शीतल राज मुनि श्री ने कहा तीर्थंकर अपने तीर्थंकर नाम को क्षय करने चरित्रो की स्थापना की

शीतल राज मुनि श्री ने कहा तीर्थंकर अपने तीर्थंकर नाम को क्षय करने चरित्रो की स्थापना की

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 24 अगस्त। नवकार मंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि वितरागी तथा महान आत्माओं को नमस्कार किया गया। वह पांच महान आत्माएं क्रमशः अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु है। मुख्य मंत्र 14 पूर्व का सार है इसे जपने से पूर्व संचित कर्मों का क्षय होता है। 18 पापों से छुटकारा पाना इनको हमारे आत्मा रूपी घर के दरवाजे में घुसने से पहले रोके। तीर्थकर भगवान तो नियम से होते हैं । पर प्रत्येक भगवान तीर्थकर नहीं तीर्थंकर हुए बिना भी भगवान बना जा सकता है।

नवकार मंत्र तीर्थंकर महापुरुष बनने पापों, संवर, कर्म पर बोलते हुए शीतल राज मुनिश्री ने आज अपने प्रवचन में कहा तीर्थंकर अपने तीर्थंकर नाम को क्षय करने के लिए चार चीजों साधु साध्वी, श्रावक श्राविका की स्थापना की। वह महापुरुष जिन्होंने साधना आराधना एवं तप सेवा करके जिन्होंने तीर्थंकर नाम कर का बंध किया ।

जैन तीर्थंकर जैन धर्म परंपरा की प्राचीनता प्राचीन ग्रंथो में भी उल्लेखित है, जैनमतानुसार भगवान अनंत होते हैं प्रत्येक की तीर्थंकर भगवान तो नियम होते हैं पर प्रत्येक भगवान तीर्थंकर नहीं, कहा भी गया है जिससे संसार सागर तर जाए उसे तीर्थ कहते हैं और जो ऐसे तीर्थं को करें अर्थात संसार सागर से पार उतरने का मार्ग बताएं तीर्थंकर कहते हैं ।

वीतरागी एवं सर्वज्ञा हो वही भगवान । ज्ञान के अभाव में हमें भगवान ने जो तीर्थ बताएं उनको माने या ना माने केवल इधर-उधर घूम कर नहीं श्रावक के योग्य का त्याग कल्याण कर पांच महाव्रत रात्रि भोजन जीवन भर के लिए छोड़े । उसकी आराधना करें, जिससे समस्त पापों का क्षय हो जाए ।

वे महापुरुष स्वयं आराधना करते भव्य जीव को मार्गदर्शन करते ऐसे साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओ उन चारतीर्थ की स्थापना कर भव जीवो को जहां स्वयं जानने वाले हैं उसे प्रेरणा की मार्ग दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर जीवन को सफल न बनाकर सफल बनाने के लिए पाप से बचकर अशुभ कर्मों से बचकर पुण्य करें ।

उन्होंने आज अपने प्रवचन में फिर से 18 पापों के बारे में उपस्थित साधको से पूछा कहां पाप से बचकर ही कल्याण होगा । कहां पाप के प्रवेश के पहले अपने आत्मा के दरवाजे बंद रखें । पापों के आने के बाद दरवाजे जब तक बंद नहीं करेंगे पाप आना नहीं रुकेगा। पाप 20 है आने के मार्ग 20 है। पाप इतने सूक्ष्म है कई बार पता ही नहीं चलता पहला दरवाजा बंद है तो उसको सोचने की जरूरत है जबकि हमें मूल दरवाजा बंद करना है। सबसे बड़ा दरवाजा मिथ्यात्व अवरत, प्रमाद, कषाय, अशुभयोग है मूल दरवाजा मिथ्यात्व है । संवर निर्जरा व मोक्ष को अपनाओ ।

मोहनीय कर्म बड़ा है इसे निवारण क्षीण करने समान व्यवहार सहनशीलता सम्यक समझ हो । जो वीतरागी और सर्वज्ञ है वही भगवानहै।

बिना पूर्व ज्ञान किए और वीतरागी बने कोई भगवान नहीं हो सकता । देवी देवताओं को भूल तो परेशान रहेंगे । सुधर्म में को माने, उपद्रव नहीं होगा। उन्होंने कहा अपनी आत्मा का कल्याण करना है तो नवकार मंत्र में धर्म की बताई परिभाषा जाने । मनुष्य भव को सफल बनाने सवल बनाने का हो उसे चार कर्मों का क्षय किया।

एक नवकार बोलने से अनंत जीवन की वंदना होती है पर ज्ञानपूर्वक भाव पूर्वक हो संख्या बढ़ाने के साथ विधिवत जाप करें तो उसके फायदे हैं । उन्होंने कहा तिरना एवं डूबना हमारे हाथ है दूसरा कोई न तिरा सकता ना डूबा सकता। उन्होंने पूनः कहा ऊपर आश्रव के दरवाजे बंद हो इसके चालू रहने से पाप बढ़ेगा, हमारी आत्मा के अंदर कर्म आने का बड़ा दरवाजा यहीहै ।

सुश्रावक प्रेमचंद भंडारी ने नियमित पचखान प्रस्तुति में कहा 30 का मासखमन कमलचंद ललवानी का हुआ । इनके साथ गेंदमल बागमार जो तप तपस्या की लड़ी से जुड़ी महत्वपूर्ण कड़ी है का सम्मान बहुमान चातुर्मास लाभार्थी संचेती परिवार द्वारा किया गया।

श्री भंडारी के अनुसार 16 दिन का पचखान मोहित 5 का, निर्मल भंडारी तीन का, विजय लुणावत एक का, उम्मीद मल सुराणा आयंबिल, कमला पारख, एकासना का शोभा इत्यादि ने किया। सुश्रावक विनय पटवा ने उपस्थित साधकों को कल दया दिवस संवर प्रतिक्रमण में भाग लेने कहा । उन्होंने कहा आगामी 1 सितंबर को पर्यूषण प्रारंभ हो रहा है। रविवार है सभी दया में भाग लेकर संवर प्रतिक्रमण भी करें। आज भी वीतरागी को संवर करने वाले श्रावक श्राविकाओ का बहुमान किया गया ।

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