राष्ट्रसंतों का शोभायात्रा के साथ जैन बगीचा में हुआ मंगल प्रवेश, तीन दिवसीय प्रवचन माला का हुआ आयोजन
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़), 24 नवंबर। ‘‘व्यक्ति अपनी जिंदगी में अगर ये तीन फैक्ट्रियां खोल ले, तो उसकी जिंदगी मालामाल हो जाएगी। उनमें पहली है- अपने माथे या दिमाग के प्लॉट पर आईस फैक्ट्री। दूसरी- अपनी जुबान के प्लॉट पर शुगर फैक्ट्री और तीसरी फैक्टी का प्लॉट हृदय है, जहां आदमी लव फैक्ट्री खोल ले। दिमाग में खोली आईस फैक्ट्री के मालिक बनकर हमेशा कूल-कूल रहें, जुबान पर खोली शुगर फैक्ट्री के मालिक बन सदा मीठा-मुधर बोलें और हृदय रूपी प्लॉट पर खोली प्रेम या लव की फैक्ट्री का मालिक बन सबसे प्रेम करें। ये तीन फैक्ट्रियों का जो मालिक बन जाता है उसकी पूरी जिंदगी प्रेम, माधुर्य और आनंद से भर जाती है। हमेशा कूल रहें, मीठा बोलें और सबसे प्रेम करें। ये तीन मंत्र आपकी जिंदगी को आनंद और माधुर्य से भर देंगे।’’
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने गुरुवार को श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा सदर बाजार स्थित जैन बगीचा प्रांगण में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के शुभारंभ पर ‘कैसे बनाएँ खुद को 3 फैक्ट्रियों का मालिक’ विषय पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, यदि वह अपनी जिंदगी में नम्रता, विनयशीलता का व्यवहार रखे, जब भी बोले मीठा-मधुर भाषा बोले और हृदय में सबके लिए सदा प्रेम बनाए रखे तो उसकी जिंदगी मालामाल हो जाएगी। अक्सर आदमी का भेजा हमेशा गर्म बना रहता है, जरा सा कोई उसका अपमान कर दे तो दो मिनट में वह अपना आपा खो देता है। आदमी सबसे ज्यादा कर्म बंध अपने गर्म दिमाग से करता है। जब भी कोई आपको विपरीत बात कहे, आपकी आलोचना करे तब अपनी शांति बनाए रखें, सामने वाले के शब्दों को भीतर न आने दें। क्योंकि जो चीज आप स्वीकार नहीं करते वह सामने वाले के पास ही रहती है।
एक-दूसरे को सुधारने की जंग छोड़, पहले स्वयं में सुधार लाएं
संतप्रवर ने कहा कि सरल व नम्र स्वभाव हमारी कमजोरी नहीं है, बल्कि यह हमारी ऊंची सोच व अच्छे संस्कारों का परिचायक है। अन्यथा जो सुन सकता है, वो आदमी बोल भी सकता है। जब भी ऐसी प्रतिकूल स्थिति आए तो भगवान महावीर के कथन- हे जीव अब तो शांत रह, का स्मरण करें। विपरीत वातावरण तो सबकी जिंदगी में आता ही है। दूसरे को सुधारने के फेर में रहने की बजाय पहले खुद को सुधारें, सामने वाला भी एक दिन आपसे प्रभावित हो स्वयं ही थोड़ा न थोड़ा सुधर ही जाएगा। आदमी की पहली भूल यही है कि वह एक-दूजे को सुधारने में लगा रहता है। सुधारने की कार्रवाई जब भी हो तो आदमी उसकी शुरूआत खुद से करे। जब-जब सामने वाला आपके मन में कसाय पैदा करे तब-तब इस बात को जरूर याद करें कि इसके साथ तो मेरी बहुत छोटी-सी यात्रा है।
सातों दिन अपने गुस्से को रखें काबू
अपने गुस्से को सदा काबू रखने की सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा- सोमवार को अगर गुस्सा आए तो उस दिन को सप्ताह का पहला दिन मानकर गुस्सा न करें, मंगलवार को गुस्सा आए तो मंगल को मैं अमंगल नहीं बनाउंगा सोचकर गुस्सा न करें, बुधवार को गुस्सा आए तो बुध के दिन युद्ध नहीं कहकर शांत रहें, गुरुवार को यदि क्रोध आ जाए तो गुरूदेव का वार मानकर गुस्सा न करें, शुक्रवार को शुक्राना अदा करने-धन्यवाद कहने का दिन मानकर गुस्सा न करें, शनिवार को शनि हावी हो जाएंगे यह जानकर गुस्सा बिलकुल न करें और रविवार को गुस्से की छुट्टी का दिन मानकर प्रसन्नता से भरे रहें।
