छत्तीसगढ़ में जैन धर्म अत्यंत समृद्ध व प्राचीन रहा है……..बस्तर से लेकर सरगुजा तक हजारों वर्षों पुराने जैन धर्म का जीवंत इतिहास

छत्तीसगढ़ में जैन धर्म अत्यंत समृद्ध व प्राचीन रहा है……..बस्तर से लेकर सरगुजा तक हजारों वर्षों पुराने जैन धर्म का जीवंत इतिहास

छत्तीसगढ़ में प्राचीनकाल से ही शैव, वैष्ण, शाक्य, बौद्ध एवं जैन धर्म की परंपरा रही है। छत्तीसगढ़ में जैन तीर्थंकरों की हजारों वर्षों पुरानी सकड़ों प्रतिमाएं आज भी खुदाई के दौरान मिलती है। छत्तीसगढ़ जैन युवा श्रीसंघ के प्रदेश अध्यक्ष अधि. प्रवीण जैन ने विभिन्न इतिहास की पुस्तकों के आधार पर स्थल एवं तथ्यों को पूरी प्रामाणिकता के साथ जानकारी देते हुए बतलाया है कि  छत्तीसगढ़ में सभी धर्मों को समान रूप से पोषित किया गया। छत्तीसगढ़ में सर्वधर्म समभाव की परंपरा यहां प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। छत्तीसगढ़ का पूर्व में प्रचलित नाम कौशल राज्य है, जहां जैन इतिहास लगभग ढाई हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। कुछ समय पूर्व ही राजिम में पुरातत्व खुदाई में भगवान पार्श्वनाथ की 1600 साल पुरानी प्रतिमा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सदियों से छत्तीसगढ़ में जैन धर्मावलंबी निवासरत है। दरअसल आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ के जंगल ऋषि – मुनियों की तपस्या के लिए उपयुक्त क्षेत्र रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इसलिए श्रृंगी – ऋषि से लेकर वाल्मिकी आश्रम के प्रमाण मिलते है ।छत्तीसगढ़ में शैव , वैष्णव, बौद्ध और जैन धर्म के अनेक प्रमाण साक्ष्य हैं। 
जांजगीर चांपा जिले के अंतर्गत चांपा से 50km दूरी पर दमऊदरहा नामक स्थान गूंजी या ऋषभ तीर्थ के नाम से जाना जाता है, यहां एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जिस पर श्री भगवान के प्रतीक चिन्हों के साथ गायों के दान देने की बात प्राकृत भाषा ब्राम्ही लिपिबद्ध है, इस शिलालेख पर सातवाहन कालीन शासक कुमार वारदत्त के 5वे संवत में प्रवेश का उल्लेख है। इसके समीप एक राम लक्ष्मण मंदिर भी स्थापित है जिसमें भगवान ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है ।

