जो व्यक्ति विलासता में डूबता है उसके जीवन का पतन हो जाता है -प. पू. मधु स्मिता श्रीजी ……जो दूसरों को दुख, कष्ट देता है वह खुद सुख-शांति का अनुभव नहीं कर पाता – प. पू. सुमित्रा श्रीजी

जो व्यक्ति विलासता में डूबता है उसके जीवन का पतन हो जाता है -प. पू. मधु स्मिता श्रीजी ……जो दूसरों को दुख, कष्ट देता है वह खुद सुख-शांति का अनुभव नहीं कर पाता – प. पू. सुमित्रा श्रीजी

धमतरी(अमर छत्तीसगढ़)। चातुर्मास के तहत इतवारी बाजार स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। जिसके तहत आज प. पू. मधु स्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि दो प्रकार के रोग होते है तन का और मन का। शरीर में व्याधि हो तो उसे ठीक करने का हम प्रयास करते है लेकिन मन के रोग पर किसी का ध्यान नहीं जाता।

जिसके कारण आत्मा अस्वस्थ व बीमार हो जाती है। चिकित्सा से तन के रोग ठीक हो सकते है यदि मन के रोग के प्रति उतना ही ध्यान दे तो आत्मा का उद्धार हो जाएगा। विकारो से आत्मा मलीन हो जाती है इसलिए आत्मा की शुद्धि की ओर ध्यान दे। अरीति से सयंम के प्रति अरुचि का भाव उत्पन्न होता है। यदि संयम के प्रति जागृति हो तो किसी भी परिस्थिति में मन को सुन्दर बनाया जा सकता है। जीवन को निखारा जा सकता है। अनूकुल परिस्थितियों में साधक का संयम जरुरी है।

विरक्ति का भाव जीवन को परिवर्तित कर देता है। प्रवचन के दौरान स्थूलीभद्र के जीवन का परिचय देते हुए विरक्ति की प्रेरणा दी गई। सर्प के कांटने, अग्नि में कूदने से बचा जा सकता है, लेकिन विलासता के वातावरण में प्रवेश करे तो स्वयं को नहीं बचाया जा सकता। जो व्यक्ति विलासता में डूबता है उसके जीवन का पतन हो जाता है। प. पू. सुमित्रा श्री जी म. सा. ने कहा कि जो दूसरों को दुखी करता है, कष्ट देता है वह कहीं भी चला जाए सुख शांति का अनुभव नहीं कर पाता। क्योंकि स्वयं दुखी है इसलिए दूसरो को दुख देता है। जो स्वयं सुखी है वह दूसरों को सुख देता है। जो व्यक्ति परमात्मा से जुड़ता है वह सुखी हो जाता है।

आत्मा ही सुख दुख का कर्म बांधती है। अपने ही किये का परिणाम हमे प्राप्त होता है। श्रावकों की 11 प्रतिमाएं, साधुओं का 12 प्रतिमाएं होती है, 12 व्रत होते है। कम से कम एक व्रत हमारे जीवन में आना चाहिए जो आपको व्रती बना सकता है। एक व्रत से ही कर्मो को तोडऩे की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। क्रोध अहम में पता नहीं चलता कि व्यक्ति कितना बुरा काम कर रहा है। क्रोध, अहम हमारा शत्रु है यह हमे परमात्मा से दूर करता है। खाली समय में हम बोर हो जाते है लेकिन यह आत्म चिंतन का समय होता है। इस समय का सदुपयोग करते हुए हमे धर्म में ध्यान लगाना चाहिए।

भोपाल,रतलाम सहित अन्य जगहों से आए श्रावकों का संघ ने किया सम्मान

प्रवचन का श्रवण करने बड़ी संख्या में जैन समाजजनों के साथ बाहर से भी श्रावक पहुंच रहे है। आज अशोक चोपड़ा रतलाम, पुखराज बोहरा नागदा, ज्ञानचंद जैन भोपाल, सुरेश चन्द्र कलवानी मालवा सिवनी, संजय कुमार मेहर का श्री संघ द्वारा सम्मान किया गया। वहीं सुरेशचन्द्र कलवानी के तरफ सिंग पूजा की गई। संजय कुमार द्वारा भक्ति गीत की प्रस्तुति दी गई।

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