क्रोध में जीओगे तो संसार में डूबोगे
महाराष्ट्र के संत तुकाराम और यूनान के महान दार्शनिक शुक्रात के गृहस्थ जीवन का वृतांत सुनाते हुए संतश्री ने धर्मानुरागियों को सदा शांत-कूल रहने की प्रेरणा दी। क्योंकि पास रहते हुए भी यदि कोई मन से दूरियां बना ले तो मन को बहुत खटकता है। आज से जीवन का यह मंत्र बना लें कि मैं जब भी बोलुंगा शांतिपूर्वक सोचकर ही बोलुंगा। भगवान महावीर ने विषधर सर्प चण्डकौशिक को केवल एक शब्द कहा था-बुज्झ। यानि बोधि को प्राप्त कर। क्रोध में जीओगे तो संसार में डूबोगे और बोध में जीओगे तो मुक्ति मंजिल की ओर बढ़ जाओगे।
गलती होना प्रकृति और गलती न सुधारना विकृति है
संतश्री ने कहा कि अपने घर के माहौल को आनंदमयी बनाने के लिए इस बात को जीवन में अपना लें कि आप जैसा व्यवहार अतिथियों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार अपने घर वालों से भी करें। फिर कभी घर में कलह हो जाए तो कहना। उन्होंने कहा- गलती होना हमारी प्रकृति है पर गलती को ना सुधारना या ना स्वीकारना यह हमारी विकृति है। और गलती हो जाने पर सॉरी कहना यह हमारे भारत की संस्कृति है। क्षमा का परिणाम हमेशा मीठा होता है। क्षमा और प्रेम की गंगा में जब आदमी नहाता है तो उसका मन पवित्र हो जाता है। आदमी का दो मिनट का गुस्सा उसके पूरे कॅरियर पर, बरसों के रिश्तों पर पानी फेर देता है। जीवन में एक बात हमेशा याद रखना कि बिगड़े हुए रिश्ते भी तब बन जाते हैं जब आप प्रेम से बोलते हैं और बने हुए रिश्ते भी तब बिगड़ जाते हैं जब आप टेढ़ा, तीखा-कडुवा बोलते हैं। टेढ़ा बोलना दीवारों पर कील ठोंकने जैसा होता है, कील निकल जाती है मगर उसका निशान बना रह जाता है। पे्रमपूर्वक बोलों से प्रेम के पुल खड़े हो जाते हैं तो कडुवा बोलने से द्वेष की दीवारें खड़ी हो जाती हैं। मीठा-मधुर और हितकारी बोलें, क्योंकि बोलने की शालीनता से आदमी की कुलीनता की पहचान होती है। एक बार इज्जत देकर मधुर जबान से बोल कर तो देखो, आपके बिगड़े रिश्ते कैसे संवर-सुधर जाते हैं। अपने हृदय में सर्वदा सबके लिए प्रेम रखें। ये दिवाली आए तो अपने कर्मचारियों को केवल सामान मत देना, अगर दे सकते हो तो उन्हें गले लगाकर सम्मान जरूर देना। दिया हुआ सामान तीन महीने में खत्म हो जाएगा पर आपने गले लगाकर उसे जो सम्मान दिया, उसे वह जीवनभर याद रखेगा। क्या बोलना, कैसे बोलना इसका सदा विवेक रखें। रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय।। हमें पता है- स्कूलों में लिखा रहता है, ऊसूल मत तोड़िए। बगीचों में लिखा रहता है- कृपया फूल मत तोड़िए। और खेलों में सिद्धांत होता है- रूल मत तोड़िए। आज मैं यह कहता हूँ- जिंदगी में कभी किसी का दिल मत तोड़िए।
