नवनिर्मित समता भवन में बह रही है प्रवचन की अविरल धारा
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 18 जुलाई। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मन में यदि ईर्ष्या हो इसका असर खाने पर भी आ जाता है। जैसा हमारा भाव होता है वैसा ही भोजन बनता है। उन्होंने कहा कि वनस्पति भी भावों को पकड़ती है। मन शुद्ध रखें तभी खाना बनाएं तो भोजन भी शुद्ध बनेगा।
समता भवन में आज अपने प्रवचन में जैन संत ने कहा कि हम अपने जीवन में नया-नया प्रयोग करते रहते हैं। इससे परिवर्तन भी आया है। इनमें से कुछ को तो हमने स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि जो अच्छा है वही पसंद आता है किंतु अब हम अच्छे बुरे को नहीं देखते। हमें तो बस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में दौड़ना है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। मुनिश्री ने कहा कि हमें सुनना अच्छा लगता है किंतु अच्छी बातों को अपनाना अच्छा नहीं लगता। व्यक्ति आलस्य छोड़ना नहीं चाहता, वर्तमान में प्रकृति जो चल रही है उसे भी वह छोड़ना नहीं चाहता, प्रिय वस्तु को भी वह छोड़ना नहीं चाहता। मुनि श्री ने कहा कि यदि व्यक्ति को उसके प्रिय वस्तु की 10 बुराइयां गिना दी जाए तब कहीं वह उसे छोड़ता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के मन में जो परिवर्तन है उसका शुभ परिणाम दिखना चाहिए। हम कहते हैं कि पानी का दुरुपयोग ना करें किंतु हमने दुरुपयोग के बारे में सामने वाले को समझाया ही नहीं। हम अपनी गाड़ी को साफ करने के लिए कितने ही लीटर पानी बहा देते हैं किंतु दो चार किलोमीटर चलने के बाद गाड़ी फिर वैसी की वैसी ही हो जाती है। आज अगर घर में चार सदस्य हो तो उसके आठ कमरे होते हैं और आठों कमरों में दो दो नल होते हैं एक गर्म पानी का तो दूसरा ठंडे पानी का। हम कितना पानी बर्बाद करते हैं। उन्होंने कहा कि यह जान लीजिए कि हम वर्तमान में जिस चीज की कमी महसूस कर रहे हैं निश्चित है कि भूतकाल में उसका दुरुपयोग हुआ है।
हर्षित मुनि ने आगे फरमाया कि हमारी किसी हरकत से जीव को जितना कष्ट होता है ,भले ही वह बोल नहीं पाता, देख नहीं पाता किंतु यह मान लीजिए कि उसका प्रभाव हम पर पड़ेगा ही। आप दूसरों की परवाह करेंगे तो प्रकृति भी आपकी परवाह करेगी और यदि लापरवाह है तो प्रकृति भी लापरवाह हो जाएगी। हमें सहज जीवन जीना चाहिए। विश्वास करें कि कर्म नाम की भी कोई चीज होती है। हम दूसरों को कष्ट देते तो हमें भी कष्ट होता है।