अंबिका जैन भवन में पर्युषण पर्व की आराधना का आगाज, पहले दिन अहिंसा दिवस मनाया
अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ) , 1 सितम्बर। अहिंसा जैन धर्म का मुख्य आधार व उसकी विशिष्ट पहचान है। ये धर्म ऐसा है जो हर तरह के जीव की रक्षा की प्रेरणा प्रदान करता है। पर्वाधिराज पर्युषण के ये आठ दिन हमे अहिंसा की पालना करने के साथ अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए तप त्याग, स्वाध्याय व साधना करने की भी प्रेरणा देते है। परमात्मा प्रभु भगवान महावीर स्वामी की इस जगत में पहचान उनके पंच महाव्रत से भी होती है जिनमें अहिंसा भी शुमार है।
ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा. ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पहले दिन रविवार को अंबिका जैन भवन आयोजित प्रवचन में व्यक्त किए। पर्युषण का पहला दिन अहिंसा दिवस के रूप में मनाया गया। धर्मसभा में शहर एवं आसपास के क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं शास्त्र एवं प्रवचन श्रवण करने पहुंचे।
प्रवचन में शुरू में अंतगड़ सूत्र का वांचन मधुर व्याख्यानी हितेशमुनिजी म.सा. ने किया। दोपहर में प्रार्थनार्थी सचिनमुनिजी म.सा. ने कल्पसूत्र का वांचन किया। शाम को प्रतिक्रमण का आयोजन किया गया। धर्मसभा में मुकेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि पर्युषण 90 महान आत्माओं के सिद्ध होने का उत्सव है। इसे अधिकाधिक धर्म ध्यान व तप त्याग करके मनाना चाहिए।
परमात्मा महावीर ने सभी प्राणियों को जीने का अधिकार देते हुए ही संदेश दिया कि जीयो ओर जीने दो। अहिंसा का महत्व समझने के लिए धर्मरूपी अणगार से भी प्रेरणा ली जा सकती है जो हर स्थिति में समभाव में रहे। धर्मसभा में सेवा रत्न हरीशमुनिजी म.सा. ने कहा कि अहिंसा हमारे जीवन का आधार होना चाहिए। वाणी ओर विचारों से भी अहिंसा का पालन होना चाहिए।
पर्युषण पर्व हमारे लिए तब सार्थक हो जाएगा जब हम प्रकार की हिंसा से दूर हो जाएंगे। जैन धर्म का सबसे प्रमुख सिद्धांत ही अहिंसा परमो धर्म है। उन्होंने कहा कि सभी जीव जीना चाहते है मृत्यु को कोई भी पसंद नहीं करता। पर्युषण पर्व में हमे संकल्प लेना होगा कि मन, वचन व काया से किसी प्रकार की हिंसा नहीं करेंगे। जीवन में पहले ज्ञान प्राप्त करे फिर दया के भाव लाए।
दयामय जीवन होने पर ही अहिंसा के भाव आएंगे। हिंसा को अहिंसा से ही जीता जा सकता है। हम अपने जीवन में अहिंसा का महत्व समझ गए तो आत्मकल्याण की राह आसान हो जाएगी। धर्मसभा में युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि पर्युषण का पहला दिन अहिंसा दिवस हमे प्रेरणा देता है कि किसी भी प्रकार की हिंसा से स्वयं को दूर रखना है। हम एकन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों तक की रक्षा करने का भाव रखना चाहिए।
प्राणी मात्र की रक्षा करने पर ही हम सच्चे श्रावक-श्राविका बन पाएंगे। हमारे मन के भावों को भी हिंसा मुक्त रखना होगा। मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि किसी भी प्रकार की हिंसा का त्याग ही अहिंसा है। हिंसा तीन प्रकार की मन, वचन व कर्म से हो सकती है। हमे हर प्रकार की छोटी से छोटी हिंसा का भी त्याग करना है। बिना हिंसा का त्याग किए हमारी पर्युषण पर्व की आराधना सार्थक नहीं हो सकती।
धर्मसभा में प्रार्थनार्थी सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि पर्युषण का आठ दिवसीय महापर्व आत्मशुद्धि करने की प्रेरणा देते है। अष्ट कर्मो को क्षय करने की प्रेरणा भी इससे मिलती है। इन आठ दिवस में अंतकृत दशा सूत्र का वाचन भी चलता है। यह दशा उस स्थिति को कहते है जिसमें कर्म अवशेष नहीं रहते ओर जीवात्मा राग-द्वेष से मुक्त हो जाती है।
