किसी के लिए सुख नहीं लिख सकते तो रबर बनकर उनके दुख तो मिटा सकते हैं – राष्ट्र संत श्री ललितप्रभ जी

किसी के लिए सुख नहीं लिख सकते तो रबर बनकर उनके दुख तो मिटा सकते हैं – राष्ट्र संत श्री ललितप्रभ जी

सैकड़ों युवाओं ने रोज परोपकार करने का लिया संकल्प

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 27 जून। राष्ट्र संत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि अगर हम पेंसिल बनकर किसी के लिए सुख नहीं लिख सकते तो कम-से-कम रबर बनकर उनके दुख तो मिटा ही सकते हैं। घर में खाना बनाते समय एक मुट्ठी आटा अतिरिक्त भिगोएँ और सुबह पूजा करते समय 10 रुपए दूसरों की मदद के लिए गुल्लक में डालें। एक मुट्ठी आटे की रोटियाँ दुकान जाते समय गाय-कुत्तों को डाल दें और नगद राशि को इकट्ठा होने पर किसी बीमार या अपाहिज की मदद में लगा दें। मात्र नौ महिने में आपके सारे ग्रह-गोचर अनुकूल हो जाएँगे।

संतप्रवर श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा सदर बाजार स्थित जैन बगीचा में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के दूसरे दिन हजारों श्रद्धालुओं को “कैसे कमाएं दुआओं की दौलत” विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रास्ते से गुजरते समय मंदिर आने पर आप प्रार्थना में हाथ जोड़ें और अगर कोई एंबुलेंस गुजऱती नजऱ आए तो उसे देखकर उसके लिए ईश्वर से दुआ अवश्य करें। संभव है आपकी दुआ उसे नया जीवन दे दे। अगर आप किसी मज़दूर से दिनभर मेहनत करवाते हैं तो उसका पसीना सूखे उससे पहले उसे उसका मेहनताना दे दीजिए। किसी के मेहनताने को दबाना हमारे आते हुए भाग्य के कदमों पर दो कील ठोकना है। विद्यालय भी ईश्वर के ही मंदिर हुआ करते हैं, पर विद्यालय बनाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। आप केवल किसी एक गरीब बच्चे की पढ़ाई का खर्चा उठा लीजिए, आपको विद्यालय बनाने जैसा पुण्य मिल जायेगा।
राष्ट्रसंत ने कहा कि दूध का सार मलाई है, पर जीवन का सार दूसरों की भलाई है। हमें रोज छोटा-मोटा ही सही पर एक भलाई का काम जरुर करना चाहिए। बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी जैसे अमीरों ने दुनिया की भलाई के लिए हजारों करोड रुपयों की चैरिटी की है। आप फूल-पांखुरी ही सही, चैरिटी के काम अवश्य करें। दुनिया में कुछ लोग खाकर राजी होते हैं, कुछ लोग खिलाकर। आप प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि प्रभु सदा इतना समर्थ बनाए रखना कि मैं औरों को खिलाकर खुश होने का सौभाग्य प्राप्त करूँ।
इस अवसर पर संत प्रवर ने युवा पीढ़ी को प्रतिदिन माता-पिता को प्रणाम करने और प्रभु की प्रार्थना करने की प्रेरणा दी। प्रवचन से प्रभावित होकर सैकड़ों युवाओं ने मंच पर आकर माता-पिता को यादकर प्रणाम किया और प्रतिदिन प्रणाम करने व परोपकार करने का संकल्प लिया।
डॉ शांतिप्रिय सागर ने भी आज प्रवचन देते हुए कहा कि मानसिक खुशहाली से बढ़कर जीवन की कोई दौलत नहीं होती है। मन की शांति से ही स्वर्ग के रास्ते खुलते हैं। मन में शांति है तो थोड़े से साधन भी सुख दे देते हैं, नहीं तो ढेर सारे साधन इकठ्ठे करने पर भी शांति नहीं मिलती।उन्होंने कहा कि जिसका मन शांत है उसे एक या दो घंटे की नहीं पूरे 24 घंटे की सामायिक का लाभ मिल जाता है क्योंकि शांति में जहाँ एक तरफ बह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास होता है , वहीं दूसरी तरफ महावीर का मौन और मीरा की मस्ती भी छिपी रहती है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग शांति पाने के लिए तीर्थ जाते हैं तो कुछ लोग गुटखा, शराब और तंबाकू जैसे नशे में डूब जाते हैं। इससे कुछ घंटे तो शांति मिल सकती है, पर सदाबहार शांति पाने के लिए व्यक्ति को हर हाल में खुश रहना सीखना होगा।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति आज शरीर से कम दिमाग से ज्यादा बीमार है । चिंता और तनाव आज की सबसे बड़ी बीमारियाँ है। बाहर से मुस्कुराता हुआ दिखाई देेने वाला इंसान भीतर में हजारों तरह की चिंताएँ पाले बैठा है। मकड़ी के जाले से भी ज्यादा उलझने इंसान के दिमाग में हैं। अगर पूजा-प्रार्थना-इबादत और धर्म-आराधना करते हुए व्यक्ति के दिमाग का ई.सी.जी. किया जाए तो पता चलेगा कि वह अंदर ही अंदर कहाँ भटक रहा है।

