रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 10 सितंबर। जैन समाज के दस दिनों के तप साधना से ओतप्रोत दशलक्षण महापर्व में सुबह से ही पूजा, आराधना, विधान आदि की धार्मिक क्रियाएं शहर के तीनों जैन मंदिरों में हो रही हैं। साथ ही केसरिया लिबास में स्त्री और पुरुष वर्ग बड़े ही मनमोहक अंदाज में पूजन अभिषेक करते नजर आ रहे हैं।
दशलक्षण महापर्व के उत्तम मार्दव धर्म के दिन क्रांतिनगर मंदिर में प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य राकेश जैन, भूपेंद्र चंदेरिया, सत्येंद्र जैन, कैलाश जैन, अरुण जैन एवं प्रियंक जैन और इनके परिवार जनों को प्राप्त हुआ। सरकण्डा मंदिर जी में यह सौभाग्य चौधरी राजेंद्र जैन, राहुल जैन, प्रदीप जैन, के.के.जैन, शरद जैन, सुनील जैन, चंद्रभान जैन एवं उनके परिवार को मिला। मंगला स्थित सन्मति विहार जिनालय में यह सौभाग्य प्रशांत चंदेरिया, प्रकाश चंद जैन एवं उनके परिवार को प्राप्त हुआ।
दशलक्षण पर्व का दूसरा दिन सोमवार को उत्तम मार्दव धर्म के रूप में मनाया गया। मार्दव अर्थात मान (घमंड) तथा दीनता-हीनता का अभाव, और वह नाश जब आत्मा के ज्ञान/श्रद्धान सहित होता है, तब ‘उत्तम मार्दव धर्म’ कहा जाता है। उत्तम मार्दव धर्म पर प्रकाश डालते हुए सांगानेर से पधारे पंडित जयदीप शास्त्री जी ने अहम विसर्जन का उपदेश दिया।
प्रवचन में पंडित जी ने कहा कि जहां श्रेष्ठ मृदुता है, वहीं मार्दव धर्म है। अहंकार जीवन को कमजोर बनाता है, अतः इसका त्याग करना चाहिए। कोमलता अर्थात मार्दव अमृत के समान है और उसको धारण करने वाला प्राणी निरंतर सुख ही पाता है। कई उदाहरणों से उनने समझाया कि ना अकूत संपत्ति तुम्हारे साथ जानी है, ना सुंदर शरीर और ना ही वैभव।
ये सब नश्वर है, इसलिए घमंड किस बात का, मान किस चीज का। पंडित जी ने बताया कि हमें केवल इतना समझना है कि धर्म हमारी आत्मा का ही स्वभाव है। उन्होंने कहा कि अहंकार आत्म विकास के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक है। अहम के विसर्जन के बाद ही आत्म विकास संभव है। अहंकार के संपूर्ण विसर्जन के बाद ही प्रभुता के दर्शन हो सकते हैं। मार्दव धर्म आत्मा को बलवान बनाता है और मजबूत करता है।
रात्रिकालीन आयोजित धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में उत्तम मार्दव धर्म के दिन सन्मति विहार पाठशाला के बच्चों एवं त्रिशला महिला मंडल की महिलाओं द्वारा अधर्म पर धर्म की जीत नुक्कड़ नाटिक प्रस्तुत की गई। नाटिका में बच्चों द्वारा आधुनिक परिवेश में पिज़्ज़ा, बर्गर आदि फास्ट फूड न खाने की सलाह देते हुए जैन धर्म के कुलाचारों के पालन का भी उल्लेख किया गया ।
बच्चों और उनकी नानी के द्वारा धर्म प्रभावना का संदेश दिया गया। त्रिशला महिला मंडल सन्मति विहार की महिलाओं द्वारा नुक्कड़ नाटिका के माध्यम से सोमा सती की कहानी प्रस्तुत की गई, जिसमें सोमा की सास के द्वारा दिया हुआ विषधर भी हार में बदल जाता है और यह चमत्कार केवल णमोकार मंत्र की महिमा से ही संभव होता है ।
नाटिका में पाठशाला के रम्यक, विदित, निपुण, वासु, मयंक, प्रभात, वीर, ओजस्वी,स्वस्ति, अव्यान, सौम्या के साथ महिला मंडल से श्रीमती अंगूरी जैन (नानी), मालती, मीनल, देविष्ठा, डॉ कमोद, सोना, रोशनी, प्रतिमा, शिवानी, ऋषिका, नम्रता और पिंकी का अभिनय बड़ा ही सराहनीय और प्रशंसनीय रहा। समस्त जैन समाज के द्वारा इस प्रस्तुति की भूरि भूरि प्रशंसा की गई । नाटिका का लेखन एवं निर्देशन डॉक्टर कमोद जैन व सोना जैन के द्वारा किया गया । संगीत संयोजन में समीर जैन का विशेष सहयोग रहा ।