बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़) । दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के दूसरे दिन बिलासपुर स्थित तीनों जैन मंदिर जी में प्रातः 6:30 बजे अभिषेक प्रारम्भ हुआ और संगीतमय पूजन सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे पंडित रवि जैन ने अपने प्रवचन में जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ तत्वार्थ सूत्र के बारे में बताते हुए कहा कि जिस प्रकार हिन्दुओं का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ गीता है, मुसलमानों में वही महत्व कुरान का और ईसाईयों में बाइबिल का है, उसी प्रकार जैन धर्म में यही स्थान तत्वार्थ सूत्र जी का है। इस ग्रन्थ जी में चारों अनुयोगों प्रथमानुयोग, करुणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग के बारे में बताया गया है।
हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा ताड़ पत्रों में लिखा गया संस्कृत का यह प्रथम सूत्र ग्रन्थ मोक्ष शास्त्र भी कहलाता है क्योंकि इसमें मोक्ष मार्ग के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस ग्रन्थ में सात तत्व, जीव-अजीव,आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष का वर्णन है। इस ग्रन्थ में दस अध्याय और 357 सूत्र हैं। पंडित जी ने इस ग्रन्थ के पांचवें अध्याय की चर्चा करते हुए बताया कि इस अध्याय में छह द्रव्य – जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल का स्वरुप बताया गया है। उन्होंने बताया कि पुद्गल द्रव्य रुपी है वो हमें दिखाई देता है, शेष अन्य द्रव्य धर्म, अधर्म, आकाश और काल अरूपी हैं, वो हमें दिखाई नहीं देते हैं। धर्म, अधर्म और आकाश ये द्रव्य एक ही संस्था में हैं और निष्क्रिय हैं। धर्म, अधर्म और जीव द्रव्य असंस्थागत परदेशी होते हैं।
रात्रिकालीन धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़ा ही अनूठा कार्यक्रम आयोजित किया गया। हमें पता है कि माँ और बच्चे का रिश्ता इस दुनिया में सबसे प्यारा होता है, एक बच्चे के लिए माँ ही उसके जीवन की प्रथम पाठशाला होती है। बच्चे के जीवन का प्रथम शब्द भी माँ ही होता है। माँ ही अपने बच्चे के जीवन को संस्कारों से महकाती है। माँ एवं बच्चे के इसी रिश्ते को ध्यान में रखते हुए नैवेद्यम ग्रुप जैन समाज बिलासपुर द्वारा उत्तम क्षमा धर्म के दिन “ममता की छाँव में, जिनवाणी की राह में” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में माँ अपने बेटी या बेटे के साथ जोड़ी बनाई। प्रतियोगिता में माँ-बच्चे की कुल आठ जोड़ियों मोना- अनायशा, ज्योति-रिद्धिमा, अर्पणा-स्वस्ति, प्रीति-प्राशी, शालिनी-अनमोल, निधि-अनिशा, आभा-मिहिका एवं समता-सात्विक ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम को तीन चरणों में विभाजित किया गया था। प्रथम चरण में प्रत्येक जोड़ी को अपना-अपना परिचय अनोखे अंदाज़ में देना था। इस चरण में मोना-अनायशा की जोड़ी ने बहुत ही अनूठे अंदाज़ में अपना परिचय दिया। द्वितीय चरण प्रश्नोत्तरी का रहा, जिसमें प्रत्येक जोड़ी से धार्मिक सवाल पूछे गए। इस चरण में शालिनी-अनमोल की जोड़ी ने सबसे ज्यादा सही जवाब दिए। प्रतियोगिता के तृतीय चरण में जोड़ी को नृत्य / गीत / नाटक या किसी भी एक कला का प्रदर्शन करना था। निर्णायक की भूमिका श्रीमती शकुन जैन, श्रीमती आशा जैन एवं श्रीमती उषा जैन ने निभाई। इस प्रतियोगिता में जूनियर ग्रुप में प्रथम स्थान ज्योति-रिद्धिमा की जोड़ी ने और द्वितीय स्थान समता-सात्विक की जोड़ी ने प्राप्त किया। इसी तरह सीनियर ग्रुप में प्रथम स्थान पर निधि-अनिशा की जोड़ी एवं द्वितीय स्थान पर आभा-मिहिका की जोड़ी रही।