हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ)1 सितम्बर। जीवन में वास्तव में मृत्यु उस अतिथि के समान है जिसके आगमन का कोई भरोसा नहीं होता है कि कब आ जाएगा। जिस तरह अतिथि के स्वागत की तैयारी रखते है वैसे ही मृत्यु के स्वागत की भी तैयारी रखे। अतिथि ओर मृत्यु दोनों बिना बताए आते है। मृत्यु को उत्सव बना लो ओर मरने की ऐसी तैयारी रखों की मरने का मजा आ जाए। एक बार मरने का मजा आ गया तो हमेशा-हमेशा के लिए मृत्यु से छुटकारा मिल जाएगा। मरने के आनंद का नाम ही संथारा है जो आत्मा का कल्याण कर देता है। अभी शरीर को मजा आ रहा है पर आत्मा की दुर्दशा हो रही है।
ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में अष्ट दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पहले दिन रविवार को धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व की आराधना को सार्थक बनाने के लिए जरूरी है हम समर्पित भाव से तप, साधना, स्वाध्याय व भक्ति करें। अपना कल्याण चाहते है तो जिनेन्द्र परमात्मा की वाणी सुने जो आपके कदम गलत मार्ग पर बढ़ने से रोक सकती है।
अतंगड़ दशांग सूत्र का पहला ही सूत्र समझ में आ जाए तो किसी की बुराई व घृणा नहीं कर पाएंगे। मुनिश्री ने कहा कि जिंदगी के आखिर लम्हो में दीक्षा की नहीं संथारे की भावना होनी चाहिए। कभी दुविधा में नहीं रहना जितना जल्दी निर्णय होगा कार्य की गुणावत्ता भी उतनी ही अच्छी होगी।
हमे चलना नहीं आता इसलिए समस्याएं आती है। चलना आ गया तो जहां भी जाएंगे समाधान मिलेगा। गायनकुशल जयवंत मुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘ये पर्व है न्यारा पर्युषण प्यारा, तू कर्म खपा ले ये पर्व मना ले’’ की प्रेरणादायी प्रस्तुति दी। धर्मसभा में पूज्य प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। पर्युषण पर्व के पहले ही दिन हैदराबाद के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे श्रावक-श्राविकाओं का सैलाब इस कदर उमड़ा कि पारख धर्मसभा मण्डप का विशाल प्रांगण भी छोटा प्रतीत हुआ।
धर्मसभा का संचालन ग्रेटर हैदराबाद संघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया। धर्मसभा में पर्युषण पर्व की आराधना करने पूना,नासिक,बीड,चैन्नई, मैसूर, नंदुरबार, भीलवाड़ा आदि स्थानों से पहुंचे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे। पर्युषण अवधि में सुबह 8.30 बजे से अंतगढ़ सूत्र का वाचन एवं इसके बाद प्रवचन होगा। प्रतिदिन दोपहर में कल्पसूत्र वाचन के साथ विभिन्न प्रतियोगिताएं भी होगी।
विवेचन से पूर्व अंतगड़ दशांग सूत्र की मूलकथा का वाचन
धर्मसभा में पूज्य समकितमुनिजी म.सा. द्वारा अंतगढ़ दशांग सूत्र का विवेचन करने एवं प्रवचन देने से पूर्व गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. द्वारा अंतगढ़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का विवेचन किया गया। विवेचन करते हुए समकितमुनिजी ने बताया कि आर्य सुधर्मास्वामी से उनके शिष्य आर्य जम्बूस्वामी पूछते है कि आठवें अंग सूत्र में परमात्मा प्रभु महावीर ने क्या फरमाया ओर किस विषय का प्रतिपादन किया।
उस समय सुधर्मास्वामी ने अपने मुखारबिंद से जो फरमाया वही अंतगढ़ दशांग सूत्र के अंदर है। इस आठवें अंग में प्रभु महावीर ने आठ वर्ग का प्रतिपादन किया जिनमें 90 चैप्टर है। प्रत्येक चैप्टर में एक-एक अंतकृत केवली (सिद्धात्मा) का वर्णन है। पहले वर्ग के 10 चैप्टर में से प्रथम चैप्टर गौतमकुमार का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह गौतमकुमार के मन में वैराग्य भाव जागृत होता है ओर वह संयम जीवन स्वीकार कर लेते है।
वह 12 वर्ष दीक्षा पर्याय की पालना करने के बाद एक माह संलेखना संथारे के साथ शत्रुंजय पर्वत पर उनकी आत्मा सिद्ध बुद्ध मुक्त को प्राप्त होती है। इसी प्रकार आगे बाकी के 9 कुमारों के भी वर्णन आते है जो गौतमकुमार की तरह दीक्षित होकर तपस्या करते है ओर सारे कर्मो को खत्म कर सिद्ध बुद्ध मुक्त होते है। दोपहर में 2.30 से 4 बजे तक सिद्ध आराधना प्रेरणा कुशल भवान्त मुनिजी म.सा. ने कराई।
पर्युषण का आगाज दया तप आराधना के साथ
पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पहले ही दिन तप त्याग का दौर शुरू हो गया। कई श्रावक-श्राविकाओं ने दया व्रत का प्रत्याख्यान लिया। दया व्रत करने वालों ने न्यूनतम सात ओर अधिकतम 11 सामायिक की। उपवास, आयम्बिल व एकासन के प्रत्याख्यान भी लिए गए। मुनिश्री ने तपस्वियों के लिए मंगलभावनाएं व्यक्त की।
निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627