नवनिर्मित समता भवन में चल रहा है चातुर्मासिक प्रवचन
राजनांदगांव 14 जुलाई। ” क्रोध बिना धुंए की अग्नि है,इससे बचकर रहें । आग से धुआं निकलता है तो पता चल जाता है कि आग लगी है किंतु अगर धुआं ना निकले तो यह कैसे पता चलेगा कि आग लगी है। ऐसी आग भीतर ही भीतर हम को जलाकर खाक कर देती है और इससे मिला दर्द हम भूल नहीं पाते। ” उक्त उद्गार आज चातुर्मासिक प्रवचन के दूसरे दिन जैन संत हर्षित मुनि ने नवनिर्मित समता भवन में व्यक्त किए।
मुनिश्री ने फरमाया कि क्रोध की अग्नि यदि भीतर हो तो काफी नुकसान पहुंचाती है। अग्नि का संपर्क थोड़ी देर के लिए हमारे शरीर पर होता है किंतु उससे बनने वाले फफोले का दर्द काफी दिनों तक रहता है। उन्होंने कहा कि क्रोध से हमें दूर ही रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस चीज के लिए आप जितना पाप कर्म कर रहे हैं, जिनके लिए आप पाप कमा रहे हैं, जब पाप कर्म का उदय होता है तो वही हमारे साथ नहीं रहते। क्रोध करते तो हम क्षणिक हैं किंतु उस क्रोध से जो नुकसान होता है, उसका दर्द हमें काफी समय तक सालता रहता है। अधार्मिक व्यक्ति क्रोध करें तो समझ में आता है किंतु धार्मिक व्यक्ति क्रोध करे तो यह समझ के बाहर की बात है। क्रोध, निमित्त मिलता है तो बाहर आता है नहीं तो यह अंदर ही अंदर हमें सालते रहता है और वही बड़ा नुकसान करता है। हम छोटे-छोटे प्रसंगों पर अवश्य सुधार कर सकते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि क्रोध करना सरल है किंतु क्षमा करना कठिन है और हम सरल काम ही पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि जो हमारा अभ्यास है वह काम हमारे लिए सरल होता है किंतु जिसका हमें अभ्यास नहीं होता वह कार्य हमें कठिन लगता है। उन्होंने कहा कि अपने मन को कुछ नया विकल्प देना पड़ेगा नहीं तो हम अभ्यास के रास्ते ही चलते रहेंगे। क्रोध का संक्रमण जल्दी होता है इसलिए इससे बचकर रहना चाहिए। सरल मार्ग कभी भी सफल मार्ग नहीं हो सकता। कठिन मार्ग में मेहनत है किंतु सफलता भी उसी में ही मिलती है। क्षमा कठिन जरूर है किंतु यह सफलता का मार्ग भी है। हमारे मन में अहो भाव होना चाहिए। छोटे-छोटे प्रसंग हमारे घर में दरार बढ़ा देते हैं इसलिए क्रोध केको अपने से दूर रखें, कठिन कार्य को अपनाएं सफलता अवश्य मिलेगी। जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी ।