रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। अाप सुबह से लेकर शाम तक और रात-रात को काम करते हो। आप इतनी मेहनत क्यों करते हो। यह मेहनत आप अपने साधन जुटाने, सुख और आराम से रहने के लिए करते हो। आप कितनेे भी साधन जुटा लें, ये साधन आपको कभी सुख नहीं दे सकते है। आपको असली सुख साधना ही दे सकती है। यह बातें शुक्रवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
उन्होंने आगे कहा कि जैसे ही आप कोई सुखी व्यक्ति दिखे तो आपको तुरंत उसके चरण पकड़ लेने चाहिए। क्योंकि कोई भी साधन आपको वह खुशी नहीं दे सकता है, जो आप अंतर्मन में महसूस करेंगे। वैसे ही संसार में परमात्मा को छोड़कर आपको कोई व्यक्ति सुख नहीं दे सकता है। आप कितने भी साधन जुटा लो, आप पूर्ण नहीं बन सकते हो। चांद भी हर एक दिन बड़ा हाेता चला जाता है और शुक्ल पक्ष के 15वें दिन वह पूर्ण हो जाता है, जिसे हम पूर्णिमा कहते है। पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ भी पूर्ण ही है।
स्वीकार करना सीखों
साध्वीजी कहते हैं कि आपके साथ जो घटना और व्यवहार हो रहा है, उसे स्वीकार करना सीखना होगा। अगर आप अपने वाहन से कहीं जा रहे हो और किसी दूसरे वाहन से अापका टक्कर हो जाता है तो आपको यह नहीं देखना है कि गलती किसकी है। आपको यह स्वीकार करना होगा आपका टक्कर हो गया है। आपको कहीं चोट लगी हो तो अस्पताल जाकर उसका इलाज करवाना होगा। अगर अापकी गाड़ी का कोई नुकसान हुआ हो तो गैरेज में लेजाकर उसकी भी मरम्मत करवानी होगी। कोई आपको बुरा-भला कहे तो आपको कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। आपको उसकी बातों से स्वीकार करना सीखना होगा कि क्या अापने कोई गलती की है जो कोई आपको बुरा-भला कह रहा है। इस स्वीकृति के साथ हमेशा आपको अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहना चाहिए। आप जब तक स्वीकार करना नहीं सीखेंगे तब तक आप इस सांसारिक दुनिया में घूमते ही रह जाएंगे।
गर्मी नहीं, नरमी से पेश आयें
साध्वीजी कहती है कि आजकल जरा सी खुशी से भी आदमी के अंदर गर्मी पैदा हो जाती है। किसी के अंदर पैसों की गर्मी होती है तो किसी के अंदर शरीर की और मजबूत भुजाओं की गर्मी आ जाती है। यह गर्मी व्यक्ति को बद्तमीज बना देती है। यह गर्मी उनका काम भी बिगाड़ देती है। आपने देखा होगा कि घर में जो पंखे और कूलर के स्विच को जब आप झुकाते है, तो वे आपको ठंडक पहुंचाते है, शीतलता देते है। आपको अपने अंदर के मैं को छोड़ना है, उसे गला देना है। आपको ‘मैं आत्मा हूं’ को अपनाना होगा, तभी इस जीवन चक्र से आप मुक्त होने की राह पर चल सकेंगे। साध्वीजी कहती हैं कि जब कोई पीठ पीछे आपकी निंदा करें, आपको धक्का पहुंचाए तो आप परेशान मत होना। इन बातों को अगर आप सकारात्मकता से सोचें तो आप आगे बढ़ जाओगे। हमारे पीठ पीछे की गई निंदा हमें आगे ढकेलती है। जबकि आगे से आपकी कोई प्रशंसा करें तो आपको खुश होने की नहीं बल्कि सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि प्रशंसा पाने से आपके अहंकार को बढ़ावा मिलता है। पीठ पीछे जो निंदा करें, उसकी बातों को स्वीकार कर लेना और उसे अपना सबसे अच्छा शुभचिंतक मानना। क्योंकि वे ही आपके असली शिक्षक होते है।
तपस्वियों का हुआ बहुमान
मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी धर्मराज बेगानी तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति 2022 के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि शुक्रवार को तपस्वियों का बहुमान किया गया। जप-तप और साधना के क्रम में शुक्रवार को पूजा लोढ़ा ने उपवास, आयुषी बरड़िया ने 9 उपवास और पीयूष कोचर के 9 उपवास का बहुमान नाहटा परिवार कवर्धा, रायपुर ने 151 उपवास से किया।