राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 6 मार्च। श्रीमदभागवत महापुराण अधिकार से आश्रय तक ले जाने वाली कथा है। यह परमब्रम्ह परमेश्वर से प्रेम कराती है। नारद भक्ति सूत्र में दो प्रश्न है – प्रेम किसे कहते हैं, प्रेमी का स्वरूप क्या है। प्रेमी के लिये जो कार्य किये जाते है वह प्रेम है जो कृष्ण प्रेम करा दे, यह ऐसी सहिंता हैं यह भक्ति सहिंता है। श्रीमद से तात्पर्य है कि श्री से युक्त अथार्त भक्ति से युक्त अथार्त राधारानी से युक्त से है। सत चेतना युक्त है। चित्त अथार्त चेतना से युक्त आनंद स्वरूप जीव व आत्मा के बीच परमानंद है।
ब्रज में गोपियों से वियोग हुआ तब भी आनंद हैं कंस का वध किया तब भी आनंद में है, श्रीरामवतार व कृष्णावतार एक पुरूष और पुरूषोत्तम का अंतर स्वरूप है। जो बीत गया जो बीत गया उसके लिये शोक क्यों करना, वर्तमान काल में वर्तमान को सुधारना प्रभु भक्ति में लगाने से होगा। भुतकाल की बातों से चिन्ता होती है।
श्रीमदभागवत महापुराण शोक, मोह एवं भय का हरण करने वाला ग्रन्थ है। शोक भुतकाल की वस्तु से होता है, मोह वर्तमान से होता है तथा भय भविष्य से होता है। शोक और मोह वर्तमान की वस्तु से है। ये तीनों का हरण भागवत कथा कराती है। इसे दिव्य भागवत संहिता कहा गया है।
उक्त उदगार श्री अग्रसेन भवन में आयोजित श्रीमदभागवत महापुराण सप्ताह के सप्तम् दिवस की कथा का वर्णन करते हुये व्यासपीठ पर विराजित पंडित अर्पित भाई शर्मा ने व्यक्त किये।
पूज्य शर्मा ने कहा कि लोक कल्याण के लिये व्यास जी ने सत्रह पुराणों की रचना की। नारद जी से प्राप्त चार श्लोंको को व्यास जी ने विस्तारित। किया श्रीमदभागवत पुराणों का तिलक है।
राजा परिक्षित का भागवत श्रवण करने से मोक्ष हो गया तब ब्रम्हा जी को यह संशय हुआ की एक ब्रम्हण के श्राप प्राप्त व्यक्ति की सदगति कैसे हो गई तब ब्रम्हा जी ने अपनी बुद्धि से सारे ग्रन्थों का अध्ययन किया और उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीमदभागवत मुक्ति दान कि कथा है।
श्री शर्मा ने कहा कि अग्नि और ब्राम्हण का जन्म भगवान के मुख से हुआ हे। मिटटी का घडा मिटटी में ही मिल जाता है। उसी प्रकार यह नश्वर शरीर मिटटी में ही मिल जायेगा। कृष्ण लीला के अनेक चरित्रों का सविस्तार वर्णन करते हुये माखन चोरी की लीला बताई। साढे पांच वर्ष की आयु में मैय्या यशोदा से विवाह के प्रस्ताव का वर्णन किया।

कथा प्रसंग को आगे बढाते हुये कहा कि काया, शरीर को कष्ट देना तप है। कामना पुर्ण करने प्रिय वस्तु का त्याग करना तप है। हमारे पूर्वजों ने अनेक प्रणालीयां बताई है जिसे आचरण में लाना तप के समान है। महादेव के उपर दूध और जल के अभिषेक की महत्ता पर प्रकाश डाला। श्री शर्मा ने कहा कि शिवालय में जाकर एक बार राम नाम लेने मात्र से शिव जी प्रशंन्न हो जाते है। श्रीराम शिवजी के ईष्ट है।
प्रदुम्यन के जन्म का वृतान्त बताया, सत्यभामा एवं जामवती विवाह प्रसंग की चर्चा की। सुदामा चरित्र की व्याख्या करते हुये कहा कि ‘‘मित्रता हो तो कृष्ण सुदामा की तरह हो‘‘ सुदामा अत्यंत गरीब होते हुये भी धन की लालसा से भगवान कृष्ण के पास कभी नही गये ना ही उन्होने अपनी पत्नी सुशीला से कृष्ण से मित्रता का जिक्र किया।
सुदामा के पास संसारीक धन नही था वे ब्रम्ह ज्ञानी थे वे इंन्द्रीयों से विरक्त व वाणी से जितेन्द्रीय थें। पंडित अर्पित भाई ने कहा कि भगवान कृष्ण से अपनी दिव्य दृष्टि से सुदामा की दरिद्रता को देखकर ब्राम्हण का रूप धारण करके सुदामा के घर जाकर उसकी पत्नी सुशीला से भिक्षा मांगी।
सुशीला ने कहा मेरे घर निर्धनता का जन्म हुआ है अतः मेरे घर में अशुद्धि है मै आपको भिक्षा नही दे सकती। तब भगवान कृष्ण ने सुशीला को सुदामा के साथ द्वारिकाधीश कृष्ण के साथ मित्रता की बात बताई।
वर्तमान समय में छोटी पेास्ट का व्यक्ति भी अपनी मित्रता को भुनाने से नही चुकता, किन्तु सुदामा ने मित्रता को कभी नही भुनाया। भगवान कृष्ण के 16,108 रानियों के विवाह प्रसंग की व्याख्या करते हुये अष्ट विवाह का विशेष वर्णन किया तथा नरकासूर द्वारा 16,100 रानियों को बंदी बनाकर रखने के प्रसंग की चर्चा की।

श्री शर्मा ने श्रमदभागवत कथा के संन्दर्भ में कहा की इसके सुनने से कलयुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते है। इसके श्रवण से आध्यामिक विकास और भगवान के प्रति गहरी आस्था बढती है। इसका श्रवण शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हे। सप्त दिवस की कथा श्रवण के पश्चात राजा परिक्षित का भय समाप्त हो गया और वे मोक्ष को प्राप्त हुये।
सप्तम् दिवस की कथा श्रवण करने हेतु छत्तीसगढ प्रांतीय अग्रवाल संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. अशोक अग्रवाल, राधेश्याम जी बंका, महिला संगठन की प्रांतीय अध्यक्ष श्रीमती गंगा अग्रवाल एवं अनिता अशोक अग्रवाल रायपुर से पधारे तथा पुलिस अधीक्षक मोहित गर्ग की माताजी सीमा गर्ग विशेष रूप से उपस्थित हुई एवं कथा श्रवण कर व्यासपीठ से आशीर्वाद प्राप्त किया।