सांसारिक जीवन में आप जैसा चाहो वैसा करो, फिर भी आप संतुष्ट नहीं हो सकते: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

सांसारिक जीवन में आप जैसा चाहो वैसा करो, फिर भी आप संतुष्ट नहीं हो सकते: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। दिन पेट भर खाना खाने के बाद भी आपको रात में फिर से भूख लगती है। आप कितना भी खाना खा लें, दो दिनों के लिए एक साथ नहीं खा सकते। यह पेट का गड्ढा कभी नहीं भर सकता है। वैसे ही संसार में आप जो भी करो, उससे आप संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। यह बातें सोमवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

साध्वी स्नेयहशाश्रीजी ने कहा कि हम कभी पूरी तरह तृप्त नहीं हो सकते है। जब आप परमात्मा की वाणी का पालन करोगे, परमात्मा के कठिन धर्म को अगर आचरण में लाओगे, उससे जो मिलेगा हमेशा के लिए मिलेगा, शुद्ध मिलेगा। आप दुकान से सामान भी लाते हो तो आपको सभी चीजें शुद्ध चाहिए होती है। वहीं, अाध्यात्मिकता के क्षेत्र में आप मिलावट कर लेते हो। वहीं, सांसारिक जगत में आपको हर चीज शुद्ध चाहिए। आप बताओ अगर आपको शुद्ध भोजन, बिना किसी मिलावट के भी दिया जाए तो आप उब जाते हो। वैसे ही परमात्मा की साधना हम पूरी तरह से करते ही नहीं, हम उब जाते है और बाहर चले आते है। अगर आप संसार में शुद्ध लेने जाते हो तब भी आपको शुद्ध चीजें नहीं मिलती है। जबकि परमात्मा से आपको कभी अशुद्ध चीज नहीं मिलेगी, बस आपको रुकना नहीं है, बढ़ते जाना है। निश्चित आपको शुद्ध और स्थायी चीज मिलेगी। बात यहां पूर्ण की है। जब आपको पूर्णता चाहिए तो बात केवल यहां दृष्टि की है, जो पूर्ण को देख सकें।

पूर्ण को देखो, पूर्ण को जानो और पूर्ण को जीयो

साध्वीजी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि आपको अगर पूर्ण बनना है तो पूर्ण को देखो, पूर्ण को जानो और पूर्ण को जीयो तो आप पूर्ण बन जाओगे। वैसे तो आप पूर्ण हो पर जब आप सबको पूर्ण देखोगे तक आपकाे खुद के पूर्ण हाेने का अहसास हो जाएगा। जब तक आप पूर्ण होने का अनुभव नहीं करोगे तब तक आपको पूरी दुनिया अपूर्ण लगेगी। पिछले प्रवचन के दौरान जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि के विषय पर चर्चा हुई थी। जो जैसा होता है उसे हर चीज वैसे ही दिखाई देता है। जैसा हम चाहेंगे वैसा हम लोगों को समझते है। लेकिन यहां बात आत्मा के स्तर की है। यह बात बाहर भी वैसी है और आत्मा के अंदर भी। दुनिया के सामने आप क्रोध में भरे हुए हो, तो आप किसी को देखे तो वह भी आपको क्रोध में ही नजर आएगा। वह कहता है कि सबको क्रोध आता है, जबकि किसी को यह निर्णय करने का अधिकार नहीं है कि कौन कैसा है। आप किसी के भाव को नहीं माप सकते कि वह कितना क्रोधित है या वह कितना खुश है।

शब्दों पर नियंत्रण रखें

जो आपको हमारे करीब ले जाए, हमारे स्वभाव को बताए वह हमारा धर्म है। जो हमको हम से दूर कर दें वह हमारे लिए पाप है। जब आप किसी को गलत साबित करन जाओ तो आप यह देखे की आपके पास पुण्य कितने है। दूसरी बात यह सोचे कि क्या आपको किसी को गलत ठहराने का अधिकार है। बाेलना भी एक कला है, अगर यह नहीं आए तो बला भी है। बाेलने से ही सारा काम बनता है और बाेलने से ही सारा काम बिगड़ भी जाता है। लोगों से पूछो कि महाभारत कैसे हुआ तो कहते है कि द्रौपती की वजह से हुआ था। पर महाभारत द्रौपती के शब्दों की वजह से हुआ था। अगर द्रौपती उन्हीं शब्दों को अच्छे ढंग से बोलती तो महाभारत नहीं हुआ हाेता। वैसे ही भीष्म पितामह को अपने अंतिम समय में बाणों की शैया में लेटना पड़ा। उन्होंने भगवान कृष्ण से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है। इस पर भगवान कृष्ण ने कहा कि आप अपने पिछले जन्मों में देखेंगे तो आपको यह पता चल जाएगा। उन्होंने अपने पिछले 100 जन्मों को देखा तो उन्हें कुछ गलत नहीं लगा, भगवान कृष्ण से पूछने पर उन्होंने बोला कि और पीछे जाओ। उन्होंने अपना पिछला 101 जन्म को देखा तो पाया कि वे उस समय एक राजा थे। अपने सैनिकों के साथ वे जंगल पार कर रहे थे, इस बीच रास्ते में एक सांप आ गया। उन्होंने सैनिक को कहा उसे उठाकर फेंक दो। सैनिक ने वैसा ही किया पर उसने देखा नहीं कि वह सांप कहां जाकर गिरा। वह सांप एक कांटों के पेड़ पर गिरा। कांटों से बचने वह करवट लेता तो दूसरे कांटे उसे फिर चुभते। साध्वीजी ने कहा अगर से कहते कि उस सांप को उठाकर बगल में रख दें तो उनकी वाणी संयमित होती। बस यही फर्क है शब्दों में।

संस्कारो के शंखनाद शिविर में 200 बच्चों ने की धर्म की आराधना

आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि रविवार को शिविर में 200 से ज्यादा बच्चों ने गुरु भगवंतों की निश्रा में धर्म की आराधना की। उन्होंने बताया कि शुक्रवार से ज्ञान सार सूत्र शुरु हुआ। महिलाओं और युवतियों के लिए शुक्रवार से स्पेशल शिविर का आयोजन किया गया है। 16 जुलाई से 30 जुलाई तक चलने वाले इस शिविर में दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तक जीवविचार विषय और दोपहर 3.30 से 4.15 बजे तक कर्म का कम्प्यूटर विषय की क्लासेस चलेंगी। शिविर में भाग लेने योगिता लोढ़ा, अंजली चोपड़ा और सोनल डागा से संपर्क किया जा सकता है। वहीं, बच्चों के लिए संस्कारों का शंखनाद का आयोजन किया गया है। यह 16 जुलाई से शुरु होकर 14 अगस्त तक चलेगी। इसमें भाग लेने दीपिका डागा, दर्शना सकलेचा और श्वेता कोचर से संपर्क किया जा सकता है।

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