एक बार मनुष्य जीवन खो दोगे फिर वह दोबारा मिलने वाला नहीं: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

एक बार मनुष्य जीवन खो दोगे फिर वह दोबारा मिलने वाला नहीं: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। कोई चीज चाहे वह सांसारिक वस्तु, राजनीतिक पद या फिर मनुष्य जीवन ही क्यों न हो, दोबारा हासिल नहीं कर सकते। संसार का सुख पराई वस्तु धारण कर क्षणिक खुशी मनाने जैसा है। हमारे पास जितने साधन है, उसमें ही हम अगर संतोष कर जाते है तो वही असली खुशी है। यह बातें गुरुवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने आगे कहा कि आजकल हर एक सामान किराए पर मिल जाती है। लोग शादी-ब्याह में लाखों रूपए खर्च कर देते हैं। एक दिन शादी का जोड़ा पहनने के लिए भी लाखों रूपए के कपड़े लेते है। जबकि वह कपड़ा बाजार में किराए पर भी लिया जा सकता है। शादी का कपड़ा आप केवल एक ही बार पहनते हो, तो इसके लिए लाखों खर्च करने की क्या जरूरत है। दाेनों बातों का सार भी यह है कि आप कपड़ा कहीं का भी पहनो आपको अंदर से संतोष नहीं मिलेगा। आपके पास जितना साधन है, उसमें शांति प्रदान करने की शक्ति है। आप बाहर सुख शांति खोजने निकलते हो, अगर आप आसपास के साधनों में खुश रहना सीख जाओगे तो आपको शांति का अहसास हो जाएगा। दुनिया में न तो कोई ऐसा पदार्थ है, न प्राणी, न वस्तु और न ही ऐसा कोई व्यक्ति है, जिससे आपकाे सुख मिलता हो। सुख आपको अपने भीतर के भावों से ही मिल सकता है।

सब के आभारी मत बनो, एक दिन उन्हीं पर भारी हो जाओगे

गुरुवर्याश्री स्नेहयशाश्रीजी ने आगे बताया कि आप चाहते हो सब आपकी इच्छा से चले। सब आपकी तरह रहें, किसी में काेई कमी न रहे, सब आपकी तरह गुणवान और विद्यवान हो जाए। पर ऐसा होता नहीं है। आप चाहोगे कि घर में, दुकान में, समाज में मेरी ही चले तो एेसा हो नहीं सकता। एक किस्सा है जिसमें एक वृद्ध महिला प्रवचन सुनकर अपने घर जा रही थी। रास्ते में उसे एक 8 साल की बच्ची मिलीं, उसने अपने हाथ में एक डब्बा रखा था। महिला ने पूछा कि क्या हुआ ऐसा खाली डब्बा लेकर क्या कर रही हो। उसने जवाब दिया कि मैं आपके घर छाछ लेने गई थी, पर दीदी (महिला की बहू) ने मना कर दिया। उन्होंने कहा आज छाछ नहीं है। महिला ने कहा कि तुम मेरे साथ चलो, फिर घर पहुंचकर उन्होंने देखा और नहीं मिलने पर अपनी बहू से पूछती है कि छाछ कहां है। बहू बताती है कि आज छाछ नहीं है। फिर वह महिला उस बच्ची को बताती है कि बेटा आज छाछ नहीं है। बच्ची कहती है यह बात तो दीदी ने मुझे पहले बता दी थी। इस पर महिला ने कहा कि हां बता तो दिया होगा, पर उसने मुझसे पूछा नहीं था। साध्वीजी कहती है कि अब आप सोचिए कि मैं की भावना से इस बच्ची और बहू के मन में कैसे-कैसे सवाल आए होंगे। हमें ‘मैं’ से बचना है।

मैं’ और ‘मेरा’ भाव से हमें बचना है

साध्वीश्री स्नेहयशाश्रीजी ने बताया कि हम सभी को ‘मैं’ और ‘मेरा’ शब्द के साथ उसके भाव से भी बचना है। हम सभी दोहरा जीवन जीते है। दोहरा जीवन मतलब जब लेने का समय आए तो आगे हो जाते है। वहीं, जब कुछ देने का समय आए तो बाकियों को आगे कर खुद पीछे हो जाते हैं। वैसे ही जब सुधरने की बात आए तो पत्नी, बच्चे, बेटे-बहू को आगे कर देते हो और आशीर्वाद लेने का समय आए तो खुद आगे आ जाते हो। साध्वीजी आगे बताती है कि हमारे पास बहुत से लोग आते है और कहते कि साध्वीजी ये मेरा बेटा है, बहुत गुस्सा करता है, छोटी-छोटी बातों पर आग बबूला हो जाता है। इसे थोड़ा सुधार दो। इस पर साध्वी जी कहते है कि क्या आपको गुस्सा नहीं आता। इस पर महिलाएं कहती है कि हां थोड़ा बहुत आता है। पर इसे पहले सुधार दो, इसे पहले जरूरत है। साध्वीजी कहती है कि मन के बीमारी का इलाज दूसरे का करवाते हो और जब शरीर बीमार हो जाए तो पहले खुद का इलाज करवाने डॉक्टर के पास जाते हो।

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