जीवन से प्रेम निकल जाए तो इंसान-जानवर में कोई फर्क नहीं- नम्रता, माधुर्य और प्रेम इन तीन सूत्रों के जीवन में महत्व को संतश्री ने एक रोचक दृष्टांत से स्पष्ट करते बताया कि एक बार जानवरों के दल और मनुष्य दल में कौन है श्रेष्ठ विषय पर आमने-सामने वाद-विवाद स्पर्धा हुई। जब इंसानों ने अपनी सुंदर आंखों की तारीफ बताई तो जानवरों ने हिरणी को सामने खड़ा कर दिया और कहा तुम्हारे समाज में सुंदर आंखों की उपमा मृगनयनी कहकर दी जाती है। फिर इंसानों ने स्वयं को मीठी भाषा बोलने वाला बताया तब जानवरों ने कोयल को आगे कर कहा, मधुर वाणी की उपमा आप लोग कोकिला कहकर देते हैं, तो आपमें और हममें श्रेष्ठ कौन। इसी तरह बहादुरी की बात आने पर शेर को खड़ा कर दिया गया, फिर इंसानों ने 380 किलो के मोटे पहलवान को खड़ा किया तो जानवरों ने हाथी को सामने लाकर कहा- आप लोग पहलवान की उपमा हाथी जैसा बल से देते हैं। फिर इंसानों ने विश्व सुंदरी को सामने लाया तो जानवरों ने मोर को आगे कर दिया। बाजी हारते देख इंसानों ने दाव खेला और कहा कि हम इंसान सात्विक और निर्मल भोजन करते हैं तब जानवरों ने हंस को आगे कर दिया। फिर इंसानों ने अपनी विशेषता बताते कहा कि हम सब हिल-मिलकर खाते हैं, जानवरों ने जवाब दिया कि हमें पता है आप लोग पराया माल हो तो हिल-मिलकर खाते हैं और खुद का माल हो तो अकेले में खाते हैं। तब आदमियों ने कहा कि हम परिवार के रूप में साथ-साथ रहते हैं तो जानवरों ने सुअर को आगे बुलाया। इंसानों ने अपना आखिरी दाव खेला और कहा- हम सब आपस में हिल-मिलकर प्रेम से रहते हैं। इस पर जानवर दल कुछ झुका और उनके मुखिया ने कहा- यह बात सच है कि जब तक तुम लोग प्रेम से रहते हो तब तक तुम हमसे ऊपर हो, लेकिन जिस दिन तुम्हारे जीवन से प्रेम निकल जाता है उस दिन तुममें और हममें कोई फर्क नहीं होता।
धर्मसभा में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने श्रद्धालुओं को जीवन में सुख शांति बढ़ाने के लिए मंगल पाठ प्रदान किया।
इससे पूर्व संतों के नगर आगमन पर गायत्री मंदिर से विराट सत्संग शोभायात्रा का आयोजन हुआ जो सदर बाजार होते हुए जैन बगीचा प्रांगण पहुंची जहां पर जैन समाज और सकल समाज के हजारों श्रद्धालु भाई बहनों द्वारा संतों का धूमधाम के साथ अभिनंदन और स्वागत किया गया। जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री मनोज बैद ने स्वागत भाषण में महाराज साहब जी ने संस्करधानी को जो अपना अमूल्य समय दिया उसके लिए आभार प्रकट किया और आये हुए सभी सर्व धर्मी बंधुओ का स्वागत एवं अभिनन्दन किया एवं आभार प्रकट किया और बताया की शुक्रवार को सुबह 9:00 बजे होंगे विशेष प्रवचन और सत्संग-संघ।
ज्ञान की पुस्तक के लाभार्ती श्री दामोदर दास मुंदडा़ ,अजय सिंघी एवं सीताराम अग्रवाल का संघ के द्वारा सन्मान किया गया एवं सभी साधर्मिक बंधुओ को ज्ञान की पुस्तक का वितरण किया गया।
इस अवसर पर संघ समाज के मैनेजिंग ट्रस्टी मनोज बैद ,ट्रस्टी श्रीचंद कोचर, ट्रस्टी मनीष छाजेड,ट्रस्टी ज्ञान चंद कोठारी,ट्रस्टी नरेश गोलछा,पद्मश्री डॉ पुखराज बाफना, खूबचंद पारख महामंत्री दिनेश लोढ़ा, कोषाध्यक्ष राजेश कोटड़िया ,विनोद बोहरा,राजकुमार बैद,अक्षय मुणोत , नरेश बैद, एवं समस्त संघ समाज उपस्थित था।
मीडिया प्रभारी आकाश चोपड़ा ने बताया कि शुक्रवार को राष्ट्र संतों के सानिध्य में सदर बाजार स्थित जैन बगीचा प्रांगण में सुबह 6:15 बजे संबोधि ध्यान योग शिविर और 9 बजे दिव्य प्रवचन व सत्संग का आयोजन होगा जिसमें सभी शहरवासी भाग ले सकते हैं।