राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 4अप्रैल।”प्रत्येक नारी सम्माननीय होती है और नारी का मूल स्वरूप ही मां का होता है। नारी का रस श्रृंगार में होता है श्रृंगार की बात वह ध्यान से सुनती है। इसी कारण उसका हृदय कोमल होता है।
उक्त उद्गार आज गायत्री शक्तिपीठ में महेश्वरी समाज द्वारा आयोजित श्रीमद् देवी भागवत के पांचवें दिन व्यास पीठ से शास्त्री श्री ईश्वर चंद ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मां जगदंबा का कौशिकी अवतार जीव पर कृपा करने के लिए हुआ था, जीव पर दया करने के लिए हुआ था।
उन्होंने आज माता के हाथों चंड- मुंड,रक्त बीज एवं शुंभ- निशुंभ के संहार की कथा सुनायी। उन्होंने नारी शक्ति के बारे में कहा कि नारी प्रेम की प्रतिमूर्ति है, नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। नारी का मूल स्वरूप मां का है। वह अलग-अलग रूपों में अपने कर्तव्य का पालन करती है। पति के साथ उसका संबंध माधुर्यता का होता है तो बच्चों के साथ उसका संबंध वात्सल्य का होता है।
कहीं वह मां होती है तो कहीं पत्नी, कहीं बेटी , कहीं बहु और कहीं सास। हर रूप में वह अपने कर्तव्यों का बखूबी पालन करती है इसलिए नारी का स्थान काफी ऊंचा है। मां जगदंबा ने चंड – मुंड का संहार किया इसलिए वह चामुंडा कहलाई। मां कल्याणकारी है ।अगर काल हमारे विपरीत होता है तो काल के आगे हमारी नहीं चलती, काल के अधीन ही सब होते हैं, मां का आशीर्वाद यदि रहा तो काल भी अपना रुख बदल देता है।
कथा से पूर्व आज डोंगरगढ़ से पधारे हनी गुप्ता एवं मां बमलेश्वरी ट्रस्ट की टीम ने शास्त्री जी का श्रीफल एवं प्रसाद देकर सम्मान किया तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। इसी तरह दुर्ग से चतुर्भुज राठी एवं उनके साथियों ने भी शास्त्री जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।
आयोजन समिति माहेश्वरी समाज के अध्यक्ष पवन डागा ने बताया कि कल 4 अप्रैल को अन्नकूट एवं 56 भोग का आयोजन किया गया है। उन्होंने धर्म प्रेमी भाइयों एवं बहनों तथा माताओं से अधिक से अधिक संख्या में इस अवसर पर उपस्थित होकर कथा श्रवण करने तथा पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की है।