रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 23 नवंबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि समय बड़ा मूल्यवान है। इस संसार ने उत्कृष्ठ स्थित दो जगहों की है, एक है 33 सागरोपम और दूसरी है सर्वार्थ सिद्धि विमान की। इन दो जगहों की स्थिति उत्कृष्ट है। लेकिन दोनों ही स्थितियों का बंद है। 33 सागरोपम को लवसप्तम कहा गया है। सात श्वास का एक प्राण होता है, सात प्राण का एक स्तोक होता है और सात स्तोक का एक लव होता है। आज के समय में लव सप्तम का मतलब है 7 से 8 मिनट। इस समय अंतराल में 33 सागरोपम का आयुष बनता है, शुभ और अशुभ दोनों। अगर मनुष्य लोक में इतना समय सर्वार्थ सिद्धि विमान के देवताओं के पास होता तो वे सीधे मोक्ष में जाते। कोई गलती नहीं, ज्ञान में कमी नहीं, कमी केवल इतनी कि उन्होंने साधना 7 मिनट देरी से शुरू की। अगर उनके पास 7 मिनट का और आयुष होता तो वो मोक्ष में जाते। 7 मिनट का आयुष नहीं रखने के कारण उन्हें 33 सागरोपम में रहना पड़ता है, फिर गर्भ में आकर जन्म लेना, फिर कम से कम 8 वर्ष के बाद साधना शुरू करके मोक्ष में जाते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
बुधवार को पुच्छिंसुणं (वीर स्तुति) आराधना के 8वें दिवस धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि एक सूत्र हमेशा याद रखें कि किसी भी शुभ कार्य के लिए देर की तो संयोग होने के बाद भी सिद्धि नहीं मिलेगी। एक किलोमीटर दूर रहते हुए दरवाजा बंद हो जाए तो दुःख कम होता है, लेकिन अपनी आँखों के सामने दरवाजा बंद हो जाए तो अधिक पीड़ा होती है। देखते देखते गाड़ी छूट जाए, तो हम दोष किसे देते हैं? उस समय हम यह नहीं कहते कि मैं जल्दी नहीं निकल। परमात्मा कहते हैं कि तू सात मिनट पहले निकल, तू सात मिनट पहले शुरुआत कर सकता था। अगर पहले निकलोगे तो गाड़ी नहीं छूटेगी। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कोई भी साधना 50 श्वासोश्वास करनी चाहिए। कोई मंगलभाव मन में आई, कोई सुविचार मन में आया तो उस भावना में 50 श्वासोश्वास तक रह जाइये। लेकिन इसका प्रयोग करना कठिन है, क्योंकि 40 श्वासोश्वास के बाद मन भटकने लगता है, और वहीं संभालना पड़ता है। इस दौरान कोई न कोई अवरोध आ जाता है कि हम उसे छोड़ देते हैं। और कुछ नहीं तो साधना के दौरान कान में खुजली होने लगती है, और हम खुजलाने के चक्कर में साधना भंग कर देते हैं। लेकिन महावीर की साधना अनूठी है, परमात्मा खुजलाते नहीं थे। हमें लगेगा कि ये कौन सी अनूठी बात है, लेकिन जब साधना में बैठेंगे तो पता चलेगा कि एक समय आता है जब शरीर में खुजली मचती है, और हमारा हाथ उस ओर चला जाता है। हाथ गया मतलब साधना भी गई। उस समय नहीं खुजलाना, यह बहुत बड़ी कसौटी होती है।
समय किसी की नहीं सुनता
