साधना से जीवन का सुधार संभव – मुनिश्री सुधाकर
रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 2 सितंबर ।
पर्युषण का समय जीवन के शोधन और परिवर्तन का समय है। इस पर्व पर दूसरों की ओर नहीं झांककर अपनी और देखना चाहिये पर्युषण में उपवास और तपस्याएं होती है। पर केवल निराहार रहना ही तपस्या नहीं है , उसके साथ अपने शुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप के निकट निवास करना चाहिये । उप और वास मिल कर उपवास शब्द का निर्माण हुआ है, जिसका यही तात्पर्य है। कभी कभी तपस्या में क्रोध और आवेश की वृद्धि हो जाती है। यह उचित नहीं है।
उक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर जी ने रायपुर स्थित श्री लाल गंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में गतिमान चातुर्मासिक प्रवास अंतर्गत आज दिनांक 01/09/2024 को संयोग वश उपस्थित विषय 86 वर्षीय श्रीमती शांति देवी बैद के उनसे ग्रहण किए अनशन व्रत अर्थात संथारा प्रत्याखान के विषय में कहें जिसे मुनिश्री ने उन्हें आचार्य श्री महाश्रमण जी की अनापत्ति के पश्चात कराया। विशाल जनमेदनी के मध्य उनके पुत्र राजकुमार जी बैद एवं परिवारजनों की अनुमति व संघीय संस्थाओं के सम् उपस्थित पदाधिकारियों की साक्षी से मुनिश्री सुधाकर जी द्वारा णमोत्थुणं एवं गुरु वंदन करते हुए शांति देवी जी बैद को पच्चखान कराया गया।
मुनिश्री ने कहा अनशन व्रत के पथ पर आगे बढ़ना सचमुच सच्ची वीरता का परिचय है। एक आत्मयोद्धा ही इस पथ पर आगे बढ़ सकता है। शांति देवी बैद 31 वर्षों से निरंतर वर्षीतप करना अपने आपमें अमित आत्मबल का परिचय है। गुरुदेव की अनुकम्पा से वें अपना इच्छित लक्ष्य प्राप्त करें ऐसी कामना करता हूं। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, रायपुर अध्यक्ष श्री गौतम गोलछा ने आचार्य प्रवर के संदेश का वाचन किया। सम्पूर्ण समाज ने संथारा साधिका के प्रति मंगल भावना व्यक्त की।