राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 17 जुलाई। जैन संत हर्षित मुनि ने अपने चातुर्मासिक प्रवचन के पांचवे दिन कहा कि कुसंस्कार मन में ना आ जाए इसलिए मन ही मन मिच्छामी दुक्कड़म कहते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे मन में कुसंस्कार घर नहीं कर पाएगा।
समता भवन में चल रहे प्रवचन में मुनिश्री ने कहा कि आप अपने किसी भी निर्णय के असफल होने का पछतावा ना करें, बल्कि उस निर्णय के पीछे का कारण देखें। दोष की दृष्टि को देखकर ही विचार करें। विचार आपका खत्म नहीं होता बल्कि उसकी जागरूकता / सक्रियता खत्म होती है। उन्होंने कहा कि जब कारण ही गलत होता है तो उसका फल भी तो गलत निकलेगा ही । उन्होंने कहा कि सुसंस्कार दृढ़ होगा तो आपका काफी उपकार भी होगा। आपके कार्य सफल होंगे। आपके मन में लोभ न जम पाए। यदि यह एक बार जम जाता है तो इसे निकाल पाना बड़ा मुश्किल होता है। लोग को निकालने के लिए हिम्मत की जरूरत होती है।
हर्षित मुनि ने कहा कि लोग एक दूसरे को सुधारने में लगे रहते हैं जबकि लोगों को पहले अपनी प्रवृत्ति को सुधार लेना चाहिए फिर उसे दूसरों के सुधार के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि आप चाहते हैं कि आप कुछ धार्मिक एवं सामाजिक अनुभव करें तो इसके लिए यह जरूरी है कि आप कुछ नियम बनाएं। बिना नियम बनाए आप इसे अनुभव नहीं कर पाएंगे। वो परिग्रह है जो आपको बांध ले। लोभ को हम पहचान नहीं पाते। वह एक बार मन में घुसता है तो फिर उसे आसानी से बाहर निकाला नहीं जा सकता। मुनि श्री ने कहा कि आप लोभ से दूर रहें लोभ को भीतर घुसने ना दें। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।