धन और धर्म कमाने आपको पुरुषार्थ करना होगा लेकिन दोनों को एक साथ नहीं किया जा सकता- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

धन और धर्म कमाने आपको पुरुषार्थ करना होगा लेकिन दोनों को एक साथ नहीं किया जा सकता- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। उपाध्याय यशोविजयजी ज्ञान सार ग्रंथ में बताते है कि धन और धर्म कमाने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। आप धन कमाने के लिए इतना पुरुषार्थ करते हो की आप धर्म करते समय भी दुकान खोलने के टाइम पर उठ कर चले जाते हो। अगर मेन लाइन ही बंद हो तो आप कितना भी पंखे-लाइट का स्विच ऑन कर लो फिर भी वह नहीं चलेगा। वैसे ही धन और धर्म कमाने का पुरुषार्थ एक साथ नहीं किया जा सकता है। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में चल रहे भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने सोमवार को कही।

साध्वीजी कहती है कि आप काजू-बदाम खाओगे तो शरीर में ताकत आएगी लेकिन उनसे बनी मिठाइयां आपको सिर्फ स्वाद दे सकती है, ताकत नहीं। पुण्य कितना भी कर लो अगर आपके पाप खत्म नहीं होंगे तो ऐसे पुण्य को करने का भी कोई मतलब नहीं होगा। वैसे ही द्वेष है। अगर आपके पास गाड़ी नहीं है तो आप सेकंड हैंड गाड़ी भी ले लेते हो। सेकंड हैंड गाड़ी आ जाए फिर आप नई गाड़ी लेने का विचार करते हो। आपने नई गाड़ी ले ली तो पड़ोसी की गाड़ी से तुलना करके उस से भी महंगी गाड़ी लेना चाहते हो। वह भी ले लिया तो शहर में सबसे महंगी गाड़ी लेने का विचार आपके मन में आ जाता है। दूसरों को देखकर काम कर अपना शौक पूरा करना द्वेष की श्रेणी में आता है। द्वेष के बाद आता है क्लेष। एक पाप से बचने के लिए आप दूसरा पाप करना शुरू कर देते हो, इसे ही क्लेष कहा गया है। पाप से बचने के लिए आपको सरल बनना होगा। सरल शब्द बोलना तो बहुत आसान है लेकिन सरल बनना उतना ही कठिन होता है।

खुद रोशन हो जाए, दूसरों को न करें

साध्वीजी कहती है कि गलत होना या गलती करना बड़ी बात नहीं है। जबकि गलती को नहीं मानना बड़ा पाप है। विडंबना है कि आज तक हजारों गलतियां करते है आैर जब उसे स्वीकार करने की बात हो तो हम मुकर जाते है। साध्वीजी कहती है कि मोमबत्ती का प्रकाश जिस पर पड़ता है तो उससे किसी को कोई नुकसान नहीं होता है। वैसे ही अगर किसी मोमबत्ती से जबरदस्ती किसी व्यक्ति के ऊपर तिरछा कर ज्यादा रोशनी लोगे तो वह जल्द ही खत्म हो जाएगी। आपको दूसरों पर रोशनी नहीं डालना है। दूसरों के दोषों पर आपा रोशनी डालते रहोगे तो आप भी बहुत जल्दी खत्म हो जाओगे। हमारा भारत देश ही एक ऐसा देश है जहां धर्म का मतलब बताया जाता है। ऐसा दुनिया के किसी देश में नहीं हाेता है। धर्म बताने का अर्थ यह भी निकलता है कि आप अपने जीवन में संयम बनाए रखो। आपको ज्यादा गरम या बहुत ज्यादा ठंडा नहीं रहना है। जैसी पानी का स्वभाव ठंडा होता है, उसे कितना भी गरम कर लो वह वापस ठंडा हो जाता है।

क्रोध में फैसला न लें, खुशी में वादा न करें

साध्वीजी कहती है कि आप कितना भी उबल जाओ पर पर्यूषण पर्व के इन आठ दिनों में आपको ठंडा रहना है। आप कोई भी गलती करते हो तो छुप कर करते हो ताकि कोई देख न लें। कोई गलती करते आपको देखता है कि भी है तो वह अपने चर्मदृष्टि से देखता है। किसी के कर्मदृष्टि से आप बच जाओगे लेकिन कर्मसत्ता, धर्मसत्ता और परमसत्ता से आप नहीं बच सकते हो। किसी गलती के लिए आपको दूसरा व्यक्ति माफ कर सकता है, पर परमात्मा के घर में आपको किसी गलती की माफी नहीं मिलती है। वैसे ही द्वेष की बात की जाए तो सभी में द्वेष की भावना रहती है। आप के बगल वाली दुकान में ग्राहक नहीं आए तो आपको कुछ नहीं लगता। जब उसी दुकान में अापके दुकान से ज्यादा ग्राहक आने लगे तो आप कुछ न कुछ गलत सोचने लगते हो और गलत करने से भी बाज नहीं आते हो। यह आपका क्रोध होता है। आपको क्रोधित होकर कोई फैसला नहीं करना है और वैसे ही आपको किसी खुशी के अवसर पर किसी से कोई वादा भी नहीं करना है। आपको कोई ऐसा काम भी नहीं करना है जिससे किसी को आहत पहुंचें।

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