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि हमारी समस्या का कारण छोटा सा है, हम समय पर काम शुरू नहीं करते। आप बाकि सभी चीजों में सुधर कर सकते हो, गलती होने पर सामने वाले से क्षमा मांग सकते हो, लेकिन समय के पास प्रार्थना सुनने के कान नहीं हैं। समय किसी की नहीं सुनता, हमें समय की सुननी पड़ती है। सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि महावीर ने अनुत्तर की स्थिति प्राप्त करने के लिए कभी देर नहीं की। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जब भी मन में किसी के प्रति गुस्सा आये तो 50 श्वासोश्वास करो, मन में गुस्से की जगह प्रेम का झरना बहने लगेगा। 5 श्वासोश्वास में गुस्सा रुक जाएगा, और 50 श्वासोश्वास करने पर अंदर में क्रोध की ज्वाला शांत हो जायेगी और प्रेम का सागर उमड़ने लगेगा। केवल 7 मिनट का समय लगता है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सभा में श्रेष्ठ है सुधर्मा सभा। यह सभा है तो जीवन में गरिमा है, सभा नहीं है तो धर्म भी नहीं है। सभी साधनाओं में श्रेष्ठ है निर्वाण। तपस्या से शांति प्राप्त होती है, लेकिन तपस्या की कसौटी क्या है? तपस्या से आसक्ति समाप्त हो जानी चाहिए। किसी चीज का लगाव रहेगा तो तपस्या से शांति प्राप्त नहीं होगी। आँखें खोलनी है तो अभय की नियमिति करनी पड़ती है। भय में आंख बंद हो जाती है, आंख खुली रखनी है तो अभय बनाना पड़ता है। जो अभय की नियमिति करता है उसकी ऑंखें खुल जाती है। भय में दिमाग बंद हो जाता है, सही निर्णय नहीं ले पाते हैं, सही निर्णय तभी ले सकेंगे जब मन में भय नहीं रहेगा। अगर रिश्तों को खोलना है तो सबसे पहले भय को समाप्त करो। अंदर में जो भय का प्रवाह है उसे निकाल दो। अंदर की आसक्ति, अहंकार को बाहर निकालो। महावीर भावना को रोककर नहीं रखते थे। अंदर की तिजोरी को खाली करो, मन को साफ़ रखो। मन साफ़ नहीं रहा तो प्रवचन, धर्म का स्वाद नहीं आएगा।
धर्मसभा को पूछते हुए उपाध्याय प्रावर ने कहा कि सर्प बनकर जीना चाहिए कि गाय बनकर? अगर हम किसी को क्षमा नहीं करते हैं, तो हम सर्प हैं। सर्प जहर इकट्ठा कर के रखता है। अगर हम किसी को क्षमा नहीं करते हैं तो हम अपने साथ दूसरे का भी पाप मन में रखते हैं। यही पाप जहर है, जो हमारे मन में जमा होता है। अगर आपको कोई गले नहीं लगता है तो इसका कारण है कि अपने अपने अंदर जहर जमा कर रखा है। लेकिन समझदार व्यक्ति कभी अपने मन में जहर नहीं रखेगा। पाप को पकड़कर रखोगे तो कभी शांति की अनुभूति नहीं होगी। सर्प से सभी दूर भागते हैं, वहीं गाय के पास सभी जाते हैं क्योंकि गाय के पास दूध है। गाय बनकर जीयोगे तो सभी तुम्हे गले लगाएंगे।
मन का जहर कैसे निकालें?
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अंदर की गन्दगी निकालने की दो रास्ते हैं। या तो उसका वमन कर दो, या उसे पचाने का प्रयास करो। महवीर ने अपने क्रोध का वमन किया था। कोई भी वास्तु जो हमारे पेट के लिए फायदेमंद नहीं है, उसका हम वमन कर देते हैं। और हमें पता रहता है कि यह खाना हमारे लिए फायदेमंद नहीं है। जिस चीज का वमन हो जाता है उसे हम दुबारा नहीं खाते। लेकिन कई लोग उसे पचाने का प्रयास करते हैं। क्रोध और लोभ जहर हैं, जो हमारे मन के लिए घातक है न। महावीर ने इन दोनों चीजों का वमन कर दिया था। क्रोध और लोभ शरीर में रहेंगे तो दोष ही बनाएंगे। वमन करने से शुद्धि हो जाती है, और जो व्यक्ति वमन कर देता है वह न तो पाप करता है और न ही करवाता है।