आयारो आगम की मंगलवाणी को प्रसारित कर रहे अहिंसा यात्रा प्रणेता
450 से अधिक दामाद भी बेटियों संग पहुंचे अध्यात्मवेत्ता की मंगल सन्निधि में
सूरत गुजरात(अमर छत्तीसगढ) 3 अगस्त ।
डायमण्ड सिटि सूरत में वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मानों प्रतिदिन आयोजनों व सम्मेलनों का दौरान जारी है।
शनिवार को एक महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान उपासक सेमिनार का प्रारम्भ हुआ तो दूसरी ओर जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा स्नेह, संस्कार व समन्वय के रूप में प्रारम्भ किए गए प्रकल्प ‘बेटी तेरापंथ की’ का द्वितीय सम्मेलन का शुभारम्भ भी हुआ। अपने आध्यात्मिक मायके पहुंचने वाली बेटियों का उत्साह मानों अपने चरम पर था। 1100 से अधिक बेटियां तो साथ ही 450 से अधिक दामाद भी संभागी बनने के लिए चतुर्मास प्रवास स्थल में पहुंच गए। बेटियों की चहक से पूरा चतुर्मास परिसर चहचहा रहा था।
शनिवार को महावीर समवसरण भी बेटी, दामाद व श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति से जनाकीर्ण बना हुआ था। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आयारो आगम के प्रथम अध्ययन के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में अनंत जीव हैं।
हिंसा तो संसारी जीवों की ही होती है। वास्तविकता यह है कि आत्मा को काटा नहीं जा सकता, नष्ट नहीं किया जा सकता। जो कुछ भी नुक्सान पहुंचाया जाता है, वह शरीर को ही होता है। मनुष्य तो पंचेन्द्रिय प्राणी होता है। उसकी इन्द्रियां ज्ञान का ग्रहण करती हैं, तीर्थंकर को आत्मा से ज्ञान की प्राप्ति होती है। संसारी, स्थावर और त्रस जीवों की भी हिंसा हो सकती है। स्थावर में एक तेजसकाय के जीव भी होते हैं।
यहां आगमकार ने बताया कि जो प्रमत्त, प्रमादी, विषय लोलुप अग्निकाय के जीवों की हिंसा करता है, उसे दण्ड कहा जाता है। जो विषयार्थी अग्निकाय की हिंसा करता है, वह अपनी आत्मा को दण्डित करता है। गृहस्थ लोग अपने जीवन को चलाने के लिए भोजन पकाते हैं। सर्दी के मौसम में आग जलाकर सर्दी को दूर भगाने के रूप में करते हैं। खुशी में पटाखे आदि छोड़े जाते हैं, इन सभी जगहों पर अग्निकाय की हिंसा होती है। यह हिंसा कहीं आवश्यक तो कहीं अनावश्यक रूप में की जाती है।
आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि सभी प्रकार के संसारी जीवों के प्रति अहिंसा के भावों का विकास करने का प्रयास करना चाहिए और संभव हो सके तो अनावश्यक हिंसा से बचने का प्रयास का प्रयास करना चाहिए। चलने में, बैठने में, स्नान करने में आदि कार्यों में अहिंसा का प्रतिपालन करने का प्रयास हो। शरीर, वाणी और वाणी से भी हिंसा न हो, इसके प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन करते हुए साधु-साध्वियों को अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की अनुज्ञा से नवदीक्षित छह साध्वियों साध्वी अक्षयविभाजी, साध्वी प्रीतिप्रभाजी, साध्वी परागप्रभाजी, साध्वी मेधावीप्रभाजी, साध्वी दीक्षितप्रभाजी व साध्वी निश्चयप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने छहों साध्वियों को 21-21 कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
नवदीक्षित साध्वियों ने संतों को वंदना की तो मुनिवृंद की ओर से मुनि उदितकुमारजी ने नवदीक्षित साध्वियों के प्रति मंगलकामना की। आचार्यश्री ने उपासक सेमिनार के प्रारम्भ के संदर्भ में मंगलपाठ सुनाया। आज साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आज से ‘बेटी तेरापंथ की’ के द्वितीय सम्मेलन का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में इसकी संयोजक श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। सूरत शहर से जुड़ी हुई तेरापंथी बेटियों ने गीत को प्रस्तुति दी। तदुपरान्त सह संयोजिका श्रीमती वंदना बरड़िया ने समन्वयक बेटियों के साथ भावनाओं को प्रस्तुति दी।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक मायके में पहुंची तेरापंथी बेटियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि साधु सांसारिक संयोगों से मुक्त होता है। यह संबंधातीत जीवन है। गृहस्थ जीवन में परिवार की शादी आदि-आदि कार्यक्रमों के लिए कहां से कहां जाना होता है। आज ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन हो रहा है। यह कार्यक्रम संबंधों वाला है। मुझे जानकारी मिली कि बेटियों के साथ दामाद भी आए हैं, बहुत अच्छी बात है।
बेटियां अपने परिवार में अच्छे संस्कार के साथ रहें। अपने बच्चों का अच्छे धार्मिक संस्कारों का सिंचन करने का प्रयास करें। परिवार नशामुक्त हो। महासभा के तत्त्वावधान में यह प्रकल्प सामने है। बेटी के साथ दामाद का भी ससुराल पक्ष से एक विशेष संबंध होता है। दामाद लोग भी परिवार में शांति रहे, बच्चों में अच्छे संस्कार हो। जीवन नशामुक्त रहे। महासभा का यह क्रम धार्मिक दृष्टि व सामाजिक दृष्टि से निष्पत्तिकारक बने, मंगलकामना।