राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 25 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमें निवृत्ति से निर्वाण की ओर बढ़ना चाहिए। इसके लिए शरीर का भार मुक्त होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में भी डिलीट का ऑप्शन होना चाहिए। जब तक डिलीट का ऑप्शन नहीं होगा तब तक हम शरीर का भार कम नहीं कर सकेंगे। यह भार बढ़ता ही जाएगा और हम निवृत्त नहीं हो पाएंगे।
समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि भार मुक्त होना चाहिए। आप ज्यादा भार लेकर ना जाएं। उन्होंने कहा कि जितनी व्यक्ति में ममत्व बुद्धि होती है, उतना ही व्यक्ति भारी होता जाता है। हमें छोटी-छोटी चीजों से मोह है, ममत्व है। इसलिए हम उसकी चाह छोड़ नहीं पाते और यही चाह हमें भार मुक्त होने नहीं देती। जब तक हम इसे नहीं छोड़ेंगे तब तक हम भार मुक्त नहीं होंगे और समाधि की ओर नहीं बढ़ पाएंगे।
जैन संत ने कहा कि दुख हमारी आदत है, दुख हमें पसंद है, इसलिए हम दुखी होते हैं। जिसकी भावनाएं प्रबल होती है और जो साधना की मार्ग में दृढ़ इच्छाशक्ति से बढ़ना चाहता है , वह भार मुक्त होने का प्रयास करता है। हमें प्रशंसा खुश करती है जबकि इससे ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। भारी होने के लिए कुछ नहीं लगता किंतु हल्का होने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। आनंद से ज्यादा कर्तव्य को महत्व दें। हमें हल्का होना पड़ेगा और इसके लिए मोह माया के प्रति आसक्ति कम करनी होगी। हम भार मुक्त होंगे तो निवृत्ति से निर्वाण की ओर हमारे कदम बढ़ेंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।