जैन संत ने नैतिक पतन से बचने के लिए कहा
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 28 अगस्त। “एक परफेक्ट व्यक्ति वही होता है जो उचित समय में उचित निर्णय लेता है और उचित कार्य करता है। साधुओं का तथा आम व्यक्ति का लक्ष्य एक ही होता है, मार्ग भी एक ही होता है, बस फर्क इतना है कि साधु-साध्वियों की गति तेज होती है और गृहस्थ जीवन वालों की गति धीमी होती है।”उक्त उदगार आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने समता भवन में अपने नियमित प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
जैन संत ने कहा कि आईना देखकर व्यक्ति समझ जाता है कि उसके शरीर में कहां खराबी है, वह उसे सुधार लेता है। इसी तरह अतीत को देखकर हम अपना जीवन सुधारते हैं। उन्होंने कहा कि रामायण, महाभारत के पात्र हमें सीख, शिक्षा और प्रेरणा देते हैं। सदाचार, शिष्टाचार, निस्वार्थ भाव आदि सिखाते हैं। हमारी संस्कृति को कितनी बार लूटा गया है किंतु वह आज भी समृद्ध है। हमें इसका जतन करना चाहिए।
संत श्री ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति का नैतिक पतन ज्यादा हुआ है। उन्होंने कहा कि आर्थिक पतन तो दिखता है, शारीरिक पतन भी थोड़े समय बाद दिख जाता है किंतु नैतिक पतन नहीं दिखता। इसे समझा जा सकता है। नैतिकता के जरिए हम शांति और समाधि प्राप्त कर सकते हैं। उचित समय पर उचित निर्णय और उचित कार्य तथा उचित सलाह ही व्यक्ति को परफेक्ट बनाती है। सद्गति की चिंता और दुर्गति का भय व्यक्ति को पाप करने से रोकता है। अच्छा करने से अच्छा होगा और बुरा करने से बुरा होगा, यह यदि व्यक्ति के मन में बैठ गया तो वह कभी बुरा कार्य नहीं करेगा। अनुचित कार्य आपके जीवन में तरंग लायेगा ही। उन्होंने कहा कि माता पिता की सेवा करो उचित समय पर उचित निर्णय लो और उचित कार्य करो तो आप में परिवर्तन अवश्य आएगा और आप अपना नैतिक उत्थान करते हुए शांति के मार्ग पर अवश्य बढ़ेंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।