बिलासपुर से 124km दूरी पर अडमार नामक स्थान है, जहां अष्ट भूजी माता के कल्चुरी शासकों का निर्माण किया मंदिर है जिसमें भगवान पार्श्वनाथ की 2 फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित है।
अंबिकापुर से 40km की दूरी पर उदयपुर ग्राम में 8km क्षेत्रफल में 17 टीले स्थित है जिसमें प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेष तथा मूर्तियां 5 km के क्षेत्र में फैली हुई है, यहां एक शिलालेख भी है, जिसमें 18 वाक्य लिखे हैं। इन पुरातात्विक भग्नावेशों में वैष्णव, शैव जैन संप्रदाय के 30 बड़े मंदिर है। यहां 6वी शताब्दी की 104 सेमी. ऊंची अत्यंत दुर्लभ एवं प्राचीन ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा स्थापित है।
रायपुर से 35km की दूरी पर स्थित आरंग जैन धर्मावलंबियों का एक कलात्मक एवं सुन्दर मंदिर स्थित है, जिसे भांड देवल के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेशों के शासनकाल में हुआ जो कि 12 शताब्दी ईस्वी का माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में जैन तीर्थंकरों नेमीनाथ, अजीतनाथ एवं श्रेयांशनाथ जी की 6 फिट ऊंची काले ग्रेनाइट पत्थरों की प्रतिमाएं स्थापित है। इसके अतिरिक्त अन्य मंदिर जिसे बाघ देवल एवं शिव मंदिर में जैन साधकों की मूर्तियां उत्क्रीन है साथ ही एक अन्य मंदिर जिसे महामाया मंदिर के नाम से जाना जाता है के प्रवेश द्वार पर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां स्थापित है।
बिलासपुर  से 100km दूरी पर स्थित पैंड्रारोड से 16km धनपुर नामक ग्राम में जैन धर्म से संबंधित पुरावशेष बड़ी संख्या में पाए गए। यहां ऋषभ तालाब स्थित है जिसके समीप पेड़ के नीचे तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित है। यहां स्थित अनेक मंदिरों में अनेक जैन धर्म से संबंधित प्रतिमाएं रखी है। यहां स्थित भवन तारा तलाब  से 3km की दूरी पर कई मंदिरों के भग्नावेश है जिसमें से 4 मंदिरों के भग्नावेश जैन मंदिरों के हैं। धनपुर से 2 km की दूरी पर एक विशाल चट्टान पर कार्योत्सर्ग मुद्रा में जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जी की विशाल प्रतिमा उत्कीर्ण है जिसकी ऊंचाई 25 फिट है, छत्तीसगढ़ में यह एकमात्र इतनी बड़ी प्रतिमा है, जो  शैलोतकीर्णीत जैन मूर्तिकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
बैकुंठपुर से 32km घनघोर जंगलों में जोगीमठ ग्राम में जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की 2 प्रतिमाएं 8वी की स्थापित है यहां प्राचीन ईंटों से निर्मित एक जैन मंदिर का भग्नावेश भी है जहां जैन मूर्तियां स्थित है।
महासमुंद जिसे के सिरपुर में 9वी शताब्दी की नवग्रह धातु की जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जी की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में अनेकों जैन प्रतीक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
बिलासपुर से 30 km ताला नमक ग्राम में देवरानी जेठानी मंदिर से खुदाई के दौरान पांचवी शताब्दी की प्रतिमाओं के साथ जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जी की प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई है। 
बिलासपुर के रतनपुर में मां महामाया मंदिर की स्थली रतनपुर से कल्चुरी कालीन 12वी शताब्दी ईस्वी की भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा प्राप्त हुई है साथ ही मंदिर के अंदर व द्वार पर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं अंकित है।
बिलासपुर से 35 km दूरी पर मल्हार ग्राम में अत्यंत प्राचीन ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा संग्रहित की गई, इसके अतिरिक्त अनेकों जैन प्रतिमाएं एवं अवशेष की प्राप्ति यहां से हुई है। मल्हार के सोहागपुर में ठाकुर यशवर्धन सिंह के निजी संग्रहालय में सैकड़ों की संख्या में जैन प्रतिमाएं संग्रहित हैं।
रायपुर के संग्रहालय में भगवान ऋषभदेव जी की एक अत्यंत प्राचीन प्रतिमा के साथ छत्तीसगढ़ से प्राप्त अनेकों जैन प्रतिमाएं संग्रहित है। 
इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ में जैन धर्म की संबंधित अत्यंत प्राचीन प्रतिमाएं हजारों की संख्या में मिली है जिसमें प्रमुख रूप से नेतनगर, नर्राटोला, कुर्रा, बम्हनी जो रायपुर जिले में स्थित है। कांकेर एवं बस्तर में जिलों में कई स्थानों में प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिसमें जगदलपुर एवं गढ़बोदरा है। बिलासपुर के पंडरिया, पेंड्रा, पदमपुर के साथ राजिम, डोंगरगढ़ , गुंजी , खरौद, पाली , महेशपुर, शिवरीनारायण , दुर्ग , नगपुरा , भोरमदेव , सहित कई स्थान है जहां से भगवान आदिनाथ से लेकर प्रभु , पाश्र्वनाथ , प्रभु महावीर स्वामी , प्रभु अजितनाथ , प्रभु नेमीनाथ , प्रभु श्रेयांशनाथ , श्री चंद्र प्रभु प्रमुख है । स्थानों में भी जैन प्रतिमाएं प्राप्त हुई है। रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन नाट्य शाला में भी जैन धर्म का उल्लेख है । बकेला – देवसरा से प्राप्त प्रतिमा बारहवीं शताब्दी की है जो पंडरिया के जैन मंदिर में स्थापित है । सरगुजा के डीपाडीह की प्रतिमाएं दूसरी और तीसरी शताब्दी की है।
जैन धर्म के तीर्थंकरों को आज भी बैगा आदिवासी केंवट इत्यादि अनेकों जनजाति के लोग विभिन्न नामों से अपनी अपनी रिरिवाज और परंपराओं के आधार पर श्रद्धाभाव से पूजते हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि में जैन धर्म  का इतिहास छत्तीसगढ़ में अत्यंत समृद्ध एवं प्राचीन रहा है, जो हमारे लिए गौरव की बात है। प्रवीण जैन ने कहा है कि जो लोग जैनों को परदेशियां कर रहे हैं उन्हें जैन समाज के इतिहास को जानने की आवश्यकता है।

अधि. प्रवीण जैन (अध्यक्ष)छत्तीसगढ़ जैन युवा श्रीसंघ, 9329484701

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