पहले स्वयं को साधे फिर दूसरों को तारे – जैन संत हर्षित मुनि

पहले स्वयं को साधे फिर दूसरों को तारे – जैन संत हर्षित मुनि

परोपकार से ऊपर है परम उपकार

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 20 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि परोपकार से ऊपर है परम उपकार। इसके लिए पहले स्वयं को साधना होगा फिर दूसरों को तारना होगा। उन्होंने कहा कि जब तक आप स्वयं तैर नहीं सकोगे तो दूसरों को तार कैसे पाओगे? कई लोगों की आदत होती है कि वह कुछ जाने बिना उपदेश देते रहते हैं। उन्होंने कहा कि आपको जिस संबंध में जानकारी नहीं है उस संबंध में उपदेश नहीं देना चाहिए।
समता भवन में आज जैन संत ने कहा कि हमारी स्वयं की नाव मझधार में है और हम दूसरों को रास्ता दिखा रहे हैं तो यह उचित नहीं है। इस प्रकार के परोपकार का कोई मतलब नहीं है। परोपकार का मतलब तब निकलेगा जब हम स्वयं भी पार हो जाएं और दूसरों को भी पार लगा दें। भगवान उत्तम से उत्तम गुणों में आते हैं जो स्वयं का कल्याण तो करते ही हैं , साथ ही सबका कल्याण भी करते हैं। इसके लिए वैसे पुरुषार्थ करना भी आवश्यक है।
जैन संत ने कहा कि खुद को तारना कितना कठिन है और उससे भी कठिन है दूसरों को तारना। आराधना करने से उत्कृष्ट रसायन आता है और साधक तीर्थंकर भी बन सकता है। अगर आपका व्यक्तित्व शांत है तो सामने वाला आपके आभा मंडल में आने के बाद शांति पाएगा। एक तरफा प्यार और दुश्मनी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकती। भावना और पुरुषार्थ उत्तम हो तो प्रकृति भी सहायता करती है। उन्होंने कहा कि हम अपने ऊपर प्रयोग करें कि मैं शांत रहूं और आसपास के लोग भी शांत रहें। इस भावना से रहें तो प्रकृति भी साथ देती है। इससे हमें तो समाधि प्राप्त होगी ही हमारे आभा मंडल में आने वाले आसपास के लोग भी समाधि प्राप्त कर सकेंगे। हम खुद की शुद्धि के बिना सामने वाले को शुद्ध नहीं कर पाएंगे। अंदर अगर सामने वाले के प्रति बुरी भावना है तो सामने वाला शांत नहीं हो पाएगा , विचारों की तरंग उस तक पहुंचेगी और वह अशांत हो जाएगा। मन को पवित्र नहीं बनाए और वाणी को मधुर बना लें तो भी हमारी भावना सामने वाले तक पहुंच ही जाती है। भले ही आपको बोलने व कुछ करने का तरीका नहीं आता हो किंतु चित्त निर्मल एवं पवित्र हो तो सब कलाएं धीरे-धीरे आ जाती है। इसलिए मन बनाएं कि अपने चित्त को शुद्ध करें और समाधि प्राप्त करने की कोशिश करें। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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