शिकायत और अपेक्षा श्रद्धा मेंसेंध लगाती है – हर्षित मुनि

शिकायत और अपेक्षा श्रद्धा मेंसेंध लगाती है – हर्षित मुनि

सफल होने के लिए धैर्य और समर्पण की भावना जरूरी

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 6 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि सफल होने के लिए धैर्य और समर्पण की भावना जरूरी है। शिकायत और अपेक्षा श्रद्धा में हमेशा सेंध लगाती है। दूरी मायने नहीं रखती भीतर की भावना महत्व रखती है। शबरी ने धैर्य रखा, राम आखिर उनके यहां गए जबकि उनके पास कुछ भी नहीं था। हमारी भक्ति, तपस्या, साधना कभी खाली नहीं जाती। हमें धैर्य रखना चाहिए।
समता भवन में अपने नियमित प्रवचन के दौरान हर्षित मुनि ने कहा कि प्रकृति हमें धैर्यवान और सहनशील बनाना चाहती है तभी हम सफल हो सकते हैं, किंतु हम धैर्य नहीं रख पाते और हम अपने लक्ष्य के आसपास भटकते रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी भावना कहां – कहां चली जाती है। मन स्थिर होगा तो श्रद्धा भी स्थिर होगी। गुरु महाराज बच्चों का पूरा ध्यान रखते हैं परंतु छोटी-छोटी अपेक्षाओ पर ध्यान नहीं देते। बच्चा यदि गिर जाता है तो मां दौड़कर चली जाती है ऐसे में बच्चा,कच्चा रह जाता है। व्यक्ति यदि तृप्त हो तो दूर से दर्शन में ही वह तृप्त हो जाता है, नहीं तो गुरुदेव कितने भी दर्शन दे दें , समय दे दें ,वह तृप्त नहीं हो पाएगा।
श्री हर्षित मुनि ने कहा कि राधा और मीरा में यही अंतर था कि राधा को श्री कृष्ण प्राप्त थे और मीरा ने साधना के जरिए उन्हें प्राप्त किया। हमारे शरीर में ऐसे ऐसे रसायन हैं कि कभी उसे जागृत करना पड़ता है तो कभी वह स्वयं ही जागृत हो जाता है। मीरा ने जहर का प्याला पिया किंतु भक्ति में लीन मीरा को उस पार अलौकिक शक्ति ने विष के प्याले को अमृत में बदलकर बचा लिया क्योंकि उसमें श्रद्धा थी। उन्होंने कहा कि श्रद्धा बहुत काम करती है ।श्रद्धा जिस तरह होती है हमारे भीतर का स्वरूप भी वैसा ही रूप धारण करता है। यदि आपने सकारात्मक सोच को साधा है तो नकारात्मक सोच आपके करीब भी नहीं आएगी। देवतत्व , गुरुतत्व एवं धर्मतत्व पर श्रद्धा हो तो व्यक्ति की खुद पर श्रद्धा जागेगी और उसके मन में आत्मविश्वास जागेगा। भावनाओं में परिवर्तन आए तो बड़ा परिवर्तन हो जाता है। अहो भाव रखिए। प्रकृति भी यही चाहती है कि हमारे भीतर के रोग दूर हो और हम अहो भाव के साथ जिए। यह जानकारी विमल हाजरा ने दी।

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