हर होनी का स्वागत करें

जीवन जीने का पहला मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि जीवन में जो भी हो, जैसा भी हो हर होनी का स्वागत करें। चाहे राजा का अंगूठा कट जाए या मंत्री को जेल में जाना पड़े , विश्वास रखें, इसमें भी प्रभु की ओर से कोई न कोई भलाई छिपी होती है। वह चोंच के साथ चुग्गा देता है और बच्चे को जन्म देने से पहले माँ के आँचल को दूध से भर देता है फिर हम किस बात की चिंता करें। व्यक्ति चिंता की चिता जलाए और चेतना को जगाए।
ज्यादा छातीकूटा न करें

दूसरा मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि मिर्चीकुटा खाएंगे तो जीभ जलेगी, पर ज्यादा छातीकुटा करेंगे तो दिल-दिमाग दोनों जलेंगे। हम हर हाल में मस्त रहें, आठ घंटे धंधा करें, 60 साल तक खूब कमाएं, पर उसके बाद अपनी मस्ती में जिएं। धंधा हमारे जीवन का हिस्सा है किंतु हम केवल धंधा करने के लिए ही पैदा नहीं हुए हैं। उन्होंने तू तारी संभाल और छोड़ सभी जंजाल का मंत्र भी अपनाने की सीख दी।
प्रवचन के दौरान पन्नालाल हर्ष कुमार हेतांश कुमार पिंचा, श्रीमती सुप्रिया पिंचा, श्रीमती बरखा जैन और संजय कुमार, सिद्धार्थ कुमार, श्रेयांश सिंगी परिवार द्वारा सभी श्रद्धालुओं को साहित्य की प्रभावना दी गई। गुरुजनों ने पिंचा एवं सिंगी परिवार को साहित्य पुष्प देकर आशीर्वाद दिया।
कार्यक्रम में सकल जैन श्री संघ के अध्यक्ष नरेश डाकलिया,ट्रस्टी रिद्धकरण कोटडिया, राजेंद्र कोटडिया गोमा, गौतम कोठारी, रोशन गोलछा, डॉक्टर पुखराज बाफना, डॉक्टर नरेंद्र गांधी, पुरुषोत्तम ठक्कर, तोरण सिंह चौहान, लख्मीचंद आहूजा, राधा वल्लभ राठी, नरेंद्र लोहिया, भंवर लाल लालवानी, धूल चंद्र दुगढ़ , सुभाष लालवानी, संजय चोपड़ा, उम्मेद चंद कोठारी, इंदर चंद कोठारी, ज्ञानचंद बाफना, मूलचंद भंसाली, संतोष लालवानी, ज्ञान चंद कोठारी विशेष रूप से उपस्थित थे।

घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर देंगे विशेष मार्गदर्शन

संतश्री मंगलवार को सुबह 9 बजे जैन बगीचे में “घर को कैसे स्वर्ग बनाए” विषय पर विशेष मार्गदर्शन प्रदान करेंगे जो कि घर के झगड़ों को मिटाने और सास-बहू, देवरानी-जेठानी के रिश्तों को मीठा और मधुर बनाने के लिए रामबाण औषधि का काम करेगा।

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