आत्मा का कल्याण करना है तो बाहरी शत्रुओं से ज्यादा महत्वपूर्ण आंतरिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना है। पर्युषण के पहले दिन कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, आयम्बिल व एकासन के प्रत्याख्यान लिए। पर्युषण के पहले ही दिन धर्मभक्ति के प्रति इतना उत्साह श्रावक-श्राविकाओं ने दिखाया कि प्रवचन स्थल छोटा प्रतीत होने लगा। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया।
हितेशमुनिजी ने किया अंतगड़ दशांग सूत्र एवं सचिनमुनिजी ने किया कल्प सूत्र का वाचन
धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी हितेशमुनिजी म.सा. द्वारा अंतगढ़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचन किया गया। उन्होंने कहा कि आर्य सुधर्मास्वामी से उनके शिष्य आर्य जम्बूस्वामी पूछते है कि आठवें अंग सूत्र में परमात्मा प्रभु महावीर ने क्या फरमाया ओर किस विषय का प्रतिपादन किया। उस समय सुधर्मास्वामी ने अपने मुखारबिंद से जो फरमाया वही अंतगढ़ दशांग सूत्र के अंदर है। इस आठवें अंग में प्रभु महावीर ने आठ वर्ग का प्रतिपादन किया जिनमें 90 चैप्टर है। प्रत्येक चैप्टर में एक-एक अंतकृत केवली (सिद्धात्मा) का वर्णन है।
पहले वर्ग के 10 चैप्टर में से प्रथम चैप्टर गौतमकुमार का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह गौतमकुमार के मन में वैराग्य भाव जागृत होता है ओर वह संयम जीवन स्वीकार कर लेते है। वह 12 वर्ष दीक्षा पर्याय की पालना करने के बाद एक माह संलेखना संथारे के साथ शत्रुंजय पर्वत पर उनकी आत्मा सिद्ध बुद्ध मुक्त को प्राप्त होती है।
इसी प्रकार आगे बाकी के 9 कुमारों के भी वर्णन आते है जो गौतमकुमार की तरह दीक्षित होकर तपस्या करते है ओर सारे कर्मो को खत्म कर सिद्ध बुद्ध मुक्त होते है। दोपहर में प्रार्थनार्थी सचिनमुनिजी म.सा. द्वारा कल्पसूत्र का वांचन किया गया। इसके माध्यम से पहले दिन बताया गया कि कल्पसूत्र वांचन में किन बातों का समावेश है एवं श्रावक-श्राविकाओं के जीवन में इसके श्रवण का क्या महत्व है।
पर्युषण में प्रतिदिन बारह घंटे नवकार महामंत्र की आराधना शुरू
श्रीसंघ अंबाजी के तत्वावधान में अष्ट दिवसीय पर्युषण में प्रतिदिन सुबह 6 से शाम 6 बजे तक 12 घंटे नवकार महामंत्र जाप का आयोजन भी रविवार से शुरू हो गया। इसके तहत निर्धारित समय अवधि में श्रावक-श्राविकाओं को अपनी सुविधानुसार प्रतिदिन एक-एक घंटे का समय जाप के लिए देने की प्रेरणा पूज्य संतप्रवार द्वारा प्रदान की गई थी। इस प्रेरणा के चलते पहले ही दिन श्रावक-श्राविकाएं उत्साह से अपने निर्धारित समय पर नवकार महामंत्र जाप की आराधना करने के लिए पहुंचते रहे।
पर्युषण में पहले दिन स्मरण शक्ति प्रतियोगिता
अष्ट दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पहले ही दिन दोपहर में मधुर व्याख्यानी हितेशमुनिजी म.सा. के मार्गनिर्देशन में स्मरण शक्ति प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इन प्रतियोगिताओे में कई श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। पर्युषण पर्व के दूसरे दिन 2 सितम्बर को सत्य दिवस मनाया जाएगा। दोपहर में संसद प्रतियोगिता का आयोजन होगा। पर्युषण के अंतिम दिवस 8 सितम्बर को क्षमापना दिवस मनाते हुए संवत्सरी महापर्व की आराधना की जाएगी।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627