जीवन में गुरु होना आवश्यक है
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़)। श्री सत्यनारायण मंदिर समिति के तत्वावधान में अष्ट दिवसीय संत समागम , गुरु पूर्णिमा एवं सुंदरकांड महोत्सव के चतुर्थ दिवस गुरु पूर्णिमा के पावन उत्सव पर हरिद्वार से पधारे संत पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी आनंद चैतन्य सरस्वती जी ने गुरु महिमा एवं गुरु महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु वशिष्ट जी ने श्रीराम से कि जिंदगी में जो समय मिला है , वह अमूल्य है , उत्कृष्ट है , महान है । उसे प्रभु भक्ति में लगाने से ही व्यक्ति का कल्याण होगा और वह भवसागर रूपी नैय्या से पार हो सकता है। आज व्यक्ति समय की परवाह नहीं करता और यह सोचता है कि अभी पूरी जिंदगी पड़ी है ,और भोग विलास , अपराध , धन की लालसा में पाप करने लगता है । ऐसे व्यक्ति की जब मृत्यु निकट आती है तब परिवार जन डॉक्टर से कहते हैं की चाहे जितना रुपया ले लो, एक बार हमारे परिजन को जीवित कर दो । किंतु उस समय कमाया हुआ पैसा कोई काम नहीं आता । प्रभु को प्राप्त करने के लिए जीवन में गुरु का होना अतिआवश्यक है, जीवन का श्रृंगार करने वाले गुरु ही होते हैं , हमें मानव जीवन गुरु के माध्यम से प्रभु की प्राप्ति करने के लिए मिला है। गंगा , सरस्वती , यमुना आदि सभी नदिया कल कल नांद करती हुई अपने पूरे वेग से सागर से मिलने हेतु आगे बढ़ती जाती है , समुद्र ही समस्त धाराओं का अंतिम स्वरूप है । यह सभी समुद्र में मिलकर शांत हो जाती है । उसी प्रकार यह जीवन है हम भी सुख पाने के लिए लगातार दौड़ रहे है , मानव जीवन पाकर भी अगर प्रभु की प्राप्ति नहीं हुई पूरा जीवन व्यर्थ है । हमारा जीवन तब सार्थक होगा जब हम परम तत्व में मिल जाएंगे । परम तत्व को जानने लय से विलय होने गुरु के पास जाना पड़ता है ।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि हम जो कार्य नहीं कर पा रहे हैं कहीं असफलता है , असमंजस यह है भ्रम हैं । उसे गुरु के सामने उजागर कर देवें । गुरु ही एकमात्र ऐसे जीव है जो अपने शिष्य के समस्त दुख , पाप , रोग शोक परेशानियों को अपने ऊपर ले लेता है । परिवार का कोई भी सदस्य चाहे वह पति पत्नी हो पिता पुत्र क्यों ना हो वह दूसरे के कष्ट / दुखों को अपने ऊपर नहीं ले सकते । गुरु पूजन में गुरु के चरणों के अंगूठे के नाखून के पूजन का एवं अभिषेक करने का विधान बताया गया है । गुरु अपने मन वाणी एवं साधना से जो ईश्वरीय शक्ति प्राप्त करते हैं , वह उनके चरणों के अंगूठे में समाहित होती है । जिस प्रकार गाय अपने मुख से चारा खाती है किंतु उसका दूध उसके थन से प्राप्त होता है । ठीक उसी प्रकार गुरु की समस्त शक्तियां उसके चरणों में हुआ करती है । जिसके स्पर्श करने , गुरु के चरणों का अभिषेक करने एवं चरणामृत ग्रहण करने से ही मानव का कल्याण हो सकता है । हनुमान चालीसा में भी “श्री गुरु चरण सरोज रज” की महिमा बताई गई है । एक प्रश्न के उत्तर में पूज्य स्वामी जी ने गुरु किसे बनाना चाहिए , पर कहा कि गुरु शास्त्रों का ज्ञाता हो , वेद , ग्रंथों का ज्ञान रखने वाला हो तथा गुरु मंत्र दीक्षा को केवल कान फूंककर देने वाला होना चाहिए । वही गुरु अपनी शक्ति से शिष्य के ऊपर आई विपत्तियों को दूर करने में सक्षम होता है । चिकित्सक क्षमता से अधिक मरीज को अस्पताल में भर्ती करेगा तो वहां अव्यवस्था फैल जावेगी , उसी प्रकार क्षमता से अधिक शिष्य बनाने से जैसा आजकल देखने में आ रहा है मंच से साउंड सिस्टम के माध्यम से गुरु दीक्षा दी जा रही है , वह फलीभूत नहीं होती । गुरु भी शिष्य को दीक्षा देने के पूर्व पात्रता देखता है तब पात्र व्यक्ति को ही गुरु दीक्षा देता है । गुरु परंपरा आज की नहीं वरण पौराणिक काल से चली आ रही है । यह सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण विषय है , भगवान राम ने , कृष्ण ने भी गुरु दीक्षा ली थी । गुरु दीक्षा लिए बिना किसी भी व्यक्ति की मुक्ति संभव नहीं है । दीक्षित व्यक्ति की अकाल मृत्यु की संभावनाएं नगण्य एवं क्षीण होती है । जीवन में गुरु होना आवश्यक है ।
इस प्रकार चतुर्थ दिवस का महोत्सव संपन्न हुआ । पंचम दिवस रात्रि 7: 02 बजे से श्री सुंदरकांड पाठ होगा ।