बातें जिन बातों में हो दम, दुश्मन से भी हम प्यार करें दुश्मनी हो जिससे कम… का भजन सुनाया तो सब सत्संगप्रेमी खड़े होकर नाचने लगे।
इससे पूर्व डॉ. मुनि श्री शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने कहा कि जिसके पास धन है वह भाग्यशाली, जिसके पास धन व स्वास्थ्य है वह महाभाग्यशाली, पर जिसके पास धन और स्वास्थ्य के साथ धर्म भी है वह है सौभाग्यशाली। उन्होंने कहा कि धर्म दीवार नहीं द्वार है। धर्म के नाम पर मानव जाति को तोडना पाप है। धर्म का जन्म इंसानियत को जोडने के लिए हुआ है, तोडने
के लिए नहीं। धर्म का संबंध केवल मंदिर, मस्जिद, सामायिक, पूजा-पाठ से नहीं, जीवन से है। जो चित्त को निर्मल और कषायों को कमकर जीवन को पवित्र
करे वही सच्चा धर्म है। व्यक्ति खुद भी सुख से जिए और औरों के लिए भी सुख से जीने की व्यवस्था करे इसी में धर्म का सार छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि जो क्रोध के वातावरण में भी शांत रहता है, लोभ का निमित्त मिलने पर भी संतोष रखता है, अहंकार की बजाय सरलता दिखाता है और वासना के माहौल में भी संयम को बरकरार रखता है वही सच्चा धार्मिक कहलाता है।
उन्होंने कहा कि धर्म पगड़ी नहीं कि जब चाहे पहन लिया
और उतार लिया, धर्म कोई दमड़ी नहीं कि जब चाहे खरीद लिया, धर्म तो चमड़ी है जो व्यक्ति की अंतिम सांस तक साथ रहता है। धर्म की चर्चा करने वालों से
संतश्री ने कहा कि धर्म चर्चा का नहीं चर्या का विषय है। राम, कृष्ण, महावीर, मौहम्मद कौन थे, कहाँ पैदा हुए थे, इनको जानने से कुछ नहीं मिलेगा। अगर जानना ही है तो यह जानो कि इनके जैसा कैसे बना जा सकता है।
संतप्रवर ने कहा कि हमें जीवन का हर कार्य धर्मपूर्वक करना चाहिए। खाना-पीना, उठना-बैठना, चलना-फिरना सारे काम विवेकपूर्वक किया जाए, तो
धर्म का आचरण होगा। उन्होंने कहा कि हमें सत्यनिष्ठा के प्रति सावधान रहना चाहिए। झूठ का जायका जबरदस्त होता है, आदमी खुद बोले तो बड़ा मीठा लगता है, पर दूसरा बोले तो बड़ा कड़वा लगता है। उन्होंने कहा कि जीते जी वे लोग पूजे गए जो सुन्दर, समृद्ध और सत्ता में थे पर मरने के बाद वे ही लोगपूजे गए जो त्यागी तपस्वी और धर्मात्मा थे।
उन्होंने कहा कि पानी का धर्म है शीतलता
और आग का धर्म है उष्णता। व्यक्ति सोचे कि उसका आखिर धर्म क्या है? कर्तव्य-पालन को पहला धर्म बताते हुए संतप्रवर ने कहा कि एक तरफ मंदिर में पूजा करनी हो दूसरी ओर घर में बीमार सासू माँ की सेवा करनी हो, एक ओर पाँच लाख का चढ़ावा बोलना हो दूसरी ओर गरीब भाई की मदद करनी हो तो व्यक्ति खुद सोचे कि उसका पहला दायित्व क्या है? स्थानक में सामायिक करना धर्म है, पर घर में बहू से गलती हो जाने पर माफ कर देना उससे भी बड़ा धर्म है।
उन्होंने युवाओं से कहा कि वे महिने में एक दिन माँ के पास भी सोने की आदत डालें ताकि पता चल सके कि उन्हें रात को कोई तकलीफ तो नहीं होती है।
अगर आपके रहते बड़े-बुजुर्गों को कोई दिक्कत है तो आपका जीना ही व्यर्थ है। जो माता-पिता, सास-ससुर का कभी दिल नहीं दुरूखाता और सोने से पहले उसकी दो मिनट सेवा करता है उसे बिना कुछ किए सारे तीर्थों की यात्रा का पुण्यफल मिल जाता है।
मनोविकारों पर विजय पाएं – संतप्रवर ने कहा कि इंसान का दूसरा धर्म है भीतर पलने वाले विकारों पर विजय पाना। इंसान आकृति से ही नहीं, प्रकृति से भी इंसान बने। कमजोर और काले मन वाले कभी सच्चे धार्मिक नहीं बनते। उन्होंने कहा कि व्यक्ति केवल सीता की मूर्ति में ही सीता को न देखे, वरन सड़क चलती नारी में भी सीता माँ के दर्शन का सौभाग्य ले।
इंसान होकर इंसान के काम आएं – संतप्रवर ने कहा कि इंसान का तीसरा धर्म है: इंसान होकर इंसान के काम आना। व्यक्ति धन को केवल कमाए ही नहीं वरन
लगाए भी। लाभ के साथ भला भी करे। दिन की शुरुआत दान से हो। पुरुष लोग प्रतिदिन दस रुपये निकाले और महिलाएँ दो मुड्ढी आटा। इससे हमारे तो कोई
फर्क नहीं पड़ेगा, पर जिसको सहायता मिलेगी उसके बहुत फर्क पड़ जाएगा। इसलिए हर व्यक्ति रात को सोने से पहले जरूर सोचे कि उसके द्वारा दिन भर कोई
सत्कर्म हुआ या नहीं। अगर हुआ तो कल फिर करूँगा और नहीं हुआ तो कल जरूर करूँगा का संकल्प लें।
इससे पूर्व राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ सागर जी और डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर जी महाराज के मंगल आगमन पर राम दरबार चौक से शोभायात्रा निकली जो धूमधाम से सनसिटी पहुंची जहां पर सकल समाज के श्रद्धालु भाई बहनों द्वारा धूमधाम से स्वागत किया गया। इस दौरान युवाओं ने गुरुदेव के जयकारे लगाकर स्वागत किया। धर्म संघ की बहनों ने अक्षत उछाल कर गुरुजनों का बधावणा किया।
कार्यक्रम में सकल जैन श्री संघ के अध्यक्ष नरेश डाकलिया, महापौर हेमा देशमुख, सनसिटी परिवार एवं समोसारण तीर्थंकर ट्रस्ट के अध्यक्ष विमल गोलछा रमेश लालवानी आनंद चोपड़ा विनय गोयल विनोद बोहरा सुशील माहेश्वरी कमल साहू दिलीप गोलछा मयूर ललवानी रोमिल गोलछा अंशुल चोपड़ा शुभम चोपड़ा एवं सन सिटी के सारे श्रद्धालु सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे। मंच संचालन और संतों का स्वागत आभार अप्पू बोहरा और पप्पी चोपड़ा ने किया।
मैत्री डेंटल कॉलेज में
शुक्रवार को प्रवचन
- संत प्रवर के शुक्रवार को सुबह 9:00 बजे अंजुरा के मैत्री डेंटल कॉलेज में प्रवचन और सत्संग का आयोजन होगा।