(भीलवाड़ा राजस्थान) सच्चे मन से मांगे क्षमा तो मिट जाएगा सब वैर विरोध- कंचनकंवरजी मसा… क्षमाभाव रखते हुए धर्म वहीं कर सकता है जिसका ह्दय निर्मल व पावन हो -सुलोचनाजी मसा

(भीलवाड़ा राजस्थान) सच्चे मन से मांगे क्षमा तो मिट जाएगा सब वैर विरोध- कंचनकंवरजी मसा… क्षमाभाव रखते हुए धर्म वहीं कर सकता है जिसका ह्दय निर्मल व पावन हो -सुलोचनाजी मसा

भीलवाड़ा(अमर छत्तीसगढ), 8 सितम्बर। संवत्सरी महापर्व प्रतीक है क्षमा के महत्व का। क्षमा वीरों का आभूषण है, क्षमा मांगना भी है ओर जो हमसे क्षमा मांगे उसे भी सच्चे मन से क्षमा कर सभी तरह के वैर विरोध व द्धेष भाव की समाप्ति करनी है। संवत्सरी पर्व हमे जीवन में क्षमा का महत्व प्रदर्शित करता है। क्षमा देने ओर मांगने से बड़े से बड़े संघर्ष की समाप्ति हो सकती है। जीवन में जो क्षमावान होता है उसकी सदा जयकार होती है।

ये विचार श्रमण संघ के प्रथम युवाचार्य पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा.‘मधुकर’ के प्रधान सुशिष्य उप प्रवर्तक पूज्य विनयमुनिजी म.सा.‘भीम’ की आज्ञानुवर्तिनी शासन प्रभाविका पूज्य महासाध्वी कंचनकुंवरजी म.सा. ने महावीर भवन बापूनगर श्रीसंघ के तत्वावधान में आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के अंतिम दिन रविवार को संवत्सरी महापर्व की आराधना करते हुए छलके सरोवर क्षमा का विषय पर प्रवचन में व्यक्त किए।

संवत्सरी की आराधना के लिए महावीर भवन में बापूनगर ही नहीं भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं उमड़े तो सभागार छोटा प्रतीत हुआ। धर्मसभा में प्रखर वक्ता साध्वी डॉ.सुलोचनाश्री म.सा. ने कहा कि संवत्सरी महापर्व पाप से दूर रहने का संदेश देने वाला पर्व है। धर्म वहीं कर सकता है जिसका ह्दय निर्मल व पावन हो ओर मन में क्षमा व मैत्री के भाव रखता हो।

आज का दिन क्षमा मांगने ओर करने का दिन है। मन के मैल मिटाने का अवसर क्षमा पर्व प्रदान करता है। टूट हुए दिलों को जोड़ते हुए समता भाव रखने का संदेश संवत्सरी पर्व देता है। खामेमी सव्वे जीवा का संदेश देने वाले इस पर्व पर हमे सबसे पहले उनसे क्षमा मांगनी है जिनसे किसी भी कारण से हमारी बोलचाल बंद है।

उन्होंने अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचन पूर्ण करते हुए कहा कि इस विवेचना के दौरान जिनाज्ञा के विरूद्ध कुछ भी कहने में आया हो तो मिच्छामी दुक्कड़म करते है। उन्होंने कहा कि जिन्होेंने भी आगम का श्रवण किया वह आने वाले पर्युषण से पूर्व एक वर्ष में 120 दिन किसी ने किसी तरह का त्याग अवश्य करें।

मधुर व्याख्यानी डॉ. सुलक्षणाश्री म.सा. ने कहा कि संवत्सरी पर्व मना क्षमायाचना करना तभी सार्थक होगा जब हम अपने मित्रों से नहीं जिनसे वैर-विरोध है उनसे क्षमायाचना करेंगे। हम पापी से नहीं पाप से नफरत करनी है। जो हमारे विरोधी है उनसे पहले क्षमायाचना करनी है ताकि वैर अनुबंध समाप्त होकर सभी के प्रति मैत्री भाव कायम हो सके। सच्चे मन से जो संवत्सरी की आराधना कर लेता है उसके जीवन का कल्याण हो जाता है।

धर्मसभा में धार्मिक पाठशाला के बच्चों को पुरस्कार प्रदान किए गए। आठ दिन चले अखण्ड नवकार महामंत्र जाप के रजत कलश की बोली लादूलालजी राजकुमारजी बोहरा परिवार के छूटी। धर्मसभा में बच्चों को संस्कारवान बनाने की प्रेरणा देने वाली नाटिका की भी प्रस्तुति दी गई। इसमें संतोष पामेचा, ममता नाहर, पिंकी कोठारी आदि ने प्रस्तुति दी। धर्मसभा संचालन श्रीसंघ के मंत्री अनिल विश्लोत ने किया।

संवत्सरी पर प्रवाहित हुई तप त्याग की धारा

पर्युषण में तप त्याग की धारा निरन्तर प्रवाहित रही। संवसत्री महापर्व पर धर्मसभा में तपस्वी हर्षित पोखरना ने 9, निखिल चौधरी ने 8, कृतिका डागा व हेमलता सियाल ने 5-5 उपवास के प्रत्याख्यान लिए तो अनुमोदना के जयकारे गूंज उठे। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला, बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन आदि तपस्याओं के भी प्रत्याख्यान लिए।

साध्वी मण्डल ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावना व्यक्त की। श्रीसंघ के अध्यक्ष कमलेश मुणोत, संरक्षक लादूलाल बोहरा आदि पदाधिकारियों द्वारा तपस्वियों का सम्मान किया गया। दोपहर में पूज्य सुलोचनाजी म.सा. के मुखारबिंद से आलोचना पाठ हुआ। संवत्सरी प्रतिक्रमण शाम को सूर्यास्त के बाद महावीर भवन में किया गया।

प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627

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