पर्युषण सार्वभौम आध्यात्मिक पर्व है – मुनि सुधाकर

पर्युषण सार्वभौम आध्यात्मिक पर्व है – मुनि सुधाकर

रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 2 सितंबर।

पर्युषण पर्व सारे जैन समाज का प्रमुख आध्यात्मिक पर्व है। इस पर्व का संदेश हर समाज के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। यह एक सार्वभौम पर्व है। जैन धर्म व्यक्ति प्रधान नहीं गुण प्रधान है। जैन धर्म के सारे कार्यक्रमों में अध्यात्मिक और नौल्क गुणों की साधना का प्रमुख लक्ष्य है। पर्युषण पर्व के साथ किसी तीर्थकर की जन्मचा, निर्वाण तिथि का सम्बन्ध नहीं है। परि और उषण मिलकर पर्युषण शब्द का निर्माण हुआ है।

जिसका भावार्थ है- आत्मा के अन्दिर में निष्ठा पूर्वक निवास करना प्राचीन आगम साहित्य में पर्युषण का उल्लेख हुआ है। भगवान महावीर के समय में इसका स्वरूप क्या था यह अध्ययन और अनुसंधान का विषय है। पर्युषण के साथ कई तरह की घटनाएं प्रचलित है। पर सबका लक्ष्य विकारों, कषायों तथा भौतिक सुखों और पदार्थों की पुखशता को मिटाना है। इसके साथ ही जीवन के हर बैच में मर्यादा और अनुशासन की प्रतिष्ठा करना है।

उक्त विचार रायपुर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत जैनों के महापर्व “पर्युषण महापर्व” के विशेष अवसर पर आज दिनांक 02/09/2024 को आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी ने कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि पर्युषण पर्व का जितना आध्यत्मिक महत्व है, उतना ही सामाजिक जीवन के लिए भी महत्त्व है।

परिवार और समाज में जो भी वैर विरोध की गांठ लग जाती है। पर्युषण के अवसर पर उसे खोलना जरूरी है। यदि उसे नहीं खोला जाता है तो वह पर्युषण पर्व की सही साधना नहीं करता । चाहे बाहर के अनुष्ठान कितने ही करें परन्तु पर्युषण की समाप्ति पर सबको अपनी भूलों के लिए क्षमायाचना करना जरूरी है।
मुनिश्री नरेश कुमार जी ने गीतिका संगान किया।

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