भक्ति की परिपक्वता से प्रभु मिलन संभव होगा -आचार्य अर्पित

भक्ति की परिपक्वता से प्रभु मिलन संभव होगा -आचार्य अर्पित

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 2 मार्च। श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में राजा परीक्षित ने सुखदेव जी से दो प्रश्न किए । पहला मनुष्य को सदा क्या करना चाहिए , दूसरा मृत्यु नजदीक हो उसे क्या करना चाहिए ।

सुखदेव जी ने उत्तर दिया , सदा सर्वदा एकाग्र मन से परमब्रह्म का चिंतन करना चाहिए , साधन लीला है विचार की पराकाष्ठा तथा भजन की विधि बताई । मन की शुद्धि , एकाग्रता , सूक्ष्म शरीर तथा चित्त की शुद्धि में वक्ता व श्रोता का चित्त शुद्ध होनी चाहिए । मन की एकाग्रता चित् की शुद्धि से ही परम ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ।

उक्त उद्गार आज श्री अग्रसेन भवन में अग्रवाल सभा , अग्रवाल महिला मंडल एवं अग्रवाल नवयुवक मंडल के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस की कथा का रसपान कराते हुए अंचल के सुप्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित अर्पित भाई शर्मा ने व्यक्त किए । 
           पंडित अर्पित भाई ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मनुष्य अपने कल्याण के लिए मन निर्मल कर कथा श्रवण करें,  व्यास जी कहते है कि कथा प्रारंभ होने के पूर्व मंगलाचरण होता है , मंगलाचरण के पूर्व कथा में पहुंचना वैष्णव धर्म है ।

कथा में प्रेम बढ़ जाता है तब कथा परमब्रह्म परमात्मा बना देती है । प्रभु से एक ही नाता रह जाता है वह है प्रेम का , कृष्ण से प्रेम का । गुरु द्रोण ने शिष्यों को सत्य का पाठ पढ़ाया । सत्य का आचरण जीवन में लाना कठिन है। अत्यधिक बंधन एवं अत्यधिक स्वतंत्रता कष्टकारी होती है ।  जब अती हो तो सीमा में बांध देना उचित होता है अन्यथा पतन का कारण बनता है ।  ” सर्वत्र अति वर्जनीय ” है । श्रीमद् भागवत कथा कहती है कि सत्य का आचरण बड़ा कठिन है और सबके लिए संभव नहीं है । फिर भी जितना संभव हो सत्य का पालन करना चाहिए । 
              व्यासपीठ पर विराजित आचार्य अर्पित शर्मा ने कहा कि कृष्ण से नाता जोड़े फिर देखो वह कैसे स्वयं रक्षा करते हैं , जीवन में कभी कोई रुकावट नहीं आने देते । नरसी मेहता के लिए स्वयं भगवान कृष्ण 52 बार आए । श्री शर्मा ने अनेक प्रसंगों का वर्णन करते हुए नरसी की प्रभु भक्ति की विवेचना की । उन्होंने कहा कि प्रभु से प्रेम करेंगे तो विश्वास का जागरण होगा , फिर विश्वास व प्रेम से ही भक्ति जागेगी एवं परमेश्वर का साक्षात्कार हो जाएगा । 

   पंडित शर्मा ने कहा कि गुरु की पद रज कण काजल है जो आंखों में लगाकर दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर सकते हैं , गुरु अंजन लगाने मात्र से दृष्टि दोष मिट जाता है । कथा मातृ स्वरूप है , माता करुणा भक्ति के रस से स्नान कराती है । प्रभु भक्ति के पराधीन है। प्रभु पतंग के स्वरूप है व्यक्ति के हाथ की डोरी भक्ति है । भक्ति की परिपक्वता से प्रभु का मिलन संभव है । 

नरसी जी के केदार राग की चर्चा करते हुए आचार्य श्री ने अपनी सुमधुर वाणी से केदार राग गाकर सुनाया तथा उसकी महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला । उन्होंने कहा ठाकुर जी सर्व समर्थ है वह कुछ भी कर सकते हैं । भक्त के लिए भगवान अनेक रूप धारण करते हैं । परमब्रह्म परमेश्वर गोपियों के लिए सर्वत्र निछावर कर देते हैं ।

प्रभु से नाता जोड़ने वाली कथा श्रीमद् भागवत महापुराण है ।  भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी को चतुर श्लोकी भागवत सुनाई । ज्ञान दिया । पानी में बिजली है इसे प्रक्रिया द्वारा प्रकट करना विज्ञान है।  हममें परमात्मा है उसे प्रकट करना ज्ञान है ।

जिस दिन हमें ज्ञान हो जाएगा कि हम सब में परमब्रह्मा विद्यमान है उस दिन राग , द्वेष , ईर्ष्या दूर हो जाएगी और प्रेम ,अपनत्व ,आनंद की प्राप्ति होगी फिर परमेश्वर के प्राप्त होने में देर नहीं लगेगी । ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है । प्रभु लोक कल्याण के लिए अनेक लीलाएं करते है।

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