गलती हो जाए तो उसे सुधारने का प्रयास करे,कर्म सीधे सजा नहीं देते…. दुनिया की तारीफों में कभी अटकना मत, कब प्रशंसक निंदक बन जाए कोई भरोसा नहीं- समकितमुनिजी

गलती हो जाए तो उसे सुधारने का प्रयास करे,कर्म सीधे सजा नहीं देते…. दुनिया की तारीफों में कभी अटकना मत, कब प्रशंसक निंदक बन जाए कोई भरोसा नहीं- समकितमुनिजी

हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ) , 23 सितम्बर। जीवन में कर्मो का संक्रमण (परिवर्तन) चलता रहता है। असाता वेदनीय कर्म को साताकारी कर्म में बदला जा सकता है। हम पुण्य प्रकृति बंध करने के बाद उसे संभाल नहीं पाए तो भोगने में असमर्थ हो जाते है। ये दुनिया है कब किसको सिर पर बिठाएगी ओर कब किसको रौंद कर आगे बढ़ जाएगी कोई भरोसा नहीं है। इसलिए दुनिया की तारीफों में कभी अटकना कम। आज जो हमारी प्रशंसा ओर तारीफ कर रहे है हो सकता कल निंदा करने में वह सबसे आगे रहे। यहीं दुनिया का रिवाज है इसे समझ जाना।

ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में सोमवार को सात दिवसीय विशेष प्रवचनमाला एकाउन्ट ऑफ कर्म का पहले दिन व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि गलती होने पर कर्म कभी सीधे सजा नहीं देते बल्कि भूल सुधारने का अवसर देते है। कर्मो का भुगतान किए बिना वह छोड़ने वाले नहीं होते है। कर्म अच्छे ओर बुरे दोनों तरह के होते है। जो कर्म हमने किए उन्हें सुधारा भी जा सकता है ओर बिगाड़ा भी जा सकता है। बिगड़े हुए कर्म को ओर ज्यादा बिगाड़ने की बजाय सुधारने का प्रयास करना चाहिए। हमे पाप कर्म को मजे लेकर बताते है तो वह अधिक प्रगाढ़ व तीव्र होता है।

मुनिश्री ने कहा कि आगम हमारे जीवन को उल्लासमय बनाते है जिस पर विश्वास होना ही चाहिए। भगवान के बताए मार्ग पर चलने की बजाय फुलस्पीड से दौड़ना चाहिए क्योंकि इस मार्ग पर गिरने का खतरा नहीं होता है। प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘डरते रहना जीव कर्म गति है न्यारी’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में बेंगलौर से सुश्राविका पदमाजी कोठारी के नेतृत्व में श्राविका मण्डल मौजूद था। बेंगलौर,भीलवाड़ा, औरगांबाद, बालाघाट आदि क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे।

व्रति श्रावक दीक्षा समारोह 29 सितम्बर को

चातुर्मासिक आयोजनों के तहत 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत की दीक्षा ग्रहण करेंगे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी। भगवान महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र की दीपावली तक चलने वाली आराधना 10 अक्टूबर से शुरू होगी।